अलवर सामूहिक रेप प्रकरण: गुनहगार सिर्फ अपराधी या और भी ?
अपराधियों ने तो सिर्फ सामूहिक रेप किया, लेकिन पुलिस, प्रशासन, मीडिया, सत्ता और विपक्ष ने पूरी व्यवस्था का ही सामूहिक महारेप कर दिया !
———————————–
चुनाव के नफे नुकसान को लेकर नहीं किया वक्त पर खुलासा
————————————
सरकार की सख्ती के बाद शीघ्रता से आरोपी गिरफ्तार किए गए और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई, जो एक सराहनीय कदम है !
————————————-
लेकिन क्या इसके बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिनके पास गृहमंत्री का भी जिम्मा है और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को क्लीन चिट देना शोभनीय है ?
————————————–
विपक्षी पार्टी भाजपा का भी दोहरा चरित्र सामने आया, उसने इस प्रकरण पर एक कमेटी बनाई। लेकिन ऐसा उसने पहलू खान, उमर, रकबर, अफराजुल और कैदी रमजान की दर्दनाक हत्या पर क्यों नहीं किया, क्योंकि यह सब मुस्लिम थे ?
————————————–
क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी दलित महिला के साथ हुए इस सामूहिक रेप को छुपाने के जुर्म में अपनी अपनी पार्टियों के नेताओं पर कोई कार्रवाई करेंगे ?
********
जयपुर/अलवर सामाजिक संस्कार, भाईचारे और मान सम्मान की धरा राजस्थान, जो पिछले दिनों अलवर सामूहिक बलात्कार के कारण पूरे देश में बदनाम हुई। अपराधी अपराध करता है, जो जानबूझकर करे या किसी के बहकावे या उकसावे में करे, गलत है और उस अपराध की उसे शीघ्रता से सजा भी मिलनी चाहिए। लेकिन अगर अपराधी को बचाने का प्रयास हो या अपराध पर परदा डालने की घिनौनी कोशिश हो, तो एक सभ्य समाज और कानून से संचालित देश जंगल राज की तरफ बढ़ जाता है ! जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है।
जब कानून की रखवाली पुलिस और पुलिस को संचालित करने वाली सत्ता तथा लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली प्रेस, यह तीनों अपराध को छुपाने या उसे नजरअंदाज करने में लग जाएं, तो मान लीजिए लोकतंत्र की इमारत ढहनी शुरू हो गई है ! कुछ ऐसा ही राजस्थान के अलवर जिले में हुआ। यहाँ का थानागाजी इलाका, जिसके नाम के पहले थाना शब्द आता है और थाने का सीधा सा मतलब पुलिस स्टेशन होता है। लेकिन जिस प्रकार का यहाँ अपराध हुआ और उस अपराध पर दस दिन तक परदा डालने की कोशिश होती रही, वो बेहद शर्मनाक और दर्दनाक पहलू है। जिसे शब्दों में बयान करना कोई आसान काम नहीं है !
यह इलाका शायद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है, दिल्ली यहाँ से करीब ही है। वो दिल्ली जो विश्व के स
बसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की राजधानी है। राजस्थान की राजधानी जयपुर भी यहाँ से कोई ज्यादा दूर नहीं है। यहाँ 26 अप्रेल को एक दलित दम्पति को कुछ अपराधिक तत्वों ने घेर लिया। यह पति पत्नी बाइक से जा रहे थे। पांच अपराधियों ने सड़क से दूर टीलों में ले जाकर पति के साथ मारपीट की और उसके सामने उसकी पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार (रेप) किया। इतना ही नहीं उसका वीडियो भी बनाया और उन्हें ब्लैकमेल करने की भी कोशिश की !
यह दम्पति मारे खौफ के खामोश हो गया, लेकिन उन्हें वीडियो वायरल करने की धमकी मिलने लग गई। यह दम्पति पुलिस के पास गया, लेकिन पुलिस में कोई विशेष सुनवाई नहीं हुई। फिर यह विवाहित जोड़ा पुलिस अधीक्षक (एसपी) और अतिरिक्त जिला कलेक्टर (एडीएम) के पास गया। फिर भी नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहा। पुलिस ने चुनाव की बात कह कर टरका दिया, क्योंकि 29 अप्रेल और 6 मई को राजस्थान में लोकसभा के चुनाव थे। यह अपराध इतना जघन्य और शर्मनाक था कि
पुलिस को फौरन कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया।
अपराधी तो अपराधी थे, लेकिन पुलिस अधिकारी तो कानून के रखवाले और विद्वान आदमी थे, उन्होंने ऐसा क्यों किया ? बिना किसी ऊपर (उच्च अधिकारियों और सत्ताधीशों) के दबाव या अपराधियों की सांठगांठ के पुलिस कभी ऐसा नहीं करती है ! इससे यह सिद्ध होता है कि पुलिस किसी दबाव या लालच में काम कर रही थी। खबर है कि अपराधियों की धमकी के बाद पीड़ितों ने स्थानीय कांग्रेसी और भाजपाई नेताओं से भी सम्पर्क किया तथा सभी ने चुनाव में बिजी होने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया। गांव वालों ने 30 अप्रेल को अलवर के विधायक और मन्त्री टीकाराम जूली को भी फोन किया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
30 अप्रेल को पीड़ित दम्पति थानागाजी विधायक कान्ति मीणा के साथ एसपी अलवर से मिले। दो मई
को मुकदमा दर्ज कर लिया गया। लेकिन गिरफ़्तारी और कोई विशेष कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। इधर अपराधियों की तरफ से वीडियो वायरल की धमकी मिलती रही और उन्होंने 4 मई को वीडियो वायरल कर दिया। इसकी शिकायत भी पुलिस में की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। चुनाव बाद कार्रवाई करने का एक बार फिर आश्वासन दे दिया गया। पीड़ितों का एक एक पल किस दर्द और खौफ में गुजर रहा था, इससे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कोई मतलब नहीं था। चुनाव का दूसरा चरण 6 मई को राजस्थान में सम्पन्न हो गया और इस दिन अलवर लोकसभा में भी वोटिंग हो गई। चारों तरफ वायरल वीडियो की चर्चा चल रही थी। लेकिन पुलिस और प्रशासन कान में रूई ठूंस कर बैठा रहा। हैरानी की बात यह भी है कि इतना कुछ होने के बाद भी स्थानीय मीडिया को कोई खबर नहीं लगी, जो कतई गले नहीं उतरती है !
आनन फानन में 6 मई की शाम पुलिस और मीडिया सक्रिय हुआ। अगले दिन अखबारों और चैनलों पर इस खबर ने राजस्थान को शर्मसार कर रखा था। कोई पुलिस को कोस रहा था, तो कोई राज्य सरकार को ! इस खबर का खुलासा न पुलिस
ने किया और ना ही मीडिया ने, बल्कि दो दिन पहले खुद अपराधियों ने ही वीडियो वायरल करके कर दिया था ! इस पूरे प्रकरण में पुलिस जितनी दोषी है, उतना ही प्रशासन, स्थानीय मीडिया, सत्ता और विपक्ष के नेता भी दोषी हैं। सबको पता था फिर इसका चुनाव बाद नियोजित कार्यक्रम के तहत खुलासा क्यों हुआ ? हम आपको बड़ी बारीक़ी से बता रहे हैं, हर मीडिया हाउस में क्राइम रिपोर्टर होते हैं। जाहिर सी बात है कि अलवर इलाके में भी अखबारों और चैनलों के क्राइम रिपोर्टरस् होंगे।
यह रिपोर्टरस् रोज पुलिस अधिकारियों के सम्पर्क में रहते हैं और कोई अपराधिक वारदात इनसे छुप जाए, कतई मुमकिन नहीं है। अगर किसी बड़े अपराध का पुलिस को पता नहीं चले, वो बात तो गले उतरती है, लेकिन इन क्राइम रिपोर्टरस् को पता नहीं चले, यह बात कतई गले नहीं उतरती है ! मतलब साफ है कि इस घिनौने अपराध की खबर स्थानीय क्राइम रिपोर्टरस् को थी और उन्होंने इस खबर को दबाया है। ऐसा करके उन्होंने पत्रकारिता और अपने संस्थान के साथ दगा किया है तथा अपराधियों का एक तरह से बचाव किया है ! यह काम इन क्राइम रिपोर्टरस् ने पुलिस के इशारे पर किया है या नेताओं और अपने बोस के इशारे पर किया है ? यह भी जांच का विषय है ! जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि प्रशासनिक अधिकारियों को जब प्रकरण की जानकारी थी, तो वे खामोशी का लिबादा ओढ कर क्यों सो गए ? सवाल यह भी है कि अलवर का स्थानीय खुफिया तंत्र दस दिन तक क्या कर रहा था, क्या वो भी घोड़े बेच कर सो गया था ?
एक और बात जिस पर भी गौर करना जरूरी है। लोकसभा चुनाव चल रहे थे और इस दौरान नेताओं को अपने इलाके की हर छोटी बड़ी घटना की जानकारी रहती है, क्योंकि कौनसी घटना क्या गुल खिला दे और चुनाव को प्रभावित कर

दे ? इसलिए नेता चुनाव के दौरान बारीकी से अपने क्षेत्र पर नजर रखते हैं। यह घटना तो बहुत बड़ी घटना थी, इसकी जानकारी स्थानीय नेताओं को न हो, यह बात हो ही नहीं सकती ! इस पूरे प्रकरण का बारीकी से अध्ययन और विश्लेषण किया जाए, तो यह सिद्ध होता कि इस घिनौने अपराध की जानकारी पुलिस, प्रशासन, मीडिया, सत्ता और विपक्ष के स्थानीय नेताओं के पास वीडियो वायरल होने से पहले ही थी। लेकिन सब चुनाव सम्पन्न होने का इन्तजार कर रहे थे ! सबका इस अपराध को छुपाने में कोई ना कोई लालच और दबाव था ! क्योंकि अगर इस अपराध का खुलासा चुनाव से पहले हो जाता तो कुछ की सत्ता हिल जाती और कुछ के चुनाव जीतने की उम्मीद पर पानी फिर जाता !
7 मई को यह प्रकरण मीडिया में आने के बाद सत्ता और विपक्ष के कर्णधार तेजी से सक्रिय हुए। पुलिस अधिकारियों का एपीओ और निलम्बन हुआ तथा एक के बाद एक सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी दिन भाजपा ने एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की, जो शाम को ही पीड़ितों से मिलकर आई और कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी को सौंप दी। फिर भाजपा ने 9 मई को सभी जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन किया। जयपुर में सिविल लाइन्स (मुख्यमंत्री आवास) का घेराव हुआ। फिर सम्भागीय मुख्यालयों पर भी भाजपा ने धरना प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री का इस्तीफा और पीड़ितों के लिए इन्साफ की मांग की।
जो विपक्ष के नाते उसका एक सराहनीय काम था, उसे ऐसा ही करना चाहिए था। लेकिन इसी राजस्थान में तथाकथित गौ रक्षक आतंकियों ने पिछले तीन चार साल में पहलू खान, उमर, रकबर आदि की हत्या की। साथ ही 6 दिसम्बर 2017 को राजसमन्द में अफराजुल नामक बंगाली मजदूर का दर्दनाक कत्ल और उसका वीडियो वायरल किया गया। इसके अलावा गत दिनों बारां में बूढ़े कैदी मोहम्मद रमजान की पुलिस द्वारा पीट पीट कर हत्या कर दी गई, तब भाजपा पूरी तरह से खामोश रही ! तब उसने कोई कमेटी गठित क्यों नहीं की ? तब भाजपा ने जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन क्यों नहीं किया ? क्या इसलिए कि मरने वाले सभी मुसलमान थे ?
जब थानागाजी के इस सामूहिक बलात्कार की जानकारी चुनाव पूर्व भाजपा के स्थानीय नेताओं के पास थी, तो उसे छुपाने के जुर्म में भाजपा ने अपने नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं की ? क्या भाजपा ने एक जाति विशेष के वोट लेने के लिए चुनाव से पहले इस घिनौने अपराध का खुलासा नहीं किया ? इन सवालों का जवाब भाजपा को देना चाहिए। इस पूरे प्रकरण में भाजपा का चरित्र भी संदिग्ध लग रहा है और न्याय के लिए किए जा रहे उसके आन्दोलन सलेक्टिव (चयनित) और ढकोसला लग रहे हैं ! इस बीच पीड़िता के पति ने भाजपा नेता पूर्व मन्त्री हेम सिंह भड़ाना पर आरोप लगाया कि उन्होंने पैसे लेकर समझौता करने का मेरे पर दबाव बनाया, हालांकि भड़ाना ने इस आरोप का खण्डन कर इसे बेबुनियाद बताया है।
अब बात सत्ताधारी कांग्रेस की। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जो एक अनुभवी राजनेता हैं और हर पंचायत व कस्बे में उनका सियासी और सरकारी खुफिया नेटवर्क है। उनके पास गृहमंत्री की भी जिम्मेदारी है। उनके बारे में कहा जाता है कि पूरे प्रदेश के हर बड़े घटनाक्रम की उन्हें तत्काल जानकारी मिल जाती है, चाहे वे सत्ता में हों या नहीं हों। फिर यह कैसे सम्भव हो सकता है कि इस घिनौने अपराध की जानकारी मुख्यमंत्री को चुनाव से पहले नहीं थी ? अगर जानकारी थी तो क्या इस अपराध को छुपाने के लिए मुख्यमंत्री दोषी नहीं हैं ? यही बात उप मुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट के लिए भी लागू होती है कि उन्हें इसकी जानकारी थी या नहीं ? अगर नहीं थी, तो फिर वो किस बात की सरकार और संगठन चला रहे हैं ?
अलवर से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले और पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री भंवर जितेन्द्र सिं

ह ने भी इस प्रकरण में पूरी तरह से गैर जिम्मेदारी का सबूत दिया। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि थानागाजी मेरे लोकसभा क्षेत्र में नहीं आता है। यह बयान एक वरिष्ठ राजनेता के मुंह से निकलना कतई शोभनीय नहीं है। इस मामले में केन्द्रीय अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एल मुरूगन ने भी थानागाजी का दौरा किया और वे पीड़ित दम्पति से मिले। उन्होंने इस मामले में पुलिस और राज्य सरकार की गम्भीर लापरवाही मानी।
इस पूरे प्रकरण का अध्ययन और विश्लेषण करने के बाद यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि इस जघन्य अपराध की जानकारी चुनाव से पहले पुलिस, प्रशासन, मीडिया, सत्ताधीशों और विपक्षी नेताओं के पास थी। लेकिन सबने किसी लालच या दबाव में मामले का खुलासा चुनाव सम्पन्न होने के बाद किया ! इस पूरे अध्ययन से यह भी साबित होता है कि अपराधियों ने तो महिला का सामूहिक रेप किया, लेकिन पुलिस, प्रशासन, मीडिया, सरकार और विपक्ष ने तो पूरी व्यवस्था (सिस्टम) का ही सामूहिक महारेप कर दिया !
सरकार ने 7 मई के बाद तेजी से सक्रियता दिखाई, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की और आरोपियों को सलाखों के पीछे कर दिया। यह सरकार का सराहनीय कदम रहा, लेकिन इतना करने के बाद मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को क्लीन चिट देना सही नहीं है। क्या पुलिस का एपीओ, निलम्बन और लाइन हाज़िर कोई सजा है ? अगर सरकार यह मानती है कि पुलिस ने उसे अन्धेरे में रखा, तो फिर सम्बंधित सभी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया ? (यह लेख लिखे जाने तक पुलिस के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं हुआ था, लेकिन दर्ज करने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी।) क्या इतने बड़े अपराध को कोई पुलिस अधिकारी बिना सरकार के इशारे के नजरअंदाज कर सकता है ? यह कतई सम्भव नहीं है, इस मामले को छुपाने में जरूर बड़े सत्ताधीशों का हाथ था, तो क्या सत्ताधीशों के खिलाफ़ भी कोई कार्रवाई होगी ?
पूरे प्रकरण के अध्ययन से यह भी लग रहा है कि अगर अपराधी वीडियो को वायरल नहीं करते, तो पुलिस, प्रशासन, मीडिया और सरकार इस मामले को हमेशा के लिए दफन कर देते और इसका कोई खुलासा नहीं होता ! क्या बेटी बचाओ, बेटी पढाओ तथा नारी सशक्तिकरण एवं महिला सुरक्षा व न्याय के नारे लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी यह बताएंगे कि थानागाजी में हुए इस अपराध को छुपाने के मुख्य साजिशकर्ता कौन कौन हैं ? क्या वे अपनी पार्टी के नेताओं को इस अपराध को छुपाने की कोई सजा देंगे ?
लेख़क – एम फारूक़ ख़ान सम्पादक { इकरा पत्रिका }