डा. भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय,
जयपुर विधेयक, 2019 ध्वनिमत से पारित
जिस देश ने ,जिस संविधान ने तुम्हे इतनी आजादी दी की तुम ” अभिव्यक्ति की आजादी ” के नाम पर अपने विचार प्रकट कर सकते हो , आज तुम ने उसे ही जला दिया दुसरे अर्थो में कहे तो जिस माँ ने तुम्हें जन्म दिया तुमने उसी का गला घोट दिया , सोचो तुम केसी गन्दी मानसिकता के इंसान हो ….सोचो …..सोचो…… सोचो तुम खुद मर जावोगे , राष्ट – विरोधी तत्वों |
बात कुछ ऐसी है –
इन मनुवादीयो ने आज संविधान जलाया।पहले भी इन्हीं मनुवादीयो ने संविधान जलाया था तब बाबासाहेब संसद अकेले थे ओर आज बाबासाहेब की वजह से सैकड़ों सांसद व हजारों की संख्या में विधायक हैं लेकिन वे सब गये बीते हो गये जो ऐसी संविधान विरोधी घटना पर एक शब्द तक नहीं बोल पा रहे हैं ,उन्हें तो चुल्लू भर पानी मे डूबकर मर जाना चाहिए जिसकी वजह से वो आज ऐसोआराम कर रहे हैं। 2 अप्रेल की घटना ओर संविधान जलाने की घटना यानि इतनी बडी घटनाओं के बावजूद इन्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही सब चुपचाप हैं अन्यथा सभी को इस्तीफा देकर समाज के साथ आ जाना चाहिए।यदि ये ऐसा करते तो समाज इनको आंखों पर बिठाती ओर ये मनुवादी स
रकारें अपने आप धराशायी हो जाति। लेकिन इनमें ऐसा साहस कहाँ ये तो इनके गुलाम बने हुए हैं। इनको न संविधान से व न समाज से लेना देना है।
हमारा समाज कितना भोला भाला है जो इतना सबकुछ होने के बावजूद भी इन्हें सम्मान देते हैं इन्है सम्मान समारोह मे बुलाकर सम्मान करते हैं इनके पांव छूते हैं।क्या हो गया हमारे समाज को क्या हमारे मे इतनी भी हिम्मत नहीं कि इन्हें हमारे समाज के मोहल्ले व कालोनियों मे नहीं घुसने दे लेकिन हममें भी इतनी हिम्मत कहाँ अन्यथा अब हमें इन्हें सबक सीखाना चाहिए। आज हम सब मिलकर कसमें खानी चाहिए कि जब भी ये समाज विरोधी लोग हमारे बीच मे आये इनको मोहल्ले व कालोनियों मे व गावों मे घुसने पर खुले आम विरोध करना चाहिए साथ आज से इनके संविधान विरोधी पोस्टर गली गली मोहल्ले मोहल्ले मे चिपकाना शुरु कर देना चाहिए।हम इन मनुवादीयो को क्यों कोसे पहले हमें हमारे इन गद्दारों को सबक सिखाना चाहिए जो समाज पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ व संविधान विरोधियों के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहें।
इसलिए मेरे समाज बंदुओ अब जागो ओर एक हो जावो यदि हम एक हो गये तो हमारा संविधान भी बचा रहेगा ओर हमारे समाज पर हो रहे अत्याचारों को भी रोक पायेंगे अन्यथा जो वर्तमान मे घटनाएं हो रही है आगे इनसे भी ज्यादा घटनाएं होगी ओर हम मूक दर्शक बने ऐसे ही वाट्सअप व छोटी मोटी पंचायतें करते रहेंगे। इससे हमारे समाज का कुछ भी भला होने वाला नहीं है हम वैसे ही इन 15 प्रतिशत मनुवादीयो द्वारा कुचलते रहेंगे।इसलिए हमें मानशिक गुलामी को त्याग कर सारे मतभेद भुलाकर एवं जातिवाद से ऊपर ऊठकर तथा सारे जातिगत संगठनों को भुलाकर एक जाजम पर आ जावो। इसी आशा के साथ ……………………..
लेख़क – DC भाटी ,
{ यह लेख़क के निजी विचार है }
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर को समग्रता के साथ देश के सामने रखने की इच्छा जताई है. सोमवार को डॉ.आंबेडकर महासभा का एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.लालजी प्रसाद निर्मल के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिला. इस दौरान प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति से अनुसूचित जातियों, जन जातियों व पिछडों के सशक्तिकरण, मैला प्रथा के समूल खात्मे और इस पेशे में लगे लोगों के पुनर्वासन, दलित उत्पीड़न पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रधानमंत्री द्वारा बैठक बुलाने, हरियाणा और बिहार राज्य की तरह पूरे देश में आउटसोर्सिंग या संविदा भर्तियों में आरक्षण लागू करने, प्रोन्नति में आरक्षण बिल यथाशीघ्र पारित करने, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग गठित किये जाने समेत पूरे देश में केन्द्र सरकार के कार्यालयों में बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर की तस्वीर की अनिवार्यता पर चर्चा की और उन्हें ज्ञापन सौंपा.
प्रतिनिधि मंडल ने यूपी के सरकारी कार्यालयों में डॉ.आंबेडकर का फोटो लगाए जाने के यूपी सरकार के निर्णय से राष्ट्रपति को अवगत कराया. इस निर्णय को राष्ट्रपति ने यूपी सरकार का एक अच्छा कदम बताते हुए कहा कि वे इसे पूरे देश
में लागू कराने के लिए काम करेंगे.
राष्ट्रपति ने कहा कि बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर समस्त मानवता के उद्धारक थे, उन्हें मात्र दलितों के मसीहा या संविधान निर्माता तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर ने सभी महिलाओं को समान अधिकार, समान वेतन, प्रसूति अवकाश, हिंदू कोड बिल, काम के घंटों को निश्चित करना, साप्ताहिक अवकाश की अनिवार्यता, न्यूनतम वेतन, श्रमिकों और अन्य लोगों का बीमा, रोजगार कार्यालय, भविष्य निधि, ट्रेड यूनियन, मंहगाई भत्ता, मजदूर विकास कोष, स्किल्ड डेवलपमेंट और टेक्निकल ट्रेनिंग, भारत के आधुनिकीकरण और संयत्रीकरण के प्रणेता, ऊर्जा और सिंचाई के साधन के रूप में भाखडा, दामोदर, सोन, हीराकुंड जैसे बडे बांधो की संकल्पना और उसका क्रियान्वन, सेन्ट्रल वॉटर कमीशन, सेन्ट्रल इलेक्ट्रिक अथॉरिटी, इलेक्ट्रिक ग्रिड, समाजवाद में राज्य की भूमिका, प्रॉब्लम ऑफ रूपी पर आधारित इंपीरियल बैंक (वर्तमान का रिजर्व बैंक), सांख्यिकीय एक्ट, वित्त आयोग की स्थापना जैसे इत्यादि अति महत्वपूर्ण कार्य किये.
राष्ट्रपति ने कहा कि बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर के इन कार्यों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए.
प्रतिनिधि मंडल में डॉ.आंबेडकर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.लालजी प्रसाद निर्मल समेत बीना मौर्या, अमरनाथ प्रजापति, जयशंकर सहाय, बीरेन्द्र विक्रम सुमन शामिल थे.
सविंधान दिवस विशेष – बाबा साहेब द्वारा बनाया गया सविंधान सदियों तक भारत को ऊर्जावान बनाये रखेगा- कपिल गौतम प्रेम
सविंधान महज एक औपचारिकता नही है यह एक समाज,एक गांव,एक देश सभी को ध्यान में रखकर और सभी अंगों से मिलकर बना है।
26 नवंबर 1949 को बाबा साहेब डॉ०आंबेडकर ने सविंधान को प्रस्तुत किया और अंगीकार कर भारत के लोगों को सौंप दिया गया।सविंधान दिवस पर अगर डॉ०आंबेडकर को याद ना किया जाए तो यह एकदम अधूरा है आइये एक नजर डालते हैं हम कैसे बने इस सविंधान के अंग-भारतीय राजनीति व समाज के ऐतिहासिक परिदृश्य में, डॉ. भीमराव अंबेडकर का उदय एक ऐसे जननेता के रूप में हुआ जिसने व्यक्तिगत संघर्ष की बुनियाद पर अपना सारा जीवन समाज की मुख्यधारा से विमुख, जीवन-यापन कर रहे, वंचितों, शोषितों, पीड़ितों के हक की लड़ाई में समर्पित कर दिया। समग्र विकास की उनकी यह विचारधारा (दृष्टिकोण) संविधान निर्माण के दौरान भी परिलक्षित हुई, जो समानता व सर्वकल्याण की वैचारिकी पर केंद्रित है। तत्कालीन परिस्थिति में संविधान का निर्माण निश्चय ही एक दुरुह कार्य था। ऐसे मुश्किल वक्त में बाबा साहेब ने बड़े ही धीरज के साथ प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में अपनी बेहतरीन प्रबंधन क्षमता से भावी संविधान का मसौदा तैयार कर विश्व के अनोखे संविधान के निर्माण की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त किया। बाबा साहेब अपने आप में एक संस्था हैं। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व आज भी देशवासियों को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। वे एक विद्वान, विधिवेत्ता और अनेक विधाओं के ज्ञाता थे। ऐसी शख्सियत के बारे में संपूर्णतः जानना और समझना भी अपने आप में एक चुनौती है।
बाबा साहेब के अद्वितीय विद्वान बनने से पहले का उनका एक ‘दर्दनाक’ इतिहास रहा है। मैं आपके बिना कुछ पढ़े फिर से कुछ बातें जरूर दोहराना चाहूँगा, उनका जन्म, एक बहुत ही साधारण से परिवार में मध्य प्रदेश के महू में भीमाबाई सकपाल औ
र रामजी की 14वीं संतान के रुप में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। अंबेडकर का संपूर्ण जीवन प्रेरणाओं से भरा हुआ है। उनका जीवन-संघर्ष देशवासियों को आगे बढ़ने में एक उदाहरण के काम करता है। दरअसल, तब ऐसी परिस्थितियां थीं, जब समाज का एक वर्ग दोयम दर्जे के व्यवहार के योग्य समझा जाता था। स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, पेयजल जैसी तमाम बुनियादी सुविधाएं इन सबके पहुंच से दूर थीं। यह सब प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में विद्यमान वर्ण व्यवस्था के असमान वर्गीकरण के कारण रही हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र के अलावे भी समाज में कई जातियां रहती थीं, जिसे वर्ण व्यवस्था में स्थान तक नहीं दिया गया था। ऐसी जातियों के लोगों को समाज में ‘अछूत’ समझा जाता था। ऐसे समूहों का सामाजिक-आर्थिक रूप से शोषण किया जाता था।
डॉ० अंबेडकर को भी इन कुरीतियों से दो-चार होना पड़ा। हिन्दुओं में प्रचलित वर्ण तथा जाति व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों ने दृढ़ इच्छाशक्ति से संकल्पित भीमराव को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। वे स्वयं महार नामक अछूत जाति से संबंध रखते थे। इस कारण, उन्हें उच्च वर्ग के भेदभाव और अन्याय का सामना करना पड़ा। स्वयं, उनके गांव में उनके समुदाय के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। अंबेडकर को विद्यालय में भी सामाजिक भेदभाव व असमानता का सामना करना पड़ा। कक्षा में उसे अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था। अन्य बच्चे उनसे बात तक नहीं करते थे। यहां तक कि उन पर शिक्षक ध्यान भी नहीं देते थे। बाबा साहेब का प्रारंभिक जीवन अत्यंत कठोर रहा है। सकारात्मक बात यह थी कि वे इन विपरीत परिस्थितियों के समक्ष कभी झुके नहीं।
बाबा साहेब ने उच्च वर्ग की हर चुनौती को स्वीकार किया। वे यह भलीभांति जानते थे कि देश के विकास और कुरीतियों से मुक्ति का एकमात्र रास्ता शिक्षा प्राप्त करना ही है। कई कठिनाइयों के बावजूद अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने ना सिर्फ देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षा ग्रहण की, बल्कि विदेशी विश्वविद्यालयों से भी एक शिक्षार्थी के रूप में जुड़े। देश-विदेश के प्रमुख कालेजों से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उसने भारतीय समाज-संस्कृति की कुरीतियों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। वे दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये काम करना चाहते थे। सन् 1926 में, वे बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन 1927 में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया।
आजादी की प्राप्ति तथा संविधान निर्माण के बाद देश में दलितों तथा अछूत माने जाने वाले समुदाय की स्थिति बहुत हद तक सुधरी है। संविधान में ‘अछूत’ माने जाने वाली जातियों को परिभाषित कर उन्हें एक विशेष वर्ग- ‘अनुसूचित जाति’ के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान की नजर में सभी नागरिक समान हैं। संविधान के अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को अपराध घोषित किया गया है। हिंदू समाज में कलंक के रूप में व्याप्त अस्पृश्यता को अनुच्छेद 17 अंत करता है और सभी रूपों में अस्पृश्यता के व्यवहार को निषिद्ध करता है। वहीं, अनुच्छेद 26 में उपलब्ध अवसरों की समानता की बात कही गयी है। इसी तरह, अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारों की रक्षा की बात करता है। विशेष बात यह है कि आज सभी देशवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता तथा शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा भी, संविधान में अनेक अनुच्छेद व अधिनियमों का प्रावधान कर समाज में उनके अधिकारों की रक्षा हेतु प्रयास किये गये हैं। इसका सुफल यह है कि आज हर क्षेत्र में कमजोर तबके की हिस्सेदारी बढ़ रही है। मंदिर, तालाब तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अब उन्हें जाने की खुली छूट है।
बाबा साहेब, एक ऐसे विभेद-रहित समाज की स्थापना का स्वप्न देखते थे; जहां समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचे और समाज में उनकी सहभागिता स्थापित की जाए। वे स्त्री-शिक्षा के हिमायती थे। उनका कहना था कि एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री से होता है। शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण व्यापक था। उनका विचार था कि ‘शिक्षा शेरनी के समान है, जिसका दूध पीकर हर बच्चा दहाड़ने लगता है।
डॉ० अंबेडकर जयंती को, सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से मनाकर, खुद को दलितों का उद्धारक साबित करने के प्रपंची प्रयास वर्षों से करती आयी हैं। दुर्भाग्य यह है कि छोटी-बड़ी क्षेत्रिय पार्टियों से लेकर राष्ट्रीय पार्टियाँ; सभी वोट बैंक की राजनीति के तहत, एक बड़े वर्ग को लुभाने के लिए उनके नाम का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। भारतीय राजनीति की यह बड़ी विडंबना है कि यहां जाति व संप्रदाय आधारित राजनीति होती है। किसी भी मुद्दे अथवा विवाद के समाधान पर सामूहिक विचार-विमर्श के स्थान पर, उसे राजनीतिक रंग देकर जाति व धर्म के परंपरागत बंधनों में बांधने की कोशिश हमारे तमाम सियासतदान करते रहे हैं। बाबा साहेब का विचार था ‘हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।’ दुर्भाग्य यह है कि आज लोग ‘भारत माता की जय’ अथवा ‘वंदे मातरम’ बोलने और ना बोलने को लेकर परेशान हैं। बाबा साहेब आज जीवित होते, तो वे निराश जरूर होते। जिस, भारत को संवारने के लिए असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, वहां लोग देश की एकता और अखंडता को तोड़ने पर आमदा नजर आते हैं।
आज बाबा साहेब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा बनाया हुआ सविंधान जिससे कई हजार वर्षों की बेड़ियाँ तोड़ उनको नया जीवन दिया, उनके विचार व दर्शन सदियों तक लोगों को ऊर्जावान बनाए रखेंगे। जरूरी यह है कि बाबा साहेब डॉ० अंबेडकर के विचार व दर्शन से युवा पीढ़ी को परिचित कराया जाए। डॉ० अंबेडकर भारत रत्न हैं। वे देश के नेता हैं। उन्हें बांटा न जाये और न ही किसी सीमा में बांधा जाए। वे कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और सदैव रहेंगे।
खासकर मेरा युवाओं के लिए संदेश है कि हमारे समाज मे समय समय पर महापुरुषों ने जन्म लेकर हमें राह दिखाई है चाहे बुद्ध ,नानक,कबीर,रैदास,नारायण गुरु , शाहू जी महाराज,फूले ,बाबा साहेब सभी ने समाज का नेतृत्व किया है आओ युवाओं से भी उम्मीद करते हैं कि बाबा साहेब के सविंधान के अनुसार आगे बढ़ते हुए मिशन की बागडोर संभालो और अपने भारत देश का हुक्मरान बनो।
भारत के लोग सविंधान दिवस का आयोजन करते हैं क्योंकि सविंधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी को वो याद कर सकें, स्वंतत्रता , शांति से आज़ादी का पर्व मना सकें।
आप सभी को सविंधान दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
कपिल गौतम प्रेम
संस्थापक/अध्यक्षसम्यक शिक्षा संघ
9456673068
( लेखक युवा पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं )