परेड खत्म होने के बाद राजपथ पर किसान निकाल सकेंगे ट्रैक्टर रैली

पिछले 2 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है और किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है। लेकिन किसान संगठन 3 नये कृषि कानूनों का खत्म करने की मांग को लेकर अड़े है और हर दिन नये नये तरीके से विरोध प्रदर्शन कर सरकार को अपनी मांगे पूरी करवाने के लिए मजबूर कर रहे है। हाल ही में किसानों को दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस पर शर्तों के साथ ट्रैक्टर परेड निकालने की अनुमति प्रदान कर दी है। लेकिन किसान संगठन इस अनुमति को लेकर भी अपनी नाराजगी जता चुके है किसान संगठनों को कहना है कि ट्रैक्टर रैली की टाइमिंग और जो रूट दिया है वह सही नहीं है।

इससे पहले दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस के मौके पर सुरक्षा को लेकर रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया था लेकिन अब कुछ शर्तों के साथ मंजूरी प्रदान की है। ट्रैक्टर रैली निकालने का समय 12 बजे का दिया है जिसका कोई तुक नहीं है और इसके साथ ही किसान संगठनों ने रूट को लेकर भी सवाल उठाया है। किसानों ने बताया है कि रैली को जिन इलाकों से इजाजत दी गई है वह ज्यादातर हरियाणा का भाग है।किसानों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी दी जाए और तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द किया जाए और इसी बात को लेकर किसानों का प्रदर्शन 61 दिनों से जारी है।

गणतंत्र की परेड में हिंसा फैलाने की पाकिस्तान की साजिश का भी खुलासा हुआ है और बताया जा रहा है कि हिंसा फैलाने के लिए पड़ोसी देश इंटरनेट मीडिया का सहारा ले रहा है। इसके उन्होंने 300 से ज्यादा ट्विटर अकाउंट बनाए हैं, जिसकी जानकारी इंटेलिजेंस को मिल गई है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के बेहद कड़े बंदोबस्त किए जा गये हैं।

पुलिस मुख्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में जानकारी दी गयी कि  गाजीपुर बार्डर पर 46 किलोमीटर सिंघु बार्डर पर 62 किलोमीटर व टीकरी बार्डर पर 63 किलोमीटर के दायरे में परेड निकालने की अनुमति प्रदान की गयी है और इसके साथ तीनों बार्डरों से परेड का 100 किलोमीटर से ज्यादा का रूट दिल्ली में होगा।

किसान आंदोलन को लेकर पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को लगाई कड़ी फटकार

45 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है और किसान अपनी मांगों लेकर लगातार सरकार के साथ वार्ता कर रहे है लेकिन इसके बाद भी अभी तक कोई उचित समाधान नहीं निकल पाया है। इस आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने कई बार किसान संगठनों से आग्रह किया है वह सरकार पर विश्वास करें और आंदोलन खत्म करे लेकिन किसान संगठन ​कृषि बिलों को समाप्त करने की मांग को लेकर अड़े हुए है।

इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर आज सख्त रुख अपनाते हुए सरकार से पूछा है कि क्या वह कानून को स्थगित करती है या फिर वह इस पर रोक लगा दे। भीषण ठंड को देखते हुए अदालत ने कहा कि किसानों की चिंता करनी चाहिए और उनकी समस्या का समाधान करने के लिए एक कमिटी बनानी चाहिए। इसके साथ कोर्ट ने किसान आंदोलन पर सरकार के विवाद निपटाने के लिए जो तरीका अपनाया उसे लेकर भी सख्त टिप्पणी की है।

सुप्रीम कोर्ट ने किसान कानून समाप्त करवाना चाहते हैं जबकि सरकार मुद्दों पर बात करना चाहती है लेकिन हम एक विशेषज्ञ लोगों की एक कमिटी बनाकर कानूनों पर विचान करेंगे। किसान कमिटी के पास जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि हमने केंद्र सरकार को कहा था कि क्यों नहीं इस कानून को कुछ दिन के लिए स्थगित कर दें और उचित समाधान होने पर इस पर फैसला करें। कोर्ट किसान आंदोलन को हैंडल करने के तरीके से बहुत ज्यादा नाराज है।

मुख्य न्‍यायाधीश एसए बोबडे वाली बेंच किसाना आंदोलन से जुडी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। केंद्र और किसान संगठनों के बीच अगली बैठक 15 जनवरी को होनी है, ऐसे में SC की टिप्पणी बहुत अहम साबित हो सकती है। आज नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों का आंदोलन का 47वां दिन है केंद्र सरकार के साथ कई दौर की बातचीत फेल होने के बाद, किसान संगठनों के नेता आंदोलन तेज करने की रणनीति बनाने में लगे हैं। कोर्ट की इस बात पर विपक्ष पर केन्द्र सरकार पज जमकर हमला बोल दिया है।

 

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत का कहना है कि वह तब तक आंदोलन करेंगे जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएंगी और सरकार जितनी देर करेगी आंदोलन उतना ही तेज होता जाएगा।

कांग्रेस सभी राज्यों में 15 जनवरी को ‘किसान अधिकार दिवस’ मनाएगी और राजभवनों का घेराव करेंगे। कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि ‘अब देश के किसान काले कानून खत्म करवाने के लिए करो या मरो की राह पर चल पड़े हैं।’

 

शरद यादव ने कहा- खतरे में सिर्फ न्यायपालिका ही नहीं पूरा लोकतंत्र है

नई दिल्ली। जनता दल यूनाइटेड के बागी नेता शरद यादव ने उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों द्वारा इन न्यायालय के कार्यकलाप पर सवाल उठाने पर कहा है कि देश में आज सिर्फ न्यायपालिका ही नहीं बल्कि पूरा लोकतंत्र खतरे में है। यादव ने आज यहां संवाददाताओं से कहा‘ न्यायपालिका लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है। आज केवल यही नहीं बल्कि लोकतंत्र के अन्य स्तंभ भी खतरे में हैं। न्यायाधीशों ने यह सही कदम उठाया और अंदर की पोल खोल दी है।

यादव की यह प्रतिक्रिया उच्चतम न्यायालय के चार मुख्य न्यायाधीशों के आज बुलाए गए उस संवाददाता सम्मेलन के बाद आयी है जिमसें उन्होंने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर खुलेआम आरोप लगाते हुए कहा है कि देश की सर्वोच्च अदालत की कार्यप्रणाली में प्रशासनिक व्यवस्थाओं का पालन नहीं किया जा रहा है और मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायिक पीठों को सुनवाई के लिये मुकदमे मनमाने ढंग से आवंटित किये जा रहे हैं जिससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर दाग लग रहा है।

 

उच्चतम न्यायालय में दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर ने न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के साथ अपने तुगलक रोड स्थित आवास पर प्रेस कांफ्रेंस में ये आरोप लगाए। इन न्यायाधीशों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को इस बारे में एक पत्र लिखकर कहा है कि मुख्य न्यायाधीश का पद समान स्तर के न्यायाधीशों में पहला होता है।

तय सिद्धांतों के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को रोस्टर तय करने का विशेष अधिकार होता है और वह न्यायालय के न्यायाधीशों या पीठों को सुनवाई के लिये मुकदमे आवंटित करता है। मुख्य न्यायाधीश का यह अधिकार अदालत के सुचारु रूप से कार्य संचालन एवं अनुशासन बनाये रखने के लिये है ना कि मुख्य न्यायाधीश के अपने सहयोगी न्यायाधीशों पर अधिकारपूर्ण सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए।

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