ममता के गढ़ को ध्वस्त करने की बीजेपी की जबरदस्त तैयारी

क्या पश्चिम बंगाल में क्या खिलेगा कमल 

 

कोरोना काल में विपक्ष के लगातार आलोचना का शिकार हो रही बीजेपी ने बिहार चुनावों के साथ उप चुनावों में शानदार जीत हासिल करके विपक्ष को एक बार फिर कमजोर साबित कर दिया है। इस जीत के बाद बीजेपी का हौसला 7वें आसमान पर है तो दूसरी तरफ विपक्ष अपनी हार पर केवल मंथन करने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहा है।

पिछले कुछ समय से बीजेपी ने ममता बनर्जी के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में अपनी जमीनी ताकत मजबूत क

रने में लगी हुई है और इसका प्रमाण 2019 के लोकसभा चुनावों में मिल चुका है और इसके बाद पंचायत चुनावों में बीजेपी ने अच्छी जीत हासिल करके ममता के गढ़ में सेंध मार दी है।

अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और बीजेपी चुनावों से पहले बंगाल को जीतने के लिए जबरदस्त तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों की माने तो चुनावों से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ कई बड़े मंत्री हर महीने बंगाल

का दौरा करेंगे। अगर बीजेपी बंगाल में वोट प्रतिशत के साथ सीटों की संख्या बढ़ाने में कामयाब होती है तो विधनासभा जाने का सफर ममता के लिए बहुत मुश्किल भरा हो जाएगा।

बंगाल चुनावों से पहले बीजेपी ने यह ऐलान कर दिया है कि वह इस बार बंगाल में कमल खिलाएगी और बंगाल का विकास करने के साथ सभी केन्द्र की सरकारी योजनाओं का लाभ देगी जो उसे अभी तक नहीं मिल पाया है।

वर्तमान समय में दलित समाज की होती – दुर्दशा आखिर क्यों –

At the present time, falling level of dalit politics – spark era

वर्तमान समय में दलित राजनीति का गिरता स्तर – चमचायुग शुरू –

भारतीय संविधान के शिल्पकार भारत रत्न  बाबा साहब डॅा. बी.आर. अंबेडकर की यह दूरदर्शिता ही थी कि उनके द्वारा गोलमेज़ सम्मेलन में भारत के दलितों (अनु.जाती / अनु. सूचित जन जाती /तथा पिछडा वर्ग ) के व्यस्क मतदाता के लिए दो मतों की मांग करना कितनी अहमियत रखती ,यदि मिस्टर गांधी द्वारा उसका आमरण अनशन के द्वारा प्रतिरोध नहीं किया जाता तो आज अधिकारों से वंचित मूलनिवासियो के अधिकारों से इस कदर खिलवाड़ नहीं किया जाता .

जो हम आज देखने को मजबूर हैं। कारण यह है कि बाबा साहब यह भली -भांति जानते थे कि दोहरे मतदान

का अधिकार यदि मूल -निवासियो को मिल गया होता तो भारत की लोकसभा और तमाम विधानसभाओं  में वास्तविक रूप से हमारे ही जनप्रतिधियो का प्रतिनिधित्व होता,जो आज देखने को भी नहीं मिलता है – और यहीं इस समाज का दुर्भाग्य भी है कि सुरक्षित सीटों से चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधि अपने समाज से अधिक अपनी स्वयं तथा अपने राजनीतिक दलों और उनके आंकाओ के तलवे  चाटने में अपनी बहादुरी समझने में संकोच नहीं करते हैं |

आज सत्ता के लालच में समाज के गणमान्य लोग बाबा साहब के सिद्धांतो के विपरीत जाकर मनुवादियों के षड्यंत्र में फंस गये है जिसका खामियाजा आज समाज अपने शोषण से दे रहा है अर्थार्त मनुवादी लोग हमेशा हमारे समाज के गरीब ,वंचित लोगों के शोषण हमारे समाज के पथ विहीन लोगों द्वारा ही करवा रहे है आज युवा पीड़ी बाबा साहब के सपनो के भारत के निर्माण के लीये वचनबद्ध है इस सकारात्मक मुहीम में हमारे युवा कामयाब ही हो रहे है |

बीजेपी का आंबेडकर प्रेम –

क्या बाबा साहब की इन 22 प्रतिज्ञाओँ से सहमत होंगे – मनुवादी 

14 अप्रैल को संविधान निर्माता आंबेडकर की जयंती पूरे देश में धूमधाम से मनाई गई। तमाम राजनैतिक दलों में बाबा साहब की जयंती के अवसर पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने की होड़ मची हुई थी। आश्चर्य की बात यह है कि बाबा साहब जिस हिंदुत्व और जातिवाद के खिलाफ ताउम्र लिखतें-लड़ते रहें उसी अमानवीय व्यवहार के पैरवीकार माने जाने वाले और बाबा साहब के विचारों से घोर असहमति रखने वाले तमाम राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन भी इस अवसर को मनाने के बहाने अपना उल्लू सीधा करते नज़र आए। अब मनाने और मान्यताओं में फर्क करना बहुत ज़रूरी हो गया है।
हैं 1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
2.मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा ।
3.मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
4.मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
5.मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
6.मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा।
7.मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा।
8.मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
9.मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ।
10.मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा।
11.मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा।
12.मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा।
13.मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा।
14.मैं चोरी नहीं करूँगा।
15.मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
16.मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा।
17.मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा।
18.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा।
19.मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हा
निकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप
मैं बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
20.मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है।
21.मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ।
22. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा।

 


यह लेखक के निजी विचार है |

लेख़क – मोहन लाल बैरवा – { सोशलिस्ट एक्टिविस्टएवं  एवं टीवी डिबेटर } जयपुर राजस्थान

गहलोत सरकार के खिलाफ़ – मुस्लिम

मुख्यमंत्री गहलोत के रवैये से मुसलमानों में कङा रोष –

मुस्लिम थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता की चौखट तक पहुंचाने में प्रमुख योगदान मुस्लिम वोटर का रहा है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुस्लिम वोटर की एकतरफा पोलिंग से विधायक बने हैं, इसके बावजूद गहलोत ने मुसलमानों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का रवैया बना रखा है। गहलोत के इस रवैये से मुसलमानों में कङा रोष है, जिसका का खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भुगतान पङ सकता है !
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एक मुस्लिम थिंक टैंक विधानसभा चुनाव परिणाम का अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन और आंकड़ों के आकलन के आधार पर थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में मुस्लिम वोट करीब 90 फीसदी पोल हुआ है और कुछ सीटों को छोड़कर यह वोट एकतरफा कांग्रेसी उम्मीदवारों को मिला है। जिसके नतीजे में कांग्रेस को 100 सीटें मिली हैं और वो 

हारती हारती बची है। अगर मुस्लिम वोट 20 फीसदी भी कम पोल हो जाता, तो कांग्रेस को 60 सीटें भी नहीं मिलती !


जयपुर। दो महीने पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए। जिनमें कांग्रेस को 99 सीटें मिली। हालांकि बाद में रामगढ सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस जीत गई और उसकी कुल 100 सीटें हो गई, बहुमत से एक कम। मतगणना के एक सप्ताह बाद मुख्यमंत्री कौन बने ? के सवाल की जंग खत्म हुई और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री व सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके कई दिनों बाद मन्त्रीमण्डल का गठन हुआ। मन्त्रीमण्डल में एक मुस्लिम को मन्त्री बनाया गया, जबकि पिछले तीन दशक में जब भी राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रही है, तब तीन से कम मुस्लिम मन्त्री कभी नहीं रहे। मन्त्रीमण्डल का

गठन होते ही मुसलमानों में कङा रोष व्याप्त हो गया। जिसकी चर्चा चाय चौपालों से लेकर सोशल मीडिया पर शुरू हो गई। लोगों ने गहलोत के इस रवैये की कङी आलोचना करते हुए नाराज़गी का इजहार किया।

इसके कुछ दिनों बाद विभागों का बंटवारा हुआ और मुसलमानों के नाम पर बनाए गए एकमात्र मन्त्री पोकरण विधायक सालेह मोहम्मद को अल्पसंख्यक मामलात का मामूली मन्त्रालय देकर इतिश्री कर दी। तो मुस्लिम समुदाय में व्याप्त रोष और तीव्र हो गया। फिर एएजी की नियुक्तियां हुईं और उनमें एक भी मुस्लिम एडवोकेट को शामिल नहीं किया गया। जबकि एएजी के नाम पर करीब डेढ़ दर्जन वकीलों की नियुक्ति हुई है। इसके बाद मुस्लिम बुद्धिजीवियों ख़ासकर वकीलों ने कङी नाराज़गी का इजहार किया। कांग्रेस से जुड़े हुए मुस्लिम वकीलों ने एक बैठक आयोजित करने की भी योजना बनाई, हालांकि वो किसी कारणवश आयोजित नहीं हो

सकी। एएजी की नियुक्तियों के बाद अन्दरखाने कांग्रेसी मुस्लिम नेताओं ने भी मुख्यमंत्री गहलोत की आलोचना शुरू कर दी और गहलोत के इस रवैये को पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा दिया। इसके बाद एक मुस्लिम एडवोकेट को सरकारी वकील के साथ एएजी बनाया।

सीएम गहलोत के इस रवैये से मुसलमानों में कङा रोष है और मुस्लिम समुदाय अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सियासी तौर पर जागरूक मुसलमानों का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता की चौखट पर पहुंचाने वाला मुस्लिम समुदाय है। इसके बावजूद गहलोत मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे हैं और वो कांग्रेस को भाजपा की बी टीम बनाने पर तुले हुए हैं, जिसका खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भुगतान पङ सकता है। इस बीच एक मुस्लिम थिंक टैंक ने विधानसभा चुनाव परिणाम का अध्ययन शुरू किया है और इस थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार मुस्लिम वोटर की देन है। इस थिंक टैंक ने इकरा पत्रिका से भी सम्पर्क किया और इकरा पत्रिका की टीम ने थिंक टैंक के आंकड़ों और विश्लेषण का अध्ययन किया। यह एक विस्तृत रिपोर्ट है, जो एक लेख में प्रकाशित करना सम्भव नहीं है। इसलिए आगामी अंकों में विस्तार से इस रिपोर्ट पर आधारित लेख प्रकाशित किए जाएंगे। फिर भी कुछ आंकड़े इस लेख में भी प्रकाशित किए जा रहे हैं।

इस थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में मुसलमानों का वोट करीब 90 फीसदी पोल हुआ है और कुछ मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर तो इससे भी अधिक वोट पोल हुआ है। नगर, तिजारा, उदयपुरवाटी, सीकर जैसी कुछ विधानसभा सीटों को छोड़कर यह वोट एकतरफा पूरा का पूरा कांग्रेसी उम्मीदवारों को मिला है। जिसके नतीजे में कांग्रेस को 100 सीटें मिली हैं और वो हारती हारती बची है तथा राजस्थान की सत्ता कांग्रेस की झोली में आई है। इस थिंक टैंक का मानना है कि अगर राजस्थान में मुसलमानों का वोट 20 फीसदी भी कम पोल हो जाता, तो कांग्रेस की 60 सीट भी नहीं आती और वो आज विपक्ष में बैठी होती। इस थिंक टैंक का यह भी दावा है कि कांग्रेस को मुसलमानों के अलावा किसी भी जाति या समुदाय का 65 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिला है। कुछ जातियों का तो कांग्रेस को 20 फीसदी से भी कम वोट मिला है, फिर भी कांग्रेस सरकार ने उन जातियों से सम्बंधित नेताओं को मन्त्रीमण्डल और एएजी जैसे पदों पर मुस्लिम से ज्यादा नियुक्तियां दी हैं। इनका आकलन यह भी बता रहा है कि किसी भी जाति का 65 फीसदी से अधिक वोट कांग्रेस को उसी सीट पर मिला है, जिस सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार उसी जाति का था तथा भाजपा या अन्य पार्टी का कोई मजबूत उम्मीदवार दूसरी जाति का था। जबकि मुसलमानों का वोट न सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार वाली सीटों पर बल्कि कमोबेश अन्य सभी सीटों पर भी 90 फीसदी के करीब पोल हुआ है तथा यह एकतरफा कांग्रेस को मिला है। इसके बावजूद सीएम गहलोत मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

अगर कांग्रेस के कुछ विजयी उम्मीदवारों को मिले वोट और जीत के अन्तराल का अध्ययन करें, तो मालूम होता है कि वे मुस्लिम वोट की वजह से जीते हैं, यहाँ तक के खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुस्लिम वोटों की वजह से विधायक बने हैं। यहाँ कुछ ऐसी ही सीटों के आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, जहाँ मुस्लिम वोट 50 हजार से अधिक हैं। इनमें एक सरदारपुरा विधानसभा सीट है, जहाँ से खुद मुख्यमंत्री गहलोत विधायक बने हैं। वे यहाँ से 45 हजार 597 वोटों के अन्तर से जीते हैं और उन्हें करीब 65 हजार मुस्लिम वोटर वाली इस सीट पर एकतरफा मुस्लिम वोट मिले हैं। दूसरी सीट टोंक जहाँ से उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट 54 हजार 179 वोटों के अन्तर से विजयी हुए हैं। तीसरी सीट कोटा उत्तर जहाँ से यूडीएच मन्त्री शान्ति धारीवाल 17 हजार 945 वोटों की लीड से जीतकर विधायक बने हैं। चौथी सीट बीकानेर पश्चिम जहाँ से कैबिनेट मन्त्री बी डी कल्ला 6 हजार 190 वोटों के अन्तर से विजयी हुए हैं। पांचवी सीट झुन्झुनूं जहाँ से बृजेन्द्र ओला 40 हजार 565 वोटों की लीड लेकर विधानसभा पहुंचे हैं। यह सब वो सीट हैं जहाँ मुसलमानों के 50 हजार से अधिक वोट हैं और वे एकतरफा कांग्रेस के खाते में डले हैं।

लेख़क -एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।

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