डॉ०आंबेडकर के बिना अधूरा है भारत –

डॉ०आंबेडकर के बिना अधूरा है भारत,महापरिनिर्वाण दिवस पर आदरांजलि

20वीं शताब्दी के श्रेष्ठ चिन्तक, ओजस्वी लेखक, तथा यशस्वी वक्ता एवं स्वतंत्र भार

त के प्रथम कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माणकर्ता हैं। विधि विशेषज्ञ, अथक परिश्रमी एवं उत्कृष्ट कौशल के धनी व उदारवादी, परन्तु सुदृण व्यक्ति के रूप में डॉ. आंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है।

डॉ. आंबेडकर ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पहले एम. ए. तथा बाद में पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की । उनके शोध का विषय “भारत का राष्ट्रीय लाभ” था। इस शोध के कारण उनकी बहुत प्रशंसा हुई। 1923 में बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत शुरु की अनेक कठनाईयों के बावजूद अपने कार्य में निरंतर आगे बढते रहे।

डॉ. आंबेडकर की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। वह इसे मानव की एक पद्धति (Way of Life) मानते थे। उनकी दृष्टी में राज्य एक मानव निर्मित संस्था है। इसका सबसे बङा कार्य “समाज की आन्तरिक अव्यवस्था और बाह्य अतिक्रमण से रक्षा करना है।“ परन्तु वे राज्य को निरपेक्ष शक्ति नही मानते थे। उनके अनुसार- “किसी भी राज्य ने एक ऐसे अकेले समाज का रूप धारण नहीं किया जिसमें सब कुछ आ जाय या राज्य ही प्रत्येक विचार एवं क्रिया का स्रोत हो।“
अनेक कष्टों को सहन करते हुए, अपने कठिन संर्घष और कठोर परिश्रम से उन्होंने प्रगति की ऊंचाइयों को स्पर्श किया था। अपने गुणों के कारण ही संविधान रचना में, संविधान सभा द्वारा गठित सभी समितियों में 29 अगस्त, 1947 को “प्रारूप-समिति” जो कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति थी, उसके अध्यक्ष पद के लिये बाबा साहेब को चुना गया। प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। संविधान सभा में सदस्यों द्वारा उठायी गयी आपत्तियों, शंकाओं एवं जिज्ञासाओं का निराकरण उनके द्वारा बङी ही कुशलता से किया गया। उनके व्यक्तित्व और चिन्तन का संविधान के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पङा। उनके प्रभाव के कारण ही संविधान में समाज के पद-दलित वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उत्थान के लिये विभिन्न संवैधानिक व्यवस्थाओं और प्रावधानों का निरुपण किया ; परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान सामाजिक न्याय का एक महान दस्तावेज बन गया।

अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर इह लोक त्यागकर परलोक सिधार गये।भारत रत्न से अलंकृत डॉ. भीमराव अम्बेडकर का अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

लेखक : कपिल गोतम प्रेम  { सम्यक शिक्षक संघ , स्वत्रन्त्र पत्रकार }

ज़ेल जा सकते है आप नेता कुमार विश्वास –

यूपी के बुलंदशहर में कुमार विश्वास उर्फ मनीष शर्मा पर बाबा साहब पर टिप्पणी करने पर हुआ मुकदमा दर्ज-

आप नेता कुमार विश्वास उर्फ मनीष शर्मा ने सविंधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ०भीमराव अंबेडकर जी पर आपत्ति जनक व जाति सूचक टिप्पणी कर बुरे फ़स गए है | राजस्थान में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कुमार विश्वास ने कहा था की   “एक आदमी आरक्षण के नाम पर आंदोलन कर गया था एक आदमी (अम्बेडकर) यहाँ  आकर जाति का बीज बो गया था ।
उससे पहले यहां जाति वाद नहीं था । सब मिलकर रहते थे ।  आप नेता कुमार विश्वास ने कहा मेरे गाँव में  एक मेहतरानी मेरी दादी के साथ ब्याह कर साथ आई थी  वह मेहतरानी हमारे घर की बहू को घूंघट न करने पर हजार गालियां सुनाकर चली जाती थी और हम उसे कुछ नहीं कहते थे । यानी इतनी इज्जत थी उसकी। ”

कुमार विश्वास की कही हुई बातो से सम्पूर्ण दलित समुदाय और विभिन्न सामाजिक संघटनो ने आपत्ति दर्ज कराई है | उ

नका का कहना है की आप नेता कुमार विश्वास सस्ती लोकप्रियता के लिए डॉ बाबा  साहब जैसे महापुरुष पर ऐसे अपशब्द का प्रयोग कर गठिया राजनीती  कर रहे है आज बुलंदशहर में कुमार विश्वास उर्फ मनीष शर्मा पर बाबा साहब पर टिप्पणी करने पर मुकदमा दर्ज कराया है

सामाजिक कार्यकर्त्ता कपिल गोतम प्रेम ने कहा है की – डॉ बाबा साहब आंबेडकर पर टिप्पणी कर आप नेता कुमार विश्वास  ने अपने कुंठित मानसिकता का परिचय दिया है , ऐसे असामाजिक तत्व ( कुमार विश्वास  ) को ज्ञात नहीं है की आज जो वह सस्ती लोकप्रियता के लिए महान सामाजिक ,देश व् संविधान निर्माता व् बाबा साहब को लेकर जाती -सूचक शब्दों का प्रयोग कर रहे है  इससे यह पता लगता है की कुमार विश्वास भारत देश की सांस्करतिक विरासत से अंजान है , उन्हें ( कुमार विश्वास ) बाबा साहब और देश के बारे में पढ़ना चाहिए और अपने ज्ञान के स्तर में बढ़ना चाहिए |

 बाबा साहेब द्वारा बनाया गया “भारतीय सविंधान” भारत को सदियों तक ऊर्जावान रखेगा- कपिल गौतम प्रेम

 सविंधान दिवस विशेष – बाबा साहेब द्वारा बनाया गया सविंधान सदियों तक भारत को ऊर्जावान बनाये रखेगा- कपिल गौतम प्रेम

सविंधान महज एक औपचारिकता नही है यह एक समाज,एक गांव,एक देश सभी को ध्यान में रखकर और सभी अंगों से मिलकर बना है।
26 नवंबर 1949 को बाबा साहेब डॉ०आंबेडकर ने सविंधान को प्रस्तुत किया और अंगीकार कर भारत के लोगों को सौंप दिया गया।सविंधान दिवस पर अगर डॉ०आंबेडकर को याद ना किया जाए तो यह एकदम अधूरा है आइये एक नजर डालते हैं हम कैसे बने इस सविंधान के अंग-भारतीय राजनीति व समाज के ऐतिहासिक परिदृश्य में, डॉ. भीमराव अंबेडकर का उदय एक ऐसे जननेता के रूप में हुआ जिसने व्यक्तिगत संघर्ष की बुनियाद पर अपना सारा जीवन समाज की मुख्यधारा से विमुख, जीवन-यापन कर रहे, वंचितों, शोषितों, पीड़ितों के हक की लड़ाई में समर्पित कर दिया। समग्र विकास की उनकी यह विचारधारा (दृष्टिकोण) संविधान निर्माण के दौरान भी परिलक्षित हुई, जो समानता व सर्वकल्याण की वैचारिकी पर केंद्रित है। तत्कालीन परिस्थिति में संविधान का निर्माण निश्चय ही एक दुरुह कार्य था। ऐसे मुश्किल वक्त में बाबा साहेब ने बड़े ही धीरज के साथ प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में अपनी बेहतरीन प्रबंधन क्षमता से भावी संविधान का मसौदा तैयार कर विश्व के अनोखे संविधान के निर्माण की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त किया। बाबा साहेब अपने आप में एक संस्था हैं। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व आज भी देशवासियों को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। वे एक विद्वान, विधिवेत्ता और अनेक विधाओं के ज्ञाता थे। ऐसी शख्सियत के बारे में संपूर्णतः जानना और समझना भी अपने आप में एक चुनौती है।

बाबा साहेब के अद्वितीय विद्वान बनने से पहले का उनका एक ‘दर्दनाक’ इतिहास रहा है। मैं आपके बिना कुछ पढ़े फिर से कुछ बातें जरूर दोहराना चाहूँगा, उनका जन्म, एक बहुत ही साधारण से परिवार में मध्य प्रदेश के महू में भीमाबाई सकपाल औ

र रामजी की 14वीं संतान के रुप में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। अंबेडकर का संपूर्ण जीवन प्रेरणाओं से भरा हुआ है। उनका जीवन-संघर्ष देशवासियों को आगे बढ़ने में एक उदाहरण के काम करता है। दरअसल, तब ऐसी परिस्थितियां थीं, जब समाज का एक वर्ग दोयम दर्जे के व्यवहार के योग्य समझा जाता था। स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, पेयजल जैसी तमाम बुनियादी सुविधाएं इन सबके पहुंच से दूर थीं। यह सब प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में विद्यमान वर्ण व्यवस्था के असमान वर्गीकरण के कारण रही हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र के अलावे भी समाज में कई जातियां रहती थीं, जिसे वर्ण व्यवस्था में स्थान तक नहीं दिया गया था। ऐसी जातियों के लोगों को समाज में ‘अछूत’ समझा जाता था। ऐसे समूहों का सामाजिक-आर्थिक रूप से शोषण किया जाता था।

डॉ० अंबेडकर को भी इन कुरीतियों से दो-चार होना पड़ा। हिन्दुओं में प्रचलित वर्ण तथा जाति व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों ने दृढ़ इच्छाशक्ति से संकल्पित भीमराव को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। वे स्वयं महार नामक अछूत जाति से संबंध रखते थे। इस कारण, उन्हें उच्च वर्ग के भेदभाव और अन्याय का सामना करना पड़ा। स्वयं, उनके गांव में उनके समुदाय के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। अंबेडकर को विद्यालय में भी सामाजिक भेदभाव व असमानता का सामना करना पड़ा। कक्षा में उसे अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था। अन्य बच्चे उनसे बात तक नहीं करते थे। यहां तक कि उन पर शिक्षक ध्यान भी नहीं देते थे। बाबा साहेब का प्रारंभिक जीवन अत्यंत कठोर रहा है। सकारात्मक बात यह थी कि वे इन विपरीत परिस्थितियों के समक्ष कभी झुके नहीं।

बाबा साहेब ने उच्च वर्ग की हर चुनौती को स्वीकार किया। वे यह भलीभांति जानते थे कि देश के विकास और कुरीतियों से मुक्ति का एकमात्र रास्ता शिक्षा प्राप्त करना ही है। कई कठिनाइयों के बावजूद अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने ना सिर्फ देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षा ग्रहण की, बल्कि विदेशी विश्वविद्यालयों से भी एक शिक्षार्थी के रूप में जुड़े। देश-विदेश के प्रमुख कालेजों से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उसने भारतीय समाज-संस्कृति की कुरीतियों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। वे दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिये काम करना चाहते थे। सन् 1926 में, वे बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन 1927 में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया।

आजादी की प्राप्ति तथा संविधान निर्माण के बाद देश में दलितों तथा अछूत माने जाने वाले समुदाय की स्थिति बहुत हद तक सुधरी है। संविधान में ‘अछूत’ माने जाने वाली जातियों को परिभाषित कर उन्हें एक विशेष वर्ग- ‘अनुसूचित जाति’ के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान की नजर में सभी नागरिक समान हैं। संविधान के अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को अपराध घोषित किया गया है। हिंदू समाज में कलंक के रूप में व्याप्त अस्पृश्यता को अनुच्छेद 17 अंत करता है और सभी रूपों में अस्पृश्यता के व्यवहार को निषिद्ध करता है। वहीं, अनुच्छेद 26 में उपलब्ध अवसरों की समानता की बात कही गयी है। इसी तरह, अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारों की रक्षा की बात करता है। विशेष बात यह है कि आज सभी देशवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता तथा शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा भी, संविधान में अनेक अनुच्छेद व अधिनियमों का प्रावधान कर समाज में उनके अधिकारों की रक्षा हेतु प्रयास किये गये हैं। इसका सुफल यह है कि आज हर क्षेत्र में कमजोर तबके की हिस्सेदारी बढ़ रही है। मंदिर, तालाब तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अब उन्हें जाने की खुली छूट है।

बाबा साहेब, एक ऐसे विभेद-रहित समाज की स्थापना का स्वप्न देखते थे; जहां समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचे और समाज में उनकी सहभागिता स्थापित की जाए। वे स्त्री-शिक्षा के हिमायती थे। उनका कहना था कि एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री से होता है। शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण व्यापक था। उनका विचार था कि ‘शिक्षा शेरनी के समान है, जिसका दूध पीकर हर बच्चा दहाड़ने लगता है।

डॉ० अंबेडकर जयंती को, सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से मनाकर, खुद को दलितों का उद्धारक साबित करने के प्रपंची प्रयास वर्षों से करती आयी हैं। दुर्भाग्य यह है कि छोटी-बड़ी क्षेत्रिय पार्टियों से लेकर राष्ट्रीय पार्टियाँ; सभी वोट बैंक की राजनीति के तहत, एक बड़े वर्ग को लुभाने के लिए उनके नाम का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। भारतीय राजनीति की यह बड़ी विडंबना है कि यहां जाति व संप्रदाय आधारित राजनीति होती है। किसी भी मुद्दे अथवा विवाद के समाधान पर सामूहिक विचार-विमर्श के स्थान पर, उसे राजनीतिक रंग देकर जाति व धर्म के परंपरागत बंधनों में बांधने की कोशिश हमारे तमाम सियासतदान करते रहे हैं। बाबा साहेब का विचार था ‘हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।’ दुर्भाग्य यह है कि आज लोग ‘भारत माता की जय’ अथवा ‘वंदे मातरम’ बोलने और ना बोलने को लेकर परेशान हैं। बाबा साहेब आज जीवित होते, तो वे निराश जरूर होते। जिस, भारत को संवारने के लिए असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, वहां लोग देश की एकता और अखंडता को तोड़ने पर आमदा नजर आते हैं।

आज बाबा साहेब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा बनाया हुआ सविंधान जिससे कई हजार वर्षों की बेड़ियाँ तोड़ उनको नया जीवन दिया, उनके विचार व दर्शन सदियों तक लोगों को ऊर्जावान बनाए रखेंगे। जरूरी यह है कि बाबा साहेब डॉ० अंबेडकर के विचार व दर्शन से युवा पीढ़ी को परिचित कराया जाए। डॉ० अंबेडकर भारत रत्न हैं। वे देश के नेता हैं। उन्हें बांटा न जाये और न ही किसी सीमा में बांधा जाए। वे कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और सदैव रहेंगे।

खासकर मेरा युवाओं के लिए संदेश है कि हमारे समाज मे समय समय पर महापुरुषों ने जन्म लेकर हमें राह दिखाई है चाहे बुद्ध ,नानक,कबीर,रैदास,नारायण गुरु , शाहू जी महाराज,फूले ,बाबा साहेब सभी ने समाज का नेतृत्व किया है आओ युवाओं से भी उम्मीद करते हैं कि बाबा साहेब के सविंधान के अनुसार आगे बढ़ते हुए मिशन की बागडोर संभालो और अपने भारत देश का हुक्मरान बनो।

भारत के लोग सविंधान दिवस का आयोजन करते हैं क्योंकि सविंधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी को वो याद कर सकें, स्वंतत्रता , शांति से आज़ादी का पर्व मना सकें।

आप सभी को सविंधान दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

 

कपिल गौतम प्रेम
संस्थापक/अध्यक्षसम्यक शिक्षा संघ
9456673068

( लेखक युवा पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं )

कांशीराम को जिंदा कर दिया सामाजिक कार्यकर्ता कपिल प्रेम ने-

        कांशीराम…………

मान्यवर दीनाभाना ने जब मान्यवर कांशीराम को यशकायी डीके खापर्डे से मिलवाया तो उन्होनें मा. कांशीराम साहब को बाबा साहब की पुस्तक एनिहिलेशन आफ कास्ट पढने के लिए दिया। मा. कांशीराम ने बाबा साहब की पुस्तक एनिहिलेशन आफ कास्ट को तीन बार पढा और आन्दोलित हो गये। यहां से मा. कांशीराम का जीवन और उनका उद्देश्य पूर्णत: बदल गया एवं यहीं से मा. कांशीराम के जीवन में एक नयी स्फुर्ति आयी और उन्होंने मा. डीके खापर्डे, मा. दीनाभाना एवं अन्य साथियों के मिलाकर भारत में बहुजन आन्दोलन की शुरूआत की।
मा. कांशीराम ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आन्दोलन का गहन अध्ययन किया तो इन्होंने देखा कि बाबा साहब के परिनिर्वाण के बाद उनका कारवां रूक गया है। इसलिए जहां-जहां से कारवां रुका था वहां-वहां से पुनः हमें आंदोलन रिस्टार्ट करना पडेगा। इसके बाद वे जी जान से इसे दोबारा से शुरू करने में जुट गए।

 

  1. पूना पैक्ट का धिक्कार:-
    मा. कांशीराम इस नतीजे पर पहुंचे कि अछूतों को मिलने वाले पृथक निर्वाचन के अधिकार को पूना पैक्ट ने समाप्त कर दिया और वह हथियार जो अछूतों को मिला था उसे गांधी जी ने पूना पैक्ट कराकर यहां की शासक जातियों को पकडा दिया। यदि पृथक निर्वाचन प्रणाली रहती तो अछूत लोग अपनी सीट पर अपना प्रतिनिधि तो चुनते ही चुनते, लेकिन दूसरे वोट से सामान्य सीट पर भी हार एवं जीत का फैसला अछूत ठीक वैसे ही करते जैसे कि पूना पैक्ट के बाद अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीट पर हार एवं जीत का फैसला वर्तमान में तथाकथित उच्च जातियाँ करती हैं। यदि पृथक निर्वाचन प्रणाली रहती तो अछूतों के अन्दर भी एक वर्ग के रूप में वोट देने की आदत विकसित हो जाती इसलिए सामान्य सीट वाला भी अछूतों से डरता और उनके मुद्दों पर चुप्पी नहीं साधता एवं आरक्षित सीट पर भी आज की तरह चमचे नही जीत सकते थे। परंतु ऐसा नहीं हुआ और गांधी जी के आमरण अनशन के कारण मजबूर होकर बाबा साहब को पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करना पड़ा जिसके कारण संयक्त निर्वाचन प्रणाली लागू हुई। इसलिए ही आरक्षित सीट पर हार एवं जीत का फैसला आज-कल शासक जातियां कर रही है। इससे अछूतों में दलाल पैदा होते जा रहे हैं और ये प्रतिनिधि विधान सभा एवं लोकसभा में मुह में ताला लगाये रहते हैं। समाज को जागरूक करने के लिए ही इनकी आलोचना में ही उन्होंने चमचा युग पुस्तक लिखी और पूना पैक्ट का धिक्कार किया।

  2. गैर राजनीतिक जड़ (Non Political Root):-

दूसरी बात उन्होंने आरपीआई से सीखा कि हमारा राजनैतिक आंदोलन इसलिए सफल नहीं हो रहा है क्योंकि हमारी गैर राजनैतिक अर्थात सामाजिक जड़ें मजबूत नहीं हैं। यह बात बाबा साहब डा अंबेडकर की ही लाइन को आगे बढा रही थी कि सामाजिक आंदोलन, राजनैतिक आंदोलन से आगे-आगे चलना चाहिए (Social reform must precede the Political reform)

  1. पे बैक टू सोसायटी (Pay back to society):-

ज्योतिबा फुले, साहूजी महाराज, बाबा साहब आंबेडकर एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के सभी संतों एवं गुरुओं के चलाये आंदोलन का परिणाम था कि एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग में पढ़ा-लिखा कर्मचारी-अधिकारी वर्ग तैयार हो गया था जो आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी मे प्रवेश कर गया था। इस वर्ग के समय, प्रतिभा एवं पैसा (time, talent, treasury) उपलब्ध है परंतु इस वर्ग में अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का अभाव था। इसी वर्ग को संबोधित करते हुए बाबा साहब ने 18 मार्च 1956 को आगरा में कहा था कि “मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं तो समझ रहा था कि ये पढ़े-लिखे लोग समाज के आंदोलन को आगे ले जायेंगे लेकिन यहां तो क्लर्कों की भीड़ खड़ी हो गयी जो अपना ही पेट पालने में लगे रहते हैं”। इस वर्ग को जागृत करने के लिए मान्यवर ने Pay back to society का सिद्धान्त तैयार किया और नौकरी पेशा लोगों को समझाया कि, “आपको जो नौकरी मिली है वह प्रतिनिधित्व के कारण मिली है और प्रतिनिधित्व पुरखों द्वारा चलाये आंदोलन का प्रोडक्ट है। अर्थात समाज का आपके ऊपर ऋण है और इसलिए आपका सामाजिक उत्तरदायित्व है कि आप अपने समाज को अपना मनी, माइंड, टाइम शेअर करें और समाज के ऋण से उऋण हो”।  इस प्रकार पढ़े-लिखे कर्मचारी-अधिकारी वर्ग को उनका सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility) समझा कर उसको pay back to society के लिए तैयार किया।

4- बहुजन पहचान (Bahujan Identify):-

बाबा साहब के जीवन काल में अछूतों की 6 जातियां उनके आंदोलन से जुड गयी थीं। ये जातियां हैं, 1- महाराष्ट्र के महार, 2- उत्तर भारत के चमार+जाटव, 3- बंगाल के नमोशुद्राय, 4- मद्रास के परियाह 5-आन्ध्रा के माला, 6-मध्य प्रदेश के सतनामी। इन जातियो ने बाबा साहब के आधुनिक, तर्कसंगत एवं बैज्ञानिक विचारधारा अपनाने के कारण अपने-अपने क्षेत्रों मे अछूतों की दूसरी उप-जातियां जो पुराने रूढ़िवादी विचारधारा मे जकड़ी हुई हैं, से ज्यादा आगे बढ़ीं।

 

मा. कांशीराम ने जाति के गणित को समझा और देखा कि यह छोटी जातियां तो अल्प जन हैं अतः इनको बहुजन बनाना होगा और इसके लिए उन्होंने नया नारा दिया कि जाति तोडो समाज जोडो। इस प्रकार उन्होने जाति पहचान (cast Identity) को वर्गीय पहचान (Class Identity) मे बदला। उन्होंने देखा कि दुश्मन ने हमें 6743 जातियों में विभक्त कर दिया है और इनके बीच भार्इचारे का अभाव है इसलिए इनके बीच भार्इचारा डालना होगा। इसलिए उन्होंने इनमें भार्इचारा बढाने के बारे में भार्इचारा सम्मेलन आयोजित किया। उन्होंने गांधी की दी गयी हरिजन की अपमानजनक पहचान को चुनौती दिया। तथागत बुद्ध द्वारा दिया गया शब्द बहुजन पहचान पर समाज को अल्पजन से बहुजन बनाने का सामाजिक आंदोलन चलाया। बहुजन शब्द एक विशाल शब्द है। यह शब्द उन्होंने तथागत बुद्ध से प्रभावित होकर लिया था। इस विषय में संवैधानिक रूप से बाबा साहब द्वारा संबिधान मे इस्तेमाल बैकवर्ड क्लास (एससी,एसटी,ओबीसी वर्ग) शब्द, कांशी राम साहब की मदद कर रहा था। बैकवर्ड क्लास (एससी,एसटी,ओबीसी वर्ग) शब्द कानूनी पहचान थी। कांशीराम ने इसे ही नर्इ सामाजिक पहचान बहुजन दिया और समीकरण को उलट दिया कि हम एससी,एसटी,ओबीसी वर्ग,  85 प्रतिशत बहुजन हैं और 15 प्रतिशत शासक जातियां अल्पजन हैं। उन्होंने कहा कि बडी विडम्बना है 85 प्रतिशत वाला हाथ फैलाकर 15 प्रतिशत  वाले से मांग रहा है। इसलिए उन्होंने नारा दिया कि हमें मांगने वाला नहीं देने वाला बनना है और इसके लिए एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग और इनसे धर्मांतरित आप्लसंख्यक वर्ग को एक पहचान पर संगठित करने का प्रयास किया और वह एक पहचान थी बहुजन पहचान। हर शब्द का एक संदेश होता है। कांशीराम द्वारा चुना गया बहुजन शब्द कर्इ संदेश दे रहा था

i- हम इस देश में बहुजन हैं अर्थात दुश्मन अल्पजन हैं।

II- बहुजन बहुसंख्यक हैं और लोकतंन्त्र में तो बहुमत की सरकार होती है यह शब्द हमारे अन्दर शक्ति एवं सम्मान लाता है तो दुश्मन के अन्दर भय।

III- यह शब्द हमें तथागत बुद्ध से जोड़ता है।
मा. कांशीराम ने कहा कि जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती तथा अपने महापुरूषों का आदर और सम्मान नहीं करती है उसका विकास कभी नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने बहुजन समाज का इतिहास बताया कि आर्य ब्राह्मण विदेशी हैं और बहुजन समाज इस देश का मूलनिवासी है।
उन्होंने भारत देश मे बहुजन समाज के महापुरूषों को फिर से स्थापित किया जिसमें राष्ट्रपिता फूले, छत्रपति शाहूजी महाराज, पेरियार रामासामी नायकर, नारायना गुरू, संत कबीर दास, संत रविदास, गुरु घासी दास, विरसा मुण्डा इत्यादि थे। कांशीराम ने पेरियार की बात आगे बढाते हुए कहा कि हमारा आंदोलन सेल्फ रेस्पेक्ट का है अतः यह सेल्फ हेल्प से ही लड़ा जायेगा क्योंकि अगर आप किसी का सहारा लेते हैं तो उसका इशारा भी मानना पडेगा। अतः आंदोलन अपने संसाधनों से ही खड़ा होना चाहिए। कांशीराम ने नारा दिया कि जो बहुजन की बात करेगा वो दिल्ली से राज करेगा और राज प्राप्त होने पर जाति विशेष को नहीं सभी जातियों को बराबर का लाभ मिलेगा और इसके लिए दूसरा नारा दिया कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागेदारी।
कांशीराम ने कहा कि मैं सम्राट अशोक के विशाल भारत का पुनर्निर्माण चाहता हूं और विदेशी आर्य ब्राह्मण जो घोडे पर बैठकर आये थे अगर उन्होंने अपने आचरण में सुधार नहीं किया तो उनको बाहर भी भेजा जा सकता है।
मान्यवर ने आंदोलन की शुरूआत में ही नौकरी त्याग दिया और अपने लिए स्वयं ही चार शर्तें निर्धारित की .

1 मैं शादी नहीं करूगा।

2 मैं घर नहीं जाउंगा।

3 मेरी कोर्इ सम्पति नहीं होगी।

4 मैं अपना पूरा जीवन फूले-अम्बेडकरी आंदोलन के लिए समर्पित करूगा।
इन शर्तों का पालन कर कांशीराम ने त्याग की एक नर्इ मिशाल प्रस्तुत की और इस त्याग के कारण समाज में उनकी स्वीकार्यता बढी। इसलिए उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 6 दिसम्बर 1973 को बामसेफ, 6 दिसम्बर 1981 को डीएस-4 और 14 अप्रैल 1984 को बीएसपी बनार्इ।

मान्यवर ने बहुजन आंदोलन प्रारम्भ करने से पूर्व आरएसएस, वीएचपी, बीजेपी का भी अध्ययन किया और इसको काउन्टर करने के लिए उन्होंने तीन संगठन बनाये। बामसेफ एक सांस्कृतिक संगठन था जो कि आंदोलन के लिए ब्रेन का काम करता था और इसका उद्देश्य आंदोलन के लिए मानव संसाधन और आर्थिक संसाधन निर्माण करना था और पूरे आंदोलन पर वैचारिक नियंत्रण रखना था। बामसेफ संगठन गैर राजनैतिक (Non Political), गैर धार्मिक (Non Religious), गैर संघर्षात्मक (Non Agitational) था अर्थात यह संगठन आरएसएस के सामान्तर में बनाया गया। दूसरा संगठन उन्होंने डीएस-4 बनाया जो कि संघर्षात्मक (Agitational) संगठन था और इसका उपयोग वही था जो आरएसएस के लिए वीएचपी का है। तीसरा संगठन बीएसपी राजनैतिक संगठन था जैसे कि आरएसएस के लिए बीजेपी है।
5. मान्यवर से एक छोटी सी भूल:-
यहां पर मान्यवर से एक छोटी सी गलती हो गयी कि बामसेफ एक गैर राजनैतिक सांस्कृतिक/सामाजिक संगठन था अतः डीएस-4 एवं बीएसपी बनाने के पहले उनको बामसेफ को किसी योग्य उत्तराधिकारी को सौंप देना चाहिए था या फिर यदि उन्हे बामसेफ चलाना चाहिए था और डीएस-4 एवं बीएसपी किसी योग्य व्यक्ति को सौप देना चाहिए था। क्योंकि उन्होने स्वयं बामसेफ को गैर राजनैतिक/ गैर संघर्षात्मक माना था तो इसका नेतृत्व एक राजनैतिक व्यक्ति कैसे कर सकता था? उनको एक मेथडोलॉजी विकसित करनी चाहिए थी जिससे कि बामसेफ, डीएस-4 और बीएसपी के बीच आन्तरिक संबंध और सहयोग चलता रहे और तीनों संगठनों का स्वतंत्र स्वरूप भी बना रहे। तीनों संगठन समानान्तर में एक साथ परस्पर सहयोग एवं संयोजन के साथ अपने–अपने क्षेत्र सामाजिक, संघर्षात्मक एवं राजतीतिक मे चलते रहे और विकसित होते रहे। परन्तु मान्यवर ने बामसेफ, डीएस-4 और बीएसपी तीनों ही संगठनों का स्वयं नेतृत्व करते रहे और इस तरह एक्स, एक्स, एक्स मॉडल पर कार्य किया जबकि जहां से वे मॉडल उठाकर लाये थे वहां एक्स, वार्इ, जेड मॉडल कार्यरत था अर्थात आरएसएस, वीएचपी, बीजेपी तीनों संगठनों के मुखिया अलग-अलग हैं न कि एक व्यक्ति है और तीनों संगठनो मे वैचारिक रूप से एकता है। तीनों का लक्ष्य एक है, लेकिन तीनों का स्वतंत्र स्वरूप बरकरार है।
आगे चलकर उन्होंने केवल राजनैतिक संगठन को ही तवज्जो दिया और डीएस-4 को भी समाप्त कर दिया। जिस बामसेफ को वे ब्रेन बैंक बनाना चाहते थे और जिसके बौद्धिक नियंत्रण में पूरे आंदोलन को चलाना चाहते थे, उससे अपने आपको पूर्णतः अलग कर लिया लेकिन बाद में आवश्यकता पड़ने पर सैडो बामसेफ बनाकर गैर राजनैतिक एवं सांस्कृतिक संगठन को राजनैतिक विंग के अधीन कर दिया। Action (क्रियान्वयन) हमेशा Idea(विचार) के अधीन और उसके बाद होता है जबकि उन्होंने खुद बाबा साहब की यह बात मानी थी कि सामाजिक आंदोलन, राजनैतिक आंदोलन से आगे-आगे चलना चाहिए (Social reform must precede the Political reform) और कहा था कि जिस समाज की गैर राजनैतिक जड़ें मजबूत नहीं होंगी उसकी राजनीति सफल नहीं हो सकती। क्योंकि मान्यवर की एक बहुत बड़ी पर्सनैलिटी विकसित हो चुकी थी।

 

इससे मूलनिवासियों में संगठन न विकसित होकर व्यक्ति विकसित हो गया और जो संगठन बना वह व्यक्ति केन्द्रीत संगठन था। 1992 तक भारत में सभी अन्य पिछडी जातियों के नेताओं को अपनी अहमियत और ताकत का एहसास नहीं था और सभी कांग्रेस, भाजपा और जनता दल के सवर्ण नेताओं के पिछलग्गू बनकर राजनीति कर रहे थे। परन्तु भारत की राजनैतिक पटल पर मान्यवर के उदय के बाद पिछडे वर्ग के नेताओं में एक चेतना आर्इ कि यदि अनुसूचित जाति के लोग अपने दम पर राजनीति कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं- इसके बाद ही माननीय मुलायम सिंह यादव ने अपने दम पर समाजवादी पार्टी, माननीय शरद पवार ने एनसीपी एवं मा. लालू प्रसाद यादव ने आरजेडी, नितीश कुमार ने समता पार्टी बनार्इ। लेकिन इन सभी लोगों ने मान्यवर को अपना रोल मॉडल मानकर व्यक्ति केन्द्रित संगठन ही बनाये इसका दुष्परिणाम हुआ कि मूलनिवासियों में छोटे छोटे तानाशाह पैदा हो गये जो आपस मे एक दूसरे से संवाद भी नहीं करते आपस मे एक दूसरे को सहयोग करना तो बहुत दूर की बात है। इन छोटे छोटे तानाशाह लोगों को मनुवादी मीडिया सुर्पीमो कहकर संबोधित करता है। जब वह इनको सुर्पीमो कहता है तो ये बहुत प्रसन्न होते हैं जबकि प्रजातंत्र में सुर्पीमो संबोधन एक व्यंग पूर्ण आलोचना है। अब तो मूलनिवासियों के कई सामाजिक संगठनो ने भी सुर्पीमो सिस्टम को अपना लिया है।
मान्यवर ने जब बामसेफ एवं डीएस-4 को समाप्त कर दिया तो उन्हें अपने राजनैतिक संगठन के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन मिलना बंद हो गया। जो लोग 1984 के पहले के प्रशिक्षित थे उन्हीं के बल पर राजनैतिक आंदोलन आगे बढा। पहले यह उम्मीद थी कि बामसेफ, डीएस-4 राजनैतिक विंग (बीएसपी) के लिए फीडर कैडर का काम करेगा और बीएसपी के लिए प्रशिक्षित एवं योग्य मानव संसाधन उपलब्ध कराएगा करेंगे परन्तु वैसा नहीं हुआ। इसलिए राजनैतिक आंदोलन को रॉ-हैण्ड संसाधन समाज से उठाना पड़ा। इसलिए विचारधारा में इतनी गिरावट आयी और बाहर से आए कार्यकर्ताओं के भ्रष्टाचार की शिकायत भी बढ़ी और इससे आंदोलन बदनाम हुआ।

 

6.हमने सबक लिया है:-
हमने बामसेफ को फिर से धारा के विपरीत खड़ा किया यद्द्पि कि इसे खड़ा करने में बड़ी दिक्कतें आर्इं। हमने मान्यवर के आंदोलन का निरपेक्ष मूल्यांकन किया और जहां उनकी अच्छाइयों से प्रेरणा लिया वहीं हमने गलतियों से सबक लिया है, क्योंकि हम मिशन को जहां मान्यवर ने छोडा था उसके आगे ले जाना चाहते हैं। इसलिए हमने निम्न सुधार किए हैं..

 

1॰ बामसेफ एक सांस्कृतिक संगठन रहे और इसके अध्यक्ष का कार्यकाल दो वर्ष का हो, उसके बाद नये व्यक्ति को अवसर दिया जाये, जिससे कि व्यक्ति न विकसित होकर संगठन विकसित हो।
2॰ डीएस-4 एजीटेशनल विंग का कार्य करे और इसका अध्यक्ष बामसेफ के अध्यक्ष के अलावा दूसरा व्यक्ति हो और दोनों संगठन साथ-साथ स्वतंत्र रूप से चलते रहें।
3॰ कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण के लिए एक दिवसीय एवं दो दिवसीय पाठयक्रम तैयार किया जाये। जिसके अनुसर प्रत्येक प्रदेश में कर्इ प्रशिक्षक तैयार किये जायें, जो प्रशिक्षण का कार्य करें।

 

4॰ संगठन में आन्तरिक लोकतंत्र का समावेश किया जाये। और संगठन को व्यक्ति वाद के नियन्त्रण से निकाल कर उसका संस्थायीकरण किया जाये।
मान्यवर के मिशन को आगे बढ़ाना ही उनको सच्ची श्रद्धांजली होगी। उनकी एक त्रुटि या भूल के बावजूद भी, उन्होंने बाबासाहब के रुके हुए कारवां को आगे बढाकर मूलनिवासी बहुजन समाज में जागृति फैलाने का जो कार्य किया उससे करोडों लोगों के अन्तर्मन से यह नारा अपने-अपने आप प्रस्फुटित हुआ

 

कांशीराम तेरी नेक कमाई – तूने सोती कौम जगाई
मूलनिवासी बहुजनों के इस नायक को हम सादर नमन करते हैं।

 

( लेखक युवा सामाजिक कार्यकर्ता कपिल गौतम प्रेम हैं। ये उनके निजी विचार हैं

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