म्यांमार में तख्तापलट से चीन को लगा बड़ा झटका

चीन दुनिया का एक ऐसा देश है जो दुनिया से अलग रहकर अपना वजूद कायम करना चाहता है लेकिन इसके कारण उसको दुनियाभर के देशों से खरी खोटी सुननी पड़ती है। चीन अपने पड़ौसी देशों पर अपना अधिकार जमाने के लिए वहां जमकर पैसा कर्ज के रूप में लूटाता है और इसी कारण उसके पड़ौसी देशों के साथ रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते है। हाल ही में म्‍यांमार में तख्‍तापलट की घटना के बाद चीन ने एक बार दुनिया के सामने अपला असली रंग दिखा दिया है कि उसकी लोकतंत्र या लोकतांत्रिक मूल्‍यों में कोई आस्था नहीं है। पूरी दुनिया जहां म्यांमार के साथ वहां पर लोकतंत्र की वापसी की बात कर रही है तो चीन इसके विपतिर अपने बयान दे रहा है। सभी देशों ने म्‍यांमार सेना की निंदा की तो दूसरी तरफ चीन ने म्‍यांमार के संविधान का हवाला देकर पूरे मामले से पल्‍ला झाड़ लिया है।

खबरों के अनुसार बताया जाता है कि म्‍यांमार की सेना के प्रमुख जनरल मिन का चीन के साथ करीबी संबंध है लेकिन वह पाकिस्‍तानी सेना प्रमुख की तरह गुलामी नहीं करते है। लेकिन अब सेना के कमांडर इन चीफ मिन आंग लाइंग के हाथों में देश की बागडोर आ गई है और चीन इसी बात से डरा हुआ है कि उसने अपने फायदे के लिए बड़ी मात्रा में निवेश किया था लेकिन इसके बाद भी वह म्यांमार पर अपनी पकड़ नहीं बना सका।


म्यांमार के भारत के साथ अच् संबंध है और सेना प्रमुख को अब लोकतंत्र बहाली को लेकर जल्द ही बड़ा कदम उठाया होगा क्योंकि इस मामले में पूरी दुनिया म्यांमार की जनता के साथ खड़ी है। लेकिन म्‍यांमार में चीनी निवेश और चीनी आर्थिक क्रियाकलाप के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है क्योंकि अब चीन को दुनिया भर में जवाब देना पड़ेगा की वह लोकतंत्र के साथ है या फिर सेना के साथ। म्यांमार मामले पर संयुक्त राष्ट संघ की नजर बनी हुई है और इस मामले में जल्द ही अमेरिका का हस्तक्षेप देखने को मिल सकता है।

किसान दिवसः 28 दिन से सड़कों पर रात गुजार रहा है किसान

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर भारत में हर साल 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह को अगर किसानों का महिसा कहा जाये तो इसमें कोई शंका नहीं होगी क्योंकि उन्होंने बहुत कम समय तक पीएम का पद संभाला लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में ही उन्होंने किसानों के लिए इतने अच्छे काम करने के साथ कई योजनाएं भी शुरू की जो आज तक कोई दूसरा प्रधानंमत्री नहीं कर सका है। इसी वजह से 23 दिसंबर 2001 से चरण सिंह के जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाना शुरू किया गया।

भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है लेकिन इसके बाद भी यहां के किसानों की हालात इतनी खराब है कि हर दिन एक किसान अपने कर्ज या फसल खराब होने के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। सभी राजनीतिक पार्टिया किसान दिवस के दिन अपने आपको किसानों की सबसे बड़ी हितेषी बताने का प्रयास करती है लेकिन जब किसान अपना हक मांगते है तो वह उन पर ध्यान नहीं देती है। इन दिनों भी देश में किसानों के साथ ऐसा ही देखने को मिल रहा है

केन्द्र सरकार ने किसानों के अच्छे भविष्य के लिए 3 नये कृषि कानुन बना दिये लेकिन इसको लेकर देशभर के किसानों में भारी रोष देखने को मिल रहा है। किसानों ने इस तीनों को बीलों किसान के लिए एक शोषण का नया रास्ता बताया है और इन बिलों को खत्म करने के लिए कई राज्यों के किसान लगभग 28 दिनों से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे है।

किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए केन्द्र सरकार ने उनसे कई बार बातचीत की लेकिन अभी तक कोई उचित समाधान नहीं निकल पाया है। अगर देश का किसान इस तहर सड़कों पर आकर अपना हक मांगने लगेगा तो यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि भारत के सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था खेती के कारण जानी जाती है और अगर यह कड़ी कमजोर होती है देश को बहुत ज्यादा नुकसान उठाया पड़ सकता है।

केन्द्र सरकार से वार्ता के प्रस्ताव पर आज किसान संगठन लेंगे बड़ा फैसला!

नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है एक तरफ सरकार किसानों को वार्ता के लिए बार आग्रह कर रही है तो दूसरी ओर किसान तीनों बिलो को खत्म करने की मांग पर अड़े हुए है। सरकार और किसानों के बीच अब तक 5 दौर की बातचीत हुई है जो बिना नतीजे के रही है। किसानों के आंदोलन को खत्म करने और उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार ने पत्र लिखकर किसानों को एकबार फिर बातचीत के लिए प्रस्ताव भेजा है।

 

 

सरकार के इस प्रस्ताव पर आज किसान संगठनों की एक बैठक होने वाली है जिसमें सरकार के प्रस्ताव को लेकर अहम फैसला भी लिया जा सकता है। केंद्र सरकार ने सभी किसान संगठनों को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखकर उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।

सरकार ने किसान संगठन को अपनी पसंद से कोई भी तारीख चुन सकते हैं जब वे वार्ता के लिए तैयार हो इसी के मध्यनजर किसान संगठनों की आज की बैठक में केंद्र सरकार से वार्ता के लिए बड़ा फैसला ले सकते हैं। इसके साथ आंदोलन कर रहे है किसान नेताओं ने कहा कि हम सरकार को समर्थन देने वाले किसान संगठनों से नए कृषि कानूनों में क्या फायदा होगा इसको लेकर भी बात करेंगे। किसान आंदोलन ज्यादा लंबा होने के साथ इसका क्षेत्र भी व्यापक होता जा रहा है जो सरकार के लिए चिंता खड़ी कर रहा है।

 

 

किसानों की क्रमिक भूख हड़ताल और 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा-पंजाब मार्ग में टोल मुक्ति का ऐलान से लगता है कि किसानों का यह आंदोलन अभी खत्म होने वाला नहीं है। इससे पहले किसान संगठनों ने कानूनों में संशोधन और न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने का लिखित आश्वासन दिए जाने के केंद्र के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। अब यह देखना होगा कि मोदी सरकार और किसानों के बीच चल रही यह लड़ाई किस मोड़ पर जाकर रूकती है।

 

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