क्रीमीलेयर को द्वितीय प्राथमिकता के साथ आरक्षण के भीतर रखा जाये, न कि आरक्षण से बाहरः सत्येन्द्र मुरली

क्रीमीलेयर मुद्दे पर सीजेआई दीपक मिश्रा ने याचिका की सुनवाई को दी मंजूरी-

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई एक याचिका में कहा गया है कि एससी व एसटी को मिलने वाले आरक्षण का फायदा, उनके निचले स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा है. एससी व एसटी के करीब 95 प्रतिशत लोग आज तक भी आरक्षण का लाभ नहीं ले सके हैं.
याचिका में इसके पीछे का कारण, एससी व एसटी में आर्थिक रूप से ऊपर उठ चुके वर्ग अर्थात क्रीमीलेयर को बताया गया है.
सीजेआई दीपक मिश्रा ने इस याचिका की सुनवाई को मंजूरी दे दी है.
याचिका का उपरोक्त कथन तो करीब-करीब सही हैं, लेकिन जो कारण बताया गया है, वह कथन की सही व्याख्या नहीं करता है.
क्योंकि इसके पीछे के वास्तविक मुख्य कारणों पर नज़र डालें, तो सबसे पहले जो वजह सामने आती है वह यह है कि, विभिन्न सरकारों की मंशा व नीतियां, एससी व एसटी के आरक्षण के विरूद्ध रही हैं. दरअसल, पिछले कई दशकों से विभिन्न सरकारों द्वारा लगातार निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकारी क्षेत्र के तेजी से घटने से सरकारी नौकरियां भी तेजी से घटी हैं. इसके चलते एससी व एसटी का आरक्षण भी निष्प्रभावी हुआ है. और इसके बावजूद भी विभिन्न सरकारों द्वारा आज तक भी निजी क्षेत्र में एससी व एसटी के आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई है. यह एक बेहद ही गंभीर व महत्वपूर्ण मुद्दा है.|

इसके अलावा सरकारी नौकरियों में ठेकाप्रथा अथवा संविदा प्रणाली को भी लागू कर दिया गया, जहां आरक्षण व्यवस्था की अवहेलना की गई.साल 2014 में, केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार बनने के बाद तो निजीकरण को और अधिक गति प्रदान की गई है. नरेंद्र मोदी ने तो पीएम बनने के बाद साफतौर पर कहा कि वे सारे सरकारी कब्जों को हटा कर, सरकार के दायरे को छोटा कर रहे हैं. पीएम मोदी डिरेग्यूलराइजेशन को अपना दर्शन बताते हैं और सब कुछ निजी हाथों में सौंपना चाहते हैं.

एक अहम बात यह भी है कि, लंबे समय तक तो एससी व एसटी के उम्मीदवारों को ‘नॉट एलिजिबल अथवा योग्य नहीं’ बताकर एससी व एसटी के पदों को रिक्त रखा जाता रहा है. और अब पिछले काफी समय से एससी व एसटी के उम्मीदवारों को ‘नॉट सूटेबल अथवा उपयुक्त नहीं’ बताया जा रहा है. वर्तमान स्थिति तो यह है कि आजादी से लेकर अभी तक के एससी व एसटी के बैकलॉग को पूरी तरह से भरा ही नहीं जा सका है.  एससी व एसटी के आरक्षण पर ज्यादा मार कब से पड़ना शुरु हुई?
इसे जानने के लिए आपको थोड़ा पीछे लिए चलता हूं. साल 1990 में तात्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह को भारी राजनैतिक दबाव के चलते आखिरकार ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (ओबीसी) के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करना पडा था. देशभर में ओबीसी के आरक्षण के विरोध में ख़ासतौर पर सवर्ण जाति के लोगों ने मंडल कमीशन का विरोध किया और ‘कमंडल’ आंदोलन चलाया.
वी.पी.सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन कर रही भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वी.पी.सिंह की सरकार को गिरा दिया. इतना ही नहीं, भाजपा ने बहुजन राजनीति अथवा सामाजिक न्याय की राजनीति को काउंटर करने के लिए राम मंदिर निर्माण का आंदोलन शुरु किया. हिंदुत्व की आड़ में भाजपा का मकसद दलितों-पिछड़ों को आगे बढ़ने से रोकना था |

साल 1991 में पी.वी.नरसिम्हा राव के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नीति लाई और कांग्रेस ने इन नीतियों को देश के एससी, एसटी व ओबीसी के विरूद्ध बेहद ही क्रूर तरीके से लागू किया. सरकारी कंपनियों को घाटे में दिखाकर उनका विनिवेशीकरण व निजीकरण किया जाने लगा. इसके चलते सरकारी नौकरियों में लगातार कमी होती चली गई. लंबे संघर्षों के बाद हासिल हुआ आरक्षण मारा जाने लगा. कांग्रेस अपने मकसद में कामयाब हो गई. इसे सीधे तौर पर दलितों-पिछड़ों अथवा सामाजिक न्याय की हार और ‘बहुजन आरक्षण’ विरोधी सवर्णों की जीत के तौर पर देखा जाने लगा. एक अहम बात यह भी है कि संविधान निर्माण के समय एससी व एसटी की जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण दिया जाना तय हुआ था. वर्तमान में एससी व एसटी की जनसंख्या का प्रतिशत, पूर्व के आंकड़े से आगे बढ़ चुका है, लेकिन संवैधानिक प्रावधान होने के बावजूद भी एससी व एसटी की मौजूदा बढ़ी हुई जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण को नहीं बढ़ाया गया है. वर्तमान में सरकारी नौकरियों, शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में एससी व एसटी को आरक्षण का

बहुत ही कम फायदा मिल रहा है. और जो कुछ भी संभव हो रहा है, उसका काफी हद तक फायदा क्रीमीलेयर उठा रहा है.
उपरोक्त इन सभी प्रमुख बातों से स्पष्ट होता है कि एससी व एसटी को मिलने वाले आरक्षण का फायदा, उनके निचले स्तर तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? और एससी व एसटी के करीब 95 प्रतिशत लोग अभी तक भी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं ले सके हैं? जबकि याचिका में एससी व एसटी के क्रीमीलेयर को ही इसका इकलौता दोषी बताया गया है, जो कि सरासर गलत है.
याचिका में एससी व एसटी के क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करने की मांग की गई है. यह मांग पूरी तरह से अनुचित व असंवैधानिक है. संविधान में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर दर्ज किया गया है, न कि उनके आर्थिक आधार पर. वर्तमान में भी अनुसूचित जातियों के साथ छुआछूत व भेदभाव किया जाता है. अस्पृस्यता अथवा छुआछूत की शिकार जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है. ऐसे में एससी व एसटी के भीतर तो क्रीमीलेयर बनाया जा सकता है, लेकिन क्रीमीलेयर को एससी व एसटी के आरक्षण से बाहर नहीं किया जा सकता है.
दरअसल, याचिकाकर्ता क्रीमीलेयर के नाम पर एससी व एसटी को तोड़ना व उनका एक्सक्लुजन चाहते हैं. यदि याचिकाकर्ता वाकई में एससी व एसटी का भला चाहते होते तो, आरक्षण को और अधिक समावेशी बनाने की बात करते. याचिकाकर्ता क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करने के बजाए, आरक्षण के भीतर ही रखते हुए, उसे द्वितीय प्राथमिकता देने की बात कर सकते थे.
यहां इस बात का भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि ओबीसी के क्रीमीलेयर को अनुचित तरीके से ओबीसी आरक्षण से बाहर कर दिया गया था.
इसके चलते, एक तो ओबीसी की सीटें खाली रहने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ गई. जबकि यदि ओबीसी के क्रीमीलेयर को द्वितीय प्राथमिकता के साथ आरक्षण के भीतर ही रखा जाता, तो ओबीसी की किसी भी सीट के खाली रह जाने की संभावना को न्यूनतम किया जा सकता था.
दूसरा, ओबीसी आरक्षण से बाहर हो जाने के कारण क्रीमीलेयर के लोगों का, आरक्षण के मुद्दे से अलगाव पैदा हो गया. इस अलगाव के चलते क्रीमीलेयर, आरक्षण के मुद्दे पर होने वाली रैलियों अथवा सम्मेलनों से गायब रहा. इससे ओबीसी की एकता, ताकत व आरक्षण की लड़ाई कमजोर हुई. ओबीसी के क्रीमीलेयर को आरक्षण के भीतर शामिल करवाने के लिए संघर्ष किए जाने की जरूरत है.
ये सारी बातें मैं पिछले कई सालों से लोगों के बीच कहते आ रहा हूं. सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में जो कहा गया है, वह तो एससी व एसटी आरक्षण के विरोधियों की तरफ से बहुत पहले से ही कहा जाता रहा है.
जहां तक मैं समझता हूं, एससी व एसटी के क्रीमीलेयर को द्वितीय प्राथमिकता के साथ, आरक्षण के भीतर ही रखा जाना चाहिए. इससे एससी व एसटी का आरक्षण और ज्यादा समावेशी बनेगा. एससी व एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर को द्वितीय प्राथमिकता पर रखे जाने के कारण, एससी व एसटी का क्रीमीलेयर सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भी प्रेरित हो सकेगा. इस प्रकार दलितों की एकता, ताकत व उनके आरक्षण की लड़ाई को मजबूती व एक नई दिशा मिलेगी.

सत्येन्द्र मुरली

{ पत्रकार व मीडिया विश्लेषक }

राजस्थान में रिलीज होगी फिल्म पद्मावत – सुप्रीम कोर्ट में याचिका ख़ारिज- उग्र प्रदर्शन

जयपुर | विवादित फिल्म पद्मावत को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फेसला आया है सुप्रीम कोर्ट ने 4 राज्यों द्वारा इस फिल्म की रिलीज को रोकने के फैसले को खारिज कर दिया था. कोर्ट के फैसले के बाद भी करणी सेना और राजपूत संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. कई जगह हिंसक घटनाएं भी जारी है  |

गोरतलब है की फिल्म पद्मावत को लेकर राजस्थान , मध्यप्रदेश , हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में  उपरोक्त

राज्य में फिल्म को  रिलीज ना करने के लिए याचिका  दायर की थी ,जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फेसला सुना दिया |

क्यों विवादों में है फिल्म पद्मावत – फिल्म को लेकर राजपूत समाज व् करणी सेना  लम्बे समय से विरोध -प्रदर्शन कर रही  है उनका कहना  है की फिल्म पद्मावती में महारानी पद्मावती  को गलत चित्रण किया है | जिसके के लिए करणी सेना इस फिल्म का विरोध कर रही है |

राजस्थान में अब क्या – आज फिल्म पद्मावती के रिलीज होने के फेसले सुप्रीम कोर्ट ने  4 राज्यों की याचिगा ख़ारिज कर दी है |

आगामी समय में राजस्थान में उपचुनाव व् विधान सभा चुनाव होने जा रहे है | सूबे की मुख्यमंत्री राजे भी राजपूत समाज से है तथा सी एम् राजे व् राजपूत समाज के लोगो से  लम्बे समय से म

त -भेद चल रहा है  ,और आनद पाल के मामले में सरकार व् राजपूत समाज सामने आ गए थे |

अब राजस्थान विधान सभा चुनाव से पूर्व सी एम् राजे कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है ,अब अधिवक्ता द्वारा

कोई बीच का ऐसा निर्णय सरकार को लेना होगा जिससे सुप्रीम कोर्ट की भी बात रहे जाए और राजपूत समाज भी कोई विरोध -प्रदर्शन न करे |

राजस्थान में कानून व्यवस्था बनी रहे क्योकि करणी सेना उग्र प्रदर्शन की घोषणा बार -बार कर रही है जिसको हलके  में नहीं ले सकते . अब सरकार के लिए कड़ी परीक्षा का समय है जिसमे उसे कोई बीच का रास्ता जल्द  ही निकलना होगा |

 

कथित गो -रक्षको पर लगेगी लगाम -सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने गो रक्षको  द्वारा की जाने वाली हिंसक घटनाओं को  रोकने के लिए राज्यों को 7 दिनो के भीतर टास्क फ़ोर्स गठित करने का आदेश जारी किया है कोर्ट ने इसकी तहत  हर जिले में वरिष्ट पुलिस अधिकारी को नोडल  अधि

कारी नियुक्त करने और कानून तोड़ने वाले समूहो को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने का आदेश भी दिया है 

देश में गोहत्या के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है, कोर्ट ने केंद्र

और राज्य सरकारों से गोरक्षकों पर लगाम कसने को कहा है साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकारों को आदेश भी दिया है कि वह गो

रक्षकों से  निपटने के लिए  टॉस्क फोर्स बनाएं |                                                                                                                                                           कोर्ट ने कहा कि हर जिले में गठित टॉस्क फोर्स में वरिष्ठ पुलिसकर्मियों को नोडल अधिकारी के रूप में रखा जाए , सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य, दोनों को निर्देश भी दिया है कि गोरक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कारवाई करे साथ ही    इन घटनाओ को रोकने हेतु  उपयुक्त कदम  उठाए |                                                                                                                                                                     केंद्र सराकर का प्रतिनिधित्व करने वाले एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि कानून किसी भी प्रकार की अनियंत्रित घटनाओं को रोकने के लिए है जवाब में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक

 मिश्रा ने कहा ‘हम जानते हैं कि कानून हैं, लेकिन क्या कार्रवाई की गई है? आप 

नियोजित कार्रवाई कर सकते हैं ताकि हिंसा को बढ़ावा ना मिले |               

                                                           गौरतलब है कि गोरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल 2017 को केंद्र सरकार और छह राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. इसके बाद 21 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को किसी भी तरह की हिंसक घटनाओं को रोकने  , साथ ही गाय सुरक्षा की आड़ में हिंसक घटनाओं पर प्रतिक्रिया मांगी थी

ज्ञात हो – केंद्र में जब से बीजेपी की मोदी सरकार सत्ता में आई है दलितों और मुसलमानों पर कथित गो -रक्षको  द्वारा मारा -काटा गया साथ ही  हत्या की जा रही है | इसके उदाहरण -गुजरात का ऊना कांड ,  गुरुग्राम में दादरी कांड , राजस्थान के अन्दर अलवर में कथित गो-रक्षको द्वारा एक मुस्लिम युवक की पीट -पीट कर हत्या कर दी गई है | ऐसे कई उदहारण इस समय देखने को मिल रहे है 

 

              “ज्ञात हो –   राजस्थान दलितों के हत्याचार के मामलो में देश में प्रथम स्थान पर है  “

सुप्रीम कोर्ट ने माना निजता है – मौलिक अधिकार

सुप्रीम कोर्ट  की 9 जजों की  संविधान पीठ ने आज सुबह { गुरूवार }  को सर्व सहमती  ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है  |  पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए गए अधि

कारों का हिस्सा है |    ज्ञात हो इस से पहले 1950 में और 1662 के फेसले में सुप्रीम कोर्ट के निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था

 

फ़ैसला सुनाने वाली इस बेंच में कौन-कौन जज थे. आइए जानते हैं-

 

चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर

जस्टिस शरद अरविंद बोबडे

जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल

जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन

जस्टिस अभय मनोहर सप्रे

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़

जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर 

 

उपरोक्त जजों की पीठ से सर्वसहमति से ” निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार ” माना है |

प्रधानमंत्री मोदी ने किया – तीन तलाक फ़ेसले का स्‍वागत –

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने तीन तलाक पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसले का स्‍वा

गत किया है। इ

शक्तिकरण की दिशा में एक प्रभावशाली उपाय है। फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलता है और यह महिला स

 

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘तीन तलाक पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय का फैसला ऐतिहासिक है। इससे मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलता है और यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रभावशाली उपाय है’।

तलाक……तलाक …….तलाक अब और नहीं –

तीन तलाक के मामले में आज शीर्ष अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- केंद्र सरकार 6 महीने में संसद में इसको लेकर कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर के नेतृत्व में 5 जजों की  पीठ ने फैसला सुनाया। कोर्ट में तीन जज तीन तलाक को अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे, वहीं 2 दो जज इसके पक्ष में नहीं थे।

तीन तलाक  फैसले से जुड़े तथ्य –

  • सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस यूयू ललित तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे. वहीं चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर इसके पक्ष में थे.

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तीन तलाक को खत्म कर दिया है, कोर्ट ने इसे अंसवैधानिक बताया दिया है.

– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक आर्टिकल 14, 15 और 21 का उल्लंघन नहीं है. यानी तीन तलाक असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता है.

 

  • कोर्ट की कार्यवाही शुरू, मुख्य न्यायधीश जे. एस. खेहर ने बोलना शुरू किया.

  • सुप्रीम कोर्ट के कमरा नंबर 1 में होगी मामले की सुनवाई.

 

  • याचिका कर्ता सायरा बानो, पर्सनल लॉ बॉर्ड के वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

  • इस मुद्दे पर कोर्ट में याचिका दायर करने वालीं सायरा बानो ने फैसला आने से पहले कहा कि मुझे उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला मेरे हक में आएगा. जो भी फैसला होगा, हम उसका स्वागत करेंगे.

तीन तलाक के पक्ष में नहीं केंद्र

 इन पांच जजों की बेंच से सुनाया फ़ेसला-

1. चीफ जस्टिस जेएस खेहर

2. जस्टिस कुरियन जोसेफ

 3. जस्टिस आरएफ नरिमन
4. जस्टिस यूयू ललित5. जस्टिस अब्दुल नज़ीर

ये थी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील

वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है. अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं.

खत्म होनी चाहिए तीन तलाक की प्रथा

वहीं मुकुल रोहतगी ने दलील थी कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया, मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को खत्म कर चुके हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते. अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा था, ‘अगर अदालत तुरंत तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो हम लोगों को अलग-थलग नहीं छोड़ेंगे. हम मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएंगे|

 

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