

कट्टरपंथीयों ने बांग्लादेश को किया आग के हवाले – शेख हसीना की मुश्किलें बढ़ी
प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के बाद बांग्लादेश में भारी हिंसा हो रही हैं और अभी तक 12 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी हैं देश में भी उठ रहें हैं सवाल –
प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे का विरोध रुकने का नाम ही नहीं ले रहा – कट्टरपंथीयों ने एक बड़े मंदिर को बनाया निशाना माँ काली और भगवान कृष्ण की मूर्ति तोड़ी धार्मिक उन्माद चरम पर
पवन देव
नई दिल्ली | प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे का बांग्लादेश के चरमपंथी लोग जमकर विरोध कर रहें हैं बांग्लादेश हिंसा अब धार्मिक हिंसा का रूप ले रही हैं कई जगह तोड़फोड़ , लूट हो रही हैं तो चरमपंथी और पुलिस के बीच भी हिंसा देखने को मिल रही हैं कई ट्रेने रोक दी गई हैं तो कई ऑफिस में भी तोड़फोड़ हो चुकी हैं |
हिफाजत-ए-इस्लाम के समर्थकों ने पुलिस स्टेशन, पब्लिक ऑफिस, प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी के कार्यालय और बसों को जमकर निशाना बनाया जा रहा हैं इन लोगों ने एक ट्रेन के 15 डिब्बों को तहस नहस कर डाला और उसकी 117 खिड़कियों को तोड़ दिया इसके साथ इन कट्टरपंथियों के आतंक का असर यह रहा कि ऑफिस, पुलिस स्टेशन जल रहे थे लेकिन फायर ब्रिगेड की टीम चाहकर भी वहां तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई यह हिंसात्मक मंजर बांग्लादेश में साफ़ दिख रहा हैं हिंसा की मुख्य वजह प्रधानमंत्री मोदी को निमन्त्रण देना हैं क्योकिं मुस्लिम समुदाय के लोग मोदी का विरोध कर रहें थे लेकिन दौरे को टाला नहीं गया |
ममता बेनर्जी ने उठायें सवाल –
पश्चिम बंगाल में चल रहें चुनावों के बीच प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे पर ममता बेनर्जी ने सवाल उठायें हैं की प्रधानमंत्री चुनाव को प्रभावित करने के लियें आंचार संहिता लगने के बाद बांग्लादेश देश दौरा करते हैं और उनके भाषण और कार्यक्रम सीधे सीधे मतदाता को प्रभावित कर रहें हैं दीदी ने तो यह तक कह दिया हैं की मोदी जी का वीजा रद्द होना चाहियें |
भाजपा और मोदी की पुरानी रणनीति हैं चुनावों को प्रभावित करने की –
ऐसा पहली बार नहीं हुआ हैं की चुनाव समय में प्रधानमंत्री मोदी अन्य देशों की यात्रा करते हो गौरतलब हैं की जब गुजरात में चुनाव हो रहें थे और चुनाव प्रचार थम चूका था मोदी जी ने नेपाल का दौरा किया था और धार्मिक स्थलों की यात्रा की थी जिसका भारत के तमाम बड़े टीवी चेनलों ने लाइव प्रसारण किया था कुल मिलाकर भाजपा का हिन्दू एजेंडा साफ़ वोटरों को प्रभावित कर रहा हैं |
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मोदी जी के प्रिय गैर संवेधानिक संगठन RSS के प्रचारक हैं असली परजीवी – प्यारेलाल ‘ शकुन ‘
आंदोलन जीवी – एक नयी जमात
पी एम नरेंद्र मोदी ने 8 फरवरी 2021 को राज्य सभा में ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ पर चर्चा के दौरान संकेतों- संकेतों में अपनी समस्याओं के समाधान हेतु सरकार का ध्यान आकर्षित करने वाले किसान आंदोलनकारी नेताओं को श्रम जीवी, बुद्धि जीवी के साथ तुकबंदी करते हुए ‘आंदोलनजीवी’ परजीवी(अर्थात जो आंदोलन पर ही जीवित रहते हैं) कहकर उनके प्रति अपने नफरत भरे दृष्टिकोण को प्रकट कर दिया और उनका उपहास किया है। इससे प्रतीत होता है कि मोदी जी को ये आंदोलन करने वाले खासकर किसान वामपंथी नेता फूटी आँखों नहीं सुहा रहे हैं बल्कि मोदी सरकार की आँख की किरकिरी बन गये हैं। क्यों न बने उनके रास्ते की बाधा जो बन गये हैं, ये ‘आंदोलन जीवी’।
इन आंदोलन जीवियों ने मोदी सरकार को कोर्पोरेट्स के कटघरे में खड़ा कर दिया है। और इसे लेकर उनकी खुद की पार्टी में सवाल उठने लगे हैं। इसके अलावा ऐसे कुछ नेताओं ने खुले आम संसद में किसानों का पक्ष लिया है और विरोधियों को देशद्रोही कहकर उन्हें जेल में डाल देने, उनके खिलाफ CBI, ED आदि का इस्तैमाल करने पर सवाल खड़े किये हैं। सांसद विद्या ठाकुर ने संसद में कहा है कि देश के टुकड़े टुकड़े मत करो, आप क्या जाने अहिंसा, आपने तो लाठी चलाना सिखाया है? वाजपेयी जब विरोध करते थे तो कभी नेहरू ने उन्हें देशद्रोही नहीं कहा, कम्युनिस्ट पार्टी को चार साल के लिए बेन कर दिया परंतु नेहरू ने उन्हें देशद्रोही नहीं कहा। परंतु इस लोकतंत्र में आपकी सरकार की या आपकी कोई आलोचना करे तो उस पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है, क्यों? उनके खिलाफ cbi, Ed आदि का इस्तैमाल किया जाता है। हम उस राम का मंदिर बना रहे हैं जिसने अपनी धर्म पत्नी सीता की दो बार अग्नि परीक्षा ली और गर्भवती सीता को जंगल में अकेले छोड़ दिया गया। इस तरह एक नारी का अपमान करने वाले राम को भगवान कहकर उसका मंदिर बनाया जा रहा है। आप मंदिर बनाइये परंतु इस देश के संविधान की धर्मनिरपेक्ष गरिमा को नीचे मत गिराइये।
आज इन्ही आंदोलन जीवी नेताओं ने साबित कर दिया है कि देश को कोर्पोरेट्स नहीं चलाते बल्कि देश के किसान मजदूर चलाते हैं। किसान यह समझ चुका है कि आपने जो ये तीन किसान विरोधी कानून बनाये हैं ये उसे आजादी के पहले की गुलामी में पहुंचा देंगे। इस देश को जब आजाद कराया था तब भी इन आंदोलन जीवियों ने अपने सीने पर गोलियां खाईं थी और फांसी पर चढ़े थे। परंतु तब भी आपके संघी देश भक्त अंग्रेजों का साथ दे रहे थे और देश की जनता को हिंदू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र में बाँट कर देश के राष्ट्रीय आंदोलन में फूट पैदा कर रहे थे। आपने राम के नाम का इस्तेमाल राजगद्दी हासिल करने के लिए किया है, भले ही देश को 1989,1990,1992 और 02002 के ऐतिहासिक सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंक दिया हो। क्या इसके लिए आंदोलन जीवी जिम्मेदार हैं ? ‘या सांप्रदायिक सिद्धांतजीवी।
और एक बात यह है कि देश के प्रधान सेवक जी कि जिसे आप नयी जमात कहकर व्यंग कर रहे हैं, वह नयी नहीं है बल्कि पुरानी जमात है। सुभाष चन्द्र बोस भी आंदोलनजीवी ही थे, देश की माता बहनो ने अपने गहने उतार कर उनके आंदोलन के लिए समर्पित कर दिये थे। भगतसिंह, चंद्र शेखर आजाद, रामप्रसाद बिश्मिल और अस्फाक उल्ला खां भी इसी धारा के आंदोलन जीवी थे जो देश के लिए अपना सर्वश्व न्यौछावर करके चले गए।
आप शायद इतिहास में रुचि नहीं रखते हैं। परंतु मैं आपको एक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराना चाहता हूँ जो यह है कि इस देश में ये आंदोलन जीवी कोई नये नहीं है। भारत में सबसे पहला किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है।
दंडी सन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को भगवान कहा था और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया था। उन्होंने किसानों को लेकर
” नारा दिया था:
जो अन्न वस्त्र उपजायेगा,
अब सो कानून बनायेगा।
ये भारतवर्ष उसी का है,
अब शासन वही चलायेगा “
परंतु हम देख रहे हैं कि भारत अंग्रेजी हुकूमत से आजाद तो हुआ लेकिन किसानों और मजदूरों को अभी भी अपने हक में कानून बनाने का अधिकार नहीं मिल सका है बल्कि उन्हें जो अधिकार पहले मिले थे उन्ही को वर्तमान पूंजीवाद उन से छीन रहा है।
1934 में बिहार में प्रलयंकारी भूकंप आया था जिससे सब कुछ तबाह हो गया। तब स्वामी जी ने राहत और पुनर्वास के काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने किसानों को हक दिलाने के संघर्ष को अपना लक्ष मान लिया था जिसके बाद उन्होंने नारा दिया था:
” कैसे लोगे मालगुजारी ,
लट्ठ हमारा ज़िंदावाद “
बाद में यही नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया। वे कहते थे:
अधिकार हम लड़ कर लेंगे, जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे।
परंतु जमींदारी अब नहीं रही, अब पूंजीवाद है और इसीलिए कोर्पोरेट्स के हित में ये कानून बनाये गए हैं। आंदोलन के दबाव में यदि ये कानून वापिस भी ले लिए गए तो भी सरकार फिर से हेर फेर करके इन्हें वापिस ले आयेगी। इसलिए किसानों का नारा भी अब ये हो जायेगा:
“अधिकार हम लड़ कर लेंगे,
पूंजीवाद का खात्मा करके रहेंगे “
इसलिए मोदी जी हम आंदोलन जीवी नहीं है बल्कि आंदोलन धर्मी हैं। और न हम पर जीवी हैं बल्कि हम मेहनतकश वर्ग के सृजनशील इंसान हैं।
इसलिए हमारा नया नारा है:
” जब जब जुल्मी जुल्म करेगा, सत्ता के गलियारों से पत्ता पत्ता गूंज उठेगा, इंकलाव के नारों से “
लेखक – प्यारेलाल ‘ शकुन ‘
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज 40वां दिन है और अब किसानों ने देश भर में आंदोलन को व्यापक रूप देने की तैयारी भी कर रखी है। 40 दिन के आंदोलन के दौरान सरकार और किसानों के बीच कई बार वार्ता हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा है आज किसानों की सरकार के साथ 8वें राउंड की बातचीत होने जा रही है जिसमें दोनों के मध्य समझौता होने के कुछ आसार नजर आ रहे है। अगर किसी कारण के चलते वार्ता सफल नहीं होती है तो सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है लेकिन सरकार को उम्मीद है कि आज आंदोलन खत्म हो सकता है।
हालाकि इसके पहले यानी 30 दिसंबर की वार्ता दोनों पक्षों के मध्य 2 मुद्दों पर सहमति बनी थी
1. पराली जलाने पर केस दर्ज नहीं होंगे और 1 करोड़ रुपए जुर्माना और 5 साल की कैद की सजा नहीं होगी।
2. किसानों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी बंद नहीं होगी।
किसान संगठनों ने इस वार्ता से पहले अपनी राय साफ कर दी है कि सरकार ने मांगें नहीं मानी तो प्रदर्शन और तेज किया जाएगा। इसके बाद हर दिन अलग—अलग प्रकार से आंदोलन को तेज करने का प्रयास किया जाएगा जिसको लेकर रणनीति बन चुकी है।
इन मुद्दों पर नहीं बनी सहमति
1. तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर नहीं मिला आश्वासन।
2. MSP पर अलग कानून बने, ताकि किसानों सही और उचित दाम मिलता रहें।
अब तक मिली जानकारी के अनुसार आज की बैठक में किसानों के बड़े मुद्दों का हल भी निकल सकता है और इसके चलते आंदोलन खत्म हो सकता है। किसानों के तेज होते आंदोलन को देखते हुए सरकार समर्थन मूल्य और एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के मुद्दों पर लिखित में आश्वासन देगी। इसके लिए सभी प्रकार की तैयारियां कर ली गयी है। अगर सहमति नहीं बनती है तो किसान 6 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च करेंगे और 13 जनवरी को कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर लोहड़ी मनाने का ऐलान किया है।
भारत में अभी तक कोरोना वायरस का टीका लगना भी शुरू नहीं हुआ और इससे पहले कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन ब्रिटेन से भारत आ पहुंचा है। खबरों के अनुसार बताया जा रहा है कि हाल ही में ब्रिटेन से लौटे कुछ लोगों में इसके लक्षण पाये गये है और अन्य लोगों की जानकारी लेकर उनका पता लगाया जा रहा है। भारत सरकार ने इस नये लक्षण वाली खबर के बाद से ही ब्रिटेन से आनी वाली फ्लाइट्स पर रोक लगा दी है।
ब्रिटेन में अब तक कोरोना वायरस के ज्यादा खतरनाक मरीज मिलने के बाद से ही भारत सरकार ने 21 दिसंबर को ब्रिटेन से आने वाली फ्लाइट्स पर रोक लगा दी जो 31 दिसंबर तक रहेगी। जो लोग इससे पहले फ्लाइट्स से भारत पहुंचे उनकी एयरपोर्ट पर जांच की जा रही है। ब्रिटेन में इस नये वायरस को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने ज्यादा डरने की बात कही है और इसकी वैक्सीन बनाने पर काम शुरू कर दिया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोनावायरस का जो नया रूप ब्रिटेन में मिला है वह पहले से लगभग 60 प्रतिया ज्यादा तेजी से फैल सकता है। फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका में भी वायरस में यह बदलाव देखने को मिल रहा है। हालाकि भारत में कोरोना मरीजों का आंकड़ दिनों दिन कम होता जा रहा है जो अच्छी खबर है। कोरोना का नया रूप बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होने की बात भी कही जा रही है।
देश में सोमवार केवल 16 हजार 72 नये मरीज मिले है जो जून के आकड़ों के मुताबिक बहुत कम है। अगर बात करें 24 घंटे की तो लगभग 25 हजार मरीज ठीक होने के साथ 250 मरीजों की मौत हुई। अब तक कुल 1 करोड़ कोरोना संक्रमित है इनमें से 98.06 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं और 1.48 लाख मरीजों की मौत हो गयी है।
भारत में नये साल की शुरूआत से ही कोरोना का टीका लगाने की प्रकिया शुरू करने की तैयारी की जा रही है जो अच्छी खबर है। भारत में तैयार की गयी स्वदेशी वैक्सीन सस्ती होने के साथ असरदार भी साबित हो सकती है क्योंकि इसके परिक्षण में अभी तक किसी प्रकार के साईड इफेक्ट देखने को नहीं मिले है।
कोरोना महामारी को लेकर जहां दुनिया भर के लोगों की जान खतरे में पड़ गयी है तो वहीं दूसरी तरफ WHO ने भविष्य में नयी महामारी आने को लेकर एक बयान दिया है जिसके कारण सबको हैरानी हो रही है। कोरोना महामारी के कारण कई लोगों की जान चली गयी है लेकिन अभी तक इस बीमारी को खत्म करने वाली कारगर वैक्सीन भी नहीं बन पायी है। WHO के इस बयान के बाद लोगों ने अभी से कयास लगाने शुरू कर दिये है कि हो सकता है कि कोरोना के खत्म होने के साथ ही कोई नयी महामारी दुनिया भर में फैल सकती है।
WHO के प्रमुख टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कोरोना महामारी के बीच 26 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा है कोरोना वायरस अंतिम महामारी नहीं है अगर आने वाले समय में हम जलवायु परिवर्तन और पशु कल्याण का उचित समाधान नहीं कर सकें तो हमे किसी ना किसी नई महामारी का सामना करन पड़ सकता है।
वर्तमान में कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर के स्वास्थ्य विभाग और इनके जानकार अभी तक इस वायरस को जड़ से खत्म करने में सफल नहीं हुए है जबकि इसके लिए पानी की तरह पैसे बहा दिया गया है। अगर दुनिया के सभी देश मिलकर पर्यावरण का खयाल नहीं रखेंगे तो हमें आने वाले भविष्य में किसी ना किसी नई बीमारे से लड़ना पड़ सकता है। टेड्रोस ने कहा कि लोगों को कोरोना महामारी से सीख लेनी चाहिए क्योंकि इसके आने के बाद से लोगों में डर पैदा हुआ है अगर इसका इलाज जल्द मिल जाता तो शयद लोगों को इस बीमारी का डर कभी नहीं लगता है।
कोरोना महामारी के कारण वे देश आज अपने आप को इतना असहाय महशुस कर जो अपने आप को दुनिया का सबसे अच्छा स्वास्थ्य सेवा ढाचा माना करते थे। भारत आज उन देशों से आगे है जो इस महामारी में कई देशों की सहायत करने के साथ आने वाले दिनों में उनको दुनिया की सबसी सस्ती और कारगर वैक्सीन देगा। भारत में स्वदेशी कोरोना वैक्सीन के अंतिम चरण का प्रशिक्षण चल रहा है और इसके परिणाम अभी तक सही आये है जो भारत के लिए बहुत बड़ी कामयाबी होगी। भारत में नये साल के शुरूआती हफ्तों में कोरोना का टीका लगना शुरू हो सकता है।
राजस्थान में हुए पंचायत समिति और जिला परिषद के चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं के विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है जिसके कारण कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
21 जिला प्रमुखों के लिए चुनाव में बीजेपी ने 14 और कांग्रेस को 5 पर जीत मिली है। इसके साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने नागौर में अच्छा प्रदर्शन किया है। जबकि बाड़मेर में कांग्रेस और BJP दोनों को बराबर 18-18 सीटें मिली है। वहीं, अगर बात करें पंचायत चुनाव की तो यहां भी बाजी बीजेपी ने मारी है बीजेपी के खाते में 1833 सीटों पर , जबकि कांग्रेस को 1713 सीटों पर जीत मिली है।
अगर पिछले चुनावों के प्रदर्शन की बात करें तो सत्ता पक्ष की पार्टी को ज्यादा सीटे मिली थी, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा फायदा नहीं हुआ और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ वाली कांग्रेस इस बार अपने परम्परागत वोट को अपने खाते में नहीं डाल सकी। चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस समर्थित निर्दलय विधायक संयम लोढा व मुख्य सचिव के बीच हुई खिचातान में विधायक ने कहा था कि पाली में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा और चुनावों परिणामों में उनकी यह बात सच साबित होती नजर आ रही है।
हैदराबाद नगर निगम के चुनाव मंगलवार को समाप्त हो चुके है और इन चुनावों में सभी पार्टीयों ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी। लेकिन इसके बाद भी मतदाताओं ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया और बहुत कम मतदान हुआ।
ग्रेटर हैदराबाद में करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दू मतदाता हैं, जबकि मुस्लिम आबादी कम है इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने यहां अपनी पूरी ताकत लगा दी है। यह देश का पहला नगर निगम का चुनाव था जिसमें देश के गृहमंत्री से लेकर बीजेपी के बड़े बड़े मंत्रियों के साथ यूपी के सीएम तक ने यहां प्रचार किया। नतीजे 4 दिसंबर को आएंगे इसी वजह से देश की निगाहे इन चुनावों पर टिकी हुई है।
हैदराबाद नगर निगम के 150 सीटों के लिए मतदान हो चुका है और सभी दलों ने यहां अपनी अपनी जीत का दावा भी कर दिया है। बीजेपी इस निकाय में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को टक्कर देने के लिए यहां अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
नये कृषि कानुन के लागु होने के बाद से किसानों में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिल रहा था और जब सरकार ने इन की बातों पर ध्यान नहीं दिया तो अन्नदाता सड़कों पर उतर गया और दिल्ली में बैठी मोदी सरकार को कानुन में सुधार करने के साथ उनकी मांगों पर विचार करने के लिए मजबुर कर दिया।
किसानों का शोषण कोई नयी बात नहीं है कई सालों से किसानों के हितों को अनदेखा किया जा रहा है और इसके कारण भारत में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। आज तक किसानों की हितों की बात करें तो सारी पार्टियां उनको सपने तो दिखाती है लेकिन आत तक उनका भला किसी ने नहीं किया जिसके कारण आज किसान खेती करना छोड़ अपनी जमीन बेचने पर मजबूर हो गया है।
किसानों की दशा सुधारने के लिए कई समितिया बनाई गयी लेकिन वह केवल कागजों में ही सिमट कर रही गयी
नया कृषि कानुन आने के बाद पीएम मोदी ने किसानों को भरोसा दिलाया की इस बिल से कोई नुकसान नही होगा लेकिन किसानों को लगा की इससे उनको उचित दाम पर फसल बेचने पर परेशानी हो सकती है तो उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया।
आज दिल्ली में किसानों के साथ सरकार वार्ता करेगी लेकिन इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि आखिरकार यह नौबत क्यों आई की किसान को दिल्ली आकर प्रदर्शन करना पड़ा। यह बेजीपी या कांग्रेस का नहीं सभी दलों के लिए एक संकेत है कि 70 साल में कई राजनितीक पार्टियों ने किसानों के नाम जमकर राजनीति की और कई राज्यों में सीएम तो कोई पीएम भी बना लेकिन किसी ने किसनों का भला नहीं किया आज जब किसान सड़कों पर उतरा तो सारी पार्टिया अपने आपको किसानों की हितेषी बता कर अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुट गयी है। सहारे दिल्ली तक