Has the cry for Lal Salaam {Karl Marx & Lenin} revolution started against Modi {capitalism} in India, know here
The basic lessons of Lenin are still the same, right and very important today –
श्रमजीवी वर्ग के महान क्रांतिकारी नेता और शिक्षक, वी.आई. लेनिन रूस के मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को संगठित करके पूंजीपतियों का तख्तापलट करने, और मानव इतिहास में पहली बार मजदूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित व मजबूत करने में बोल्शेविक पार्टी को अगुवाई दी।
अपनी महत्पूर्ण सैद्धांतिक कृति “साम्राज्यवाद: पूंजीवाद का उच्चतम पड़ाव” में लेनिन ने दिखाया कि पूंजीवाद अपने अंतिम पड़ाव,
साम्राज्यवाद या मरणासन्न पूंजीवाद, पर पहुंच गया है।
दुनिया और भारत में सारी गतिविधियां वर्तमान युग को साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रांति का युग बताने वाले लेनिन के विश्लेषण की ही पुष्टि करती हैं। साम्राज्यवाद दुनिया के सभी भागों पर अपना वर्चस्व जमाने के लिये पूरी कोशिश करेगा, खूनी विनाशकारी जंग भी छेड़ेगा, और मानवजाति को एक संकट से दूसरे संकट में धकेलता चला जायेगा, जब तक मजदूर वर्ग इस शोषण की व्यवस्था का तख्तापलट करने और समाजवाद लाने के संघर्ष में शोषित व उत्पीड़ित जनसमुदाय को अगुवाई नहीं देगा।
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानव समाज के विकास के वैज्ञानिक विश्लेषण के ज़रिये यह स्थापित किया था कि पूंजीवाद की कब्र खोदना और इंसान द्वारा इंसान के शोषण से मुक्त समाजवाद और कम्युनिज़्म का नया युग लाना मजदूर वर्ग का अन्तिम लक्ष्य है। लेनिन अपने समय की हालतों में, जब पूंजीवाद साम्राज्यवाद के पड़ाव पर पहुंच गया था, मार्क्सवाद के सिद्धांत की हिफाज़त की, उसे लागू किया और विकसित भी।
लेनिन ने दिखाया कि जब पूंजीवाद साम्राज्यवाद के पड़ाव पर पहुंच जाता है, तो श्रमजीवी क्रांति के लिए सभी हालतें परिपक्व हो जाती हैं। उन्होंने असमान आर्थिक और राजनीतिक विकास के नियम का आविष्कार किये और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अंतर-साम्राज्यवादी अंतर्विरोधों, शोषकों और शोषितों के बीच अंतर्विरोधों, दूसरों पर हावी साम्राज्यवादी राज्यों और दबे
-कुचले राष्ट्रों तथा लोगों के बीच अंतर्विरोधों, इन सबकी वजह से यह मुमकिन हो जाता है कि किसी एक देश में क्रांति शुरू हो सकती और कामयाब हो सकती है। इससे पहले सोचा जाता था कि श्रमजीवी क्रांति सिर्फ उन देशों में शुरू हो सकती है जहां पूंजीवाद सबसे अगुवा था। लेनिन ने यह पूर्वाभास दिया कि क्रांति उस देश में शुरू होगी जहां साम्राज्यवाद की वैश्विक कड़ी सबसे कमजोर होगी, हालांकि वह देश पूंजीवादी तौर पर अगुवा नहिं भी हो सकता है, क्योंकि साम्राज्यवाद गुलामी और लूट की वैश्विक व्यवस्था है। लेनिन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि साम्राज्यवाद श्रमजीवी क्रांति की पूर्वसंध्या है।
1917 में रूस में अक्तूबर क्रांति की जीत के साथ दुनिया के इतिहास में एक नया युग शुरू हुआ। पहली बार, शोषक वर्ग की राजनीतिक सत्ता को मिटाया गया और उसकी जगह पर किसी दूसरे शोषक वर्ग की सत्ता नहीं, बल्कि मजदूर वर्ग की सत्ता स्थापित हुई। दुनियाभर में कई पीढ़ियों के कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी उस समय से, शोषण के खिलाफ़ अपने संघर्ष में लेनिनवाद के सिद्धांत और अभ्यास से प्रेरित और मार्गदर्शित हुए।
लेनिन ने मार्क्स की धारणा का विस्तार किये कि श्रमजीवी क्रांति से समाजवाद स्थापित करने के लिए श्रमजीवी अधिना
यकत्व के राज्य की स्थापना करना आवश्यक है, जो कि समाज को समाजवाद और कम्युनिज़्म के रास्ते पर अगुवाई देने के लिए मजदूर वर्ग का मुख्य साधन है। रूस में 1917 में महान अक्तूबर समाजवादी क्रांति की जीत और सोवियत संघ में समाजवाद के निर्माण से यह अवधारणा सही साबित हुई। लेनिन और स्टालिन के नेतृत्व में सोवियत संघ में समाजवाद का सफलतापूर्वक निर्माण उन हालतों में किया गया जब दुनिया की मुख्य साम्राज्यवादी ताकतें और सत्ता से गिराये गये प्रतिक्रियावादी मिलजुलकर, सशस्त्र हमले और अंदरूनी विनाश के ज़रिये क्रांति को कुचलने की भरसक कोशिश कर रहे थे और सोवियत संघ के मजदूर-मेहनतकशों को इन कोशिशों के खिलाफ़ डटकर संघर्ष भी करना पड़ रहा था, जिसमें वे सफल हुए। जिन देशों में श्रमजीवी अधिनायकत्व को नहीं स्थापित किया गया, जैसे कि चीन, वहां के विपरीत घटनाक्रम से भी लेनिन की अवधारणा सही साबित होती है।
जे.वी. स्टालिन ने लेनिनवाद को आमतौर पर श्रमजीवी क्रांति का सिद्धांत और कार्यनीति तथा खासतौर
पर श्रमजीवी अधिनायकत्व का सिद्धांत और कार्यनीति बताया।
लेनिन ने उन सभी के खिलाफ़ कठोर विचारधारात्मक संघर्ष किया, जो पार्टी को समान विचार वाले सदस्यों की ढुलमुल संस्था के रूप में बनाना चाहते थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पूंजीपति वर्ग को हराने के लिए मजदूर वर्ग के अंदर जिस अटूट एकता की जरूरत है, उसे हासिल करने के लिए यह काफी नहीं है कि पार्टी के सदस्य पार्टी के कार्यक्रम से सहमत हों और नियमित तौर पर योगदान दें; पार्टी के सदस्यों को पार्टी के किसी संगठन के अनुशासन तले काम भी करना होगा। उन्होंने लोकतांत्रिक केन्द्रीयवाद – सामूहिक फैसले लेना और व्यक्तिगत दायित्व निभाना – को कम्युनिस्ट पार्टी के संगठनात्मक सिद्धांत बतौर स्थापित किया, जिसके ज़रिये अधिक से अधिक व्यक्तिगत पहल उभरकर आती है और साथ ही साथ, पार्टी की एकाश्म एकता हमेशा बनी रहती है तथा मजबूत होती रहती है।
विभिन्न ताकतों द्वारा मार्क्सवाद को तोड़-मरोड़कर और झूठे तरीके से पेश करने की कोशिशों के खिलाफ़ लेनिन ने मार्क्सवाद के मूल सिद्धांतों का अनुमोदन और हिफ़ाज़त करने के लिए जो कठोर संघर्ष किया था, वह उस अवधि में उनके द्वारा लिखे गये महत्वपूर्ण लेखों से स्पष्ट होता है। अपनी कृति “राज्य और क्रांति” में लेनिन ने मार्क्सवाद और एंगेल्स की उस मूल अवधारणा की हिफ़ाज़त की कि श्रमजीवी वर्ग के लिए यह जरूरी है कि पूंजीवादी राज्य तंत्र को चकनाचूर कर दिया जाये और उसकी जगह पर एक बिल्कुल नया राज्यतंत्र स्थापित किया जाये जो मजदूर वर्ग की सेवा में काम करेगा। अपनी कृति “
श्रमजीवी क्रांति और विश्वासघातक काउत्स्की” में लेनिन ने पूंजीवादी लोकतंत्र के बारे में मजदूर वर्ग आंदोलन में भ्रम फैलाने की कोशिशों का पर्दाफाश किया और श्रमजीवी अधिनायकत्व के तहत श्रमजीवी लोकतंत्र के साथ पूंजीवादी लोकतंत्र की बड़ी तीक्ष्णता से तुलना की।
आज दुनिया के अलग भागों में मजदूर वर्ग और दूसरे उत्पीड़ित तबकों द्वारा अपने-अपने पूंजीवादी शासकों और साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष आगे बढा रहे हैं। साम्राज्यवाद और पूंजीपति गहरे से गहरे संकट में फंसते चले जा रहे हैं।
ब्रिटेन-अमेरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को बनाये रखने तथा अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने के लिए, एक के बाद दूसरा विनाशकारी जंग छेड़ रहे हैं और राष्ट्रों तथा लोगों की आज़ादी और संप्रभुता पर बेरहमी से हमले कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में झूठा प्रचार करके वे साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ खड़े होने की जुर्रत करने वालों को आतंकवादी और दुष्ट राज्य करार देते हैं, और फिर उन पर क्रूर बल-प्रयोग को जायज़ ठहराते हैं।

सारी दुनिया में साम्राज्यवादी जंग और लूट के खिलाफ़ संघर्ष भी तेज़ हो रहा है। पूंजीवादी देशों में शोषकों और शोषितों के बीच अंतर्विरोध, साम्राज्यवाद और दबे-कुचले राष्ट्रों व लोगों के बीच अंतर्विरोध और अंतर-साम्राज्यवादी अंतर्विरोध, सभी तीक्ष्ण होते चले जा रहे हैं। इन सबसे लेनिन के मूल सबकों और निष्कर्षों की फिर से पुष्टि होती है। सभी देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों का यह काम है कि मजदूर वर्ग को श्रमजीवी क्रांति के दूसरे दौर के लिए तैयार करें, जिसका साम्राज्यवादी कड़़ी के सबसे कमजोर स्थान पर शुरू होना लाजिमी है।
लेनिनवाद को तोड़-मरोड़कर पेश करने और उसे कोई ऐसा सिद्धांत बना देने, जो पूंजीपतियों को कोई नुकसान न पहुंचाये, इन सभी कोशिशों के खिलाफ़ लेनिनवाद के मूल निष्कर्षों की हिफ़ाज़त करने के लिए भारत की कम्युनिस्ट पार्टीयाँ भी लगातार संघर्ष करती आयी है। हमें ‘समाजवाद के संसदीय रास्ते’ के खिलाफ़ संघर्ष करना होगा और करते जा रहे हैं भी। हमने डटकर उस धारणा का भी विरोध किया है कि इस समय श्रमजीवी क्रांति मुमकिन ही नहीं है या इसकी जरूरत नहीं है। ऐसी धारणाएं इसलिए फैलायी जाती हैं ताकि साम्राज्यवाद और पूंजीपतियों के साथ समझौता करना जायज़ ठहराया जा सके। यह धारणा जो आज बहुत फैलायी जा रही है, कि आज कोई ‘मध्यम वर्ग की क्रांति’ मुमकिन है न कि श्रमजीवी क्रांति, इसके खिलाफ़ हमें डटकर संघर्ष करना पड़ेगा।
कुछ ताकतें एक एकजुट वैश्विक ताकत बतौर “अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी” की बात करती हैं और इस तरह दुनिया पर हावी होने के लिए विभिन्न साम्राज्यवादी ताकतों के आपसी अंतर्विरोधों को कम करके पेश करती हैं। वे भी लेनिनवाद के मूल निष्कर्षों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। उनके द्वारा फैलायी गई इस सोच के अनुसार दुश्मन की ताकत को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और क्रांति की संभावनाओं का अल्पानुमान किया जाता है।
आज साम्राज्यवाद और श्रमजीवी क्रांति का ही युग चल रहा है, जिसके अंदर सोवियत संघ के विघटन के बाद क्रांति की लहर कुछ समय के लिए पीछे चली गई है। कामरेड लेनिन के सबक आज बहुत महत्व रखते हैं।
मार्क्सवाद-लेनिनवाद के मूल असूलों और निष्कर्षों की हिफ़ाज़त करने और इन असूलों व निष्कर्षों के अनुकूल हिन्दोस्तानी लोगों की मुक्ति के सिद्धांत को विकसित करने को हमें वचनबद्ध होना है। हमारे सामने फौरी कार्य मजदूर वर्ग, मेहनतकश किसानों तथा दूसरे उत्पीड़ित तबकों के साथ गठबंधन बनाकर, अपने हाथ में राज्य सत्ता लेने के लिए तैयार करना है।
पूंजीपतियों के परजीवी शासन को खत्म करने और मेहनतकश जनता का उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए यह अनिवार्य शर्त है। (कॉपी & ओवर राइट)
लेख़क -प्रतिवादी नवीन
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