राजस्थान सरकार के तीन वर्ष और दलित………..
राजस्थान की वर्तमान सरकार ने अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है जिसके दौरान राज्य सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास कार्य करने में उपलब्धियां भी प्राप्त की है। इन तीन सालों में तकनीकी सूचना तंत्र व आई.टी.इन्टरनेट, के क्षेत्र में तीव्र गति से जो विकास हुआ है उसको भी राज्य सरकार ने अपने मंत्रालय व विभागों में गुड गर्वेनेंस अपना कर अपने शासन बताया ।
इन तीन सालों में सरकार ने अनेक चुनौतियों व बाधाओं का सामना भी करना पडा है। परन्तु यदि हम राज्य के दलितों , आदिवासियों व महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक स्थिति और उनके विकास के आंकडों पर नजर डाले तो पता चलेगा कि धरातल पर चल रही
विकास योजनाओं और कार्यक्रमों का पूरा-पूरा लाभ उन्हे नही मिल पा रहा है। तीन साल पहले पूर्व वृति सरकार द्वारा जो कल्याणकारी योजनाऐं चलाई जा रही थी जिनमे से अनेक कार्यक्रम व योजनाओं को या तो धीरे-धीरे बन्द कर दिया जा रहा है या उन्हें संषोधित करने के नाम पर कुछ कार्यक्रमों को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है जिनमें से प्रमुख कल्याणकारी योजनाऐं और कार्यक्रम जैसे महात्मा गांधी नरेगा, इन्द्राआवास योजना, खाद्यय सुरक्षा अधिनियम, स्वास्थ्य सेवाओं मेे निःशुल्क दवा योजनाओं में कटोती कर आम जनता को जीवन जीने के अधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रजातंत्र में किसी भी सरकार के लिए प्रत्येक नागरिक स्वस्थ रहे यह सरकार की प्रथम जिम्मेदारी है लेकिन निःशुल्क बन्द कर भामाशाह योजना दिनांक 15 अगस्त 2014 से शुरू की गई । आम लोगों को लोक कल्याण कायक्रमों , राशन वितरण, सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, नरेगा भुगतान छात्रवृति, जननी सुरक्षा योजना को इस भामाषाह योजना से जोडने की सर्वोच्च प्राथमिकता है परन्तु इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को भामाषाह योजना के बारे में कोई जानकारी नही है। ऐसे लोगों के पास कार्ड तो है, परन्तु उन्हे इस के लाभ और उद्ेष्य के बारे में पता ही नही है। निःषुल्क वितरण योजना का लाभ प्रदेष मंे दलित व वंचित महिलाओं को मिल रहा था लेकिन दवाईयों, जांचों में कटोती कर निःषुल्क दवा वितरण योजना के लाभ से दलितों व महिलाओं को वंचित किया गया है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना (मनरेगा):- राज्य में ग्रामीण बेरोजगारों, और अल्प आय मजदूरों को रोजगार के लिए मनरेगा अधिनियम के लागू होने के बाद हर ग्रामीण को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाना चाहिये। लेकिन मनरेगा के एक दशक पूरा होने के बाद भी राज्य में सौ दिन का रोजगार गांरटी दिए जाने की मांग करने पर भी केवल पचास दिन का ही रोजगार राज्य सरकार उपलब्ध करवा पा रही है । सरकार रोजगार उपलब्ध करवाने में अभी कोसों दूर ही चल रही है। राज्य में सामाजिक संगठनों, विधायकों की ओर से विधानसभा में आवाज उठाने के बाद भी इस समस्या का कोई कारगर समाधान नहीं निकल सका।
चिन्ता का विषय यह है कि मनरेगा योजना को चलाने के लिए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार 2455,53 करोड की राशी दी गई थी जब कि राज्य सरकार की ओर से मनरेगा योजना के लिए 198 करोड की राशि ही जारी की इससे साफ पता चलता है कि सरकार की मंशा में खोट है इसलिए पूरी आवंटित आवंटित नही की। मनरेगा में 15 दिन में रोजगार का भुगतान नही करने पर मनरेगा एक्ट के अनुसूची 2 के पेराग्राफ 29 के अनुसार मजदूरी की कुल राशि पर 0.05 प्रति दिन की दर से ब्याज देना होता है लेकिन राज्य सरकार पिछले चार साल में 25 करोड का ब्याज का भुगता नही कर रही इससे साफ पता चलता है कि मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का भुगतान समय पर नही हो पा रहा ना ही मनरेगा के एक्ट क तहत रोजगार व मुआवजा भता मिल रहा है।
अधिनियम में 100 दिन के अधिकार की गांरटी का प्रावधान है लेकिन धरातल पर स्थिति विपरित है। मनरेगा वेबसाईट के आंकडों में राज्य में प्रति परिवार औसत रोजगार दिवस घटे है। इससे वर्ष 2012-13 में 52, वर्ष 2013-14 में 51, वर्ष 2014-15 में 46, और 2015-16 में औसतन 42 प्रति परिवार दिवस तक स्थिति पहुंच गई है।
शिक्षा –
राजस्थान में शिक्षा चैकाने वाले तथ्य व आंकडे सामने आते है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि किसी देश का भविष्य देखना हो तो उस देश के बच्चों को देखे।, उनके कथन पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि प्रदेश में देश का भविष्य सुरक्षित नही है राजस्थान के प्राथमिक से सीनीयर सैकण्डरी विद्यालयों की शिक्षा दिया जावे तो पता चलता है कि स्कूलों में सवा लाख शिक्षक की कमी है। पिछले साल 9 लाख बच्चों का नामांकर बढने के बावजूद उपस्थिति घटी है जिससे साफ पता चलता है कि विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सही नही है, माॅनिटरिेग तंत्र मजबूत नही है अफसरों की ढिलाई व सरकार की उदासीनता के कारण से सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल भवन का निर्माण नही किया गया जिसके कारण 788 स्कूल खूुले में या झोपडों में चल रहे है। राज्य सरकार के दावों के बावजूद अभी भी सवा लाख शिक्षकों की कमी है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में साढे 88 हजार पर रिक्त है। इनमें प्रधानाचार्य के 1855, प्रधानाध्यापक के 755, व्याख्याता के 26,543 वरिष्ठ अध्यापक के 15,412 अध्यापक स्तर के प्रथम के 22629, अध्यापक लेवल द्वितीय के 18,308, शाररिक शिक्षा के 124 तथा पी.टी.आई. ग्रेड थर्ड के 2,631 पर रिक्त है। वहीं प्रारंभिक शिक्षा में 48 हजार पद रिक्त है। इनमें वरिष्ठ अध्यापकोें के 8609 तृतीय श्रैणी के 38,988 तथा पी.टी.आई. के 517 पद रिक्त है। शिक्षा विभाग के अभी 2 लाख 76 हजार 616 पद स्वीकृत है। उनमें से 1 लाख 57 हजार 882 पदोें पर अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारी कार्यरत है लेकिन 1 लाख 18 हजार 734 पद खाली है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में स्कूलों की स्वच्छता की स्थिति भयावह है। प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2014 में शुरू किये गये स्वच्छता अभियान के तहत जारी क्लीन स्कूल गाइडालईन के मुताबिक हर स्कूल में 40 बच्चों पर एक शोचालय नही होने के कारण से 10 वीं के बाद बहुत सी छात्राऐं खुले में शोच की जिल्लत के कारण ड्रा-आउट होती है। समानीकरण के नाम पर 17 हजार स्कूलों को बन्द कर दिया जिसमें बन्द किये जाने वाले स्कूलों में ग्रामीण क्षेत्रों में उन स्कूलों को बन्द किया है जो दलित बाहुल्य क्षेत्रों में या उनके आस-पास थी जिसके कारण से दलित छात्र-छात्राऐं ज्यादा प्रभावित हुई है। शिक्षा के अधिकार के तहत कानून में संशोधन कर आर.टी.ई में सिर्फ बी.पी.एल. परिवार के बच्चों को ही प्रवेश का प्रावधान किया है जिसके कारण से भी दलित आदिवासी परिवार के बच्चों को आर.टी.ई. से के अन्तर्गत 25 प्रतिशत के छात्रों का प्रावधान था उन्हे इस अधिनियम से वंचित कर दिया है।
वर्ष 2015-2016 की हकीकत बयान करते आंकडे इस बात को सिद्व करने के लिए पर्याप्त है कि शिक्षा से दलित आदिवासी बच्चों की दूरी बढा दी है जो इस प्रकार हैः-
क्र.सं. श्रैणी आवेदन प्रवेश
1 बी.पी.एल. 20853 15883
2. सामान्य 72689 25991
3. एस.सी./एस.टी. 89855 44342
4. ओ.बी.सी./एस.बी.सी. 160989 79527
5. दिव्यांग 1623 536
6. अनाथ 739 उपलब्ध नही
स्वास्थ्य ….
स्वस्थ नागरिक देश व समाज की मानवीय सम्पति है। व्यक्ति अस्वस्थ होता है तो उसका कुप्रभाव देश व समाज दोनो पर पडता है जिसका नुकसान देश व समाज दोनो का उठाना पडता है। प्रदेश में जंचा-बच्चा के स्वास्थ्य व कुपोषण से मुक्त करने के लिए आंगन बाडी केन्द्रों पर पोषहार वितरण स्वास्थ्य जांच, स्कूलों में पोषाहार, गरम पोषहार आदि योजनाऐं संचालित है लेकिन आज भी प्रदेष में 12.2 प्रतिशत बालक 11.7 प्रतिशत बालिकाएं अति कुपोषित की शिकार है। प्रदेष में अति कुपोशित लडके 9.4 प्रतिशत , अति कुपोषित लडकियां 7.6 प्रतिशत, कुपोषित लडके 26.8 प्रतिषत, कुपोषित लडकियां 17.9 प्रतिषत, कम वजनी बालक 29 प्रतिषत, कम वजनी बालिका 24.9 प्रतिशत है। उक्त आंकडो से साफ पता चलता है कि बच्चों की स्थिति स्वास्थ्य के प्रति चिन्ता जनक है।
विधवा व वृद्वा अवस्था पेंषन येाजनाः-
वर्ष 2016-17 के राज्य में वृद्वजनों , विधवा, महिला तथा निःषक्त जनों के कल्याण हेतु पेंषन योजनाअें के लिए राज्य सरकार ने कुल 3682.35 करोड की राशि प्रस्तावित की है। यह राषि वर्ष 2015-16 के बजट अनुमान में प्रस्तावित राषि 343.38 करोड रूपये कम है। परन्तु इसी वर्ष के संषोधित बजट से करीब 24 करोड रूपये ज्यादा हे। वर्ष 2015-16 के संषोधित बजट में वृद्वजनों, विधवा महिलाओं तथा निःषक्त जनों के कल्याण हेतु पेंषन येाजनाअें के लिए बजट को 368.36 करोड रूपये से घटा दिया गया है। यह कमी मुख्य रूप से वृद्वजनों के लिए पंेषन योजनाओं में की गई है।
खाद्य सुरक्षा योजना से एक करोड लोगों को बाहर कियाः- वर्तमान सरकार ने टस्क फोर्स द्वारा निर्धारित माप दण्डों की आड लेकर 1 करोड लोगों को बाहर किया और जो पात्र लोग छुट गये थे उन्हे खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल किया गया है। परन्तु विधानसभा में प्रशन काल के दौरान यह कहा गया है कि राज्य के एक करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना के लाभों से वंचित कर दिया गया है। टास्क फोर्स की सिफारिषों के अन्तर्गत खाद्य सुरक्षा योजना के लाभों से वंचित किये गये लोगों में अधिकतर वंचित वर्गो के गरीब व जरूरत मंद लोग है।
इंदिरा आवास योजना:- …………….
राज्य सरकार ने इंदिरा आवास योजना को समाप्त कर इसके स्थान पर मुख्यमंत्री आवास योजना बनाई है परन्तु अभी तक मुख्यमंत्री आवास योजना धरातल पर नही आ पाई है।
पालनहार योजना:- पालनहार योजना में फण्ड का टोटा बच्चों और पालनहार के लए मुसीबत बन गया है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग की और से प्रदेश में करीब 2 लाख एक हजार बच्चे और एक लाख 14 हजार 137 लाभार्थी योजना से जुडे हुए है पर बजट के अभाव में उनका भविष्य खतरे में है।
निष्कर्ष………………
राज्य सरकार के 3 वर्षो के कार्य कलापों का मूल्यांकन करने पर पता चला है कि राज्य सरकार से दलितों, व वंचित वर्ग के लोगों को जितनी आशा थी वह इन आशा ओं के मुताबिक खरी नही उतर पाई। नई सरकार ने दलितों को जितने दिव्य स्वप्न दिखा कर सत्ता में आई वह दलितों के लिए मृग तृष्णा ही साबित हुई। आज राजस्थान का दलित अपने आप को ठंगा हुआ असहाय महसूस कर रहा है। अब सरकार के पास अग्नी परीक्षा के दो वर्ष का समय है, क्या दो वर्ष में दलितों का कुछ भला हो पायेगा ? यह प्रशन चिन्ह सरकार के लिए चिन्तन व प्रदेष के दलितों के लिए चिन्ता का विषय है।
(पी.एल.मीमरौठ)
मुख्य कार्यकारी
दलित अधिकार केन्द्र, जयपुर
112, सूर्य नगर,
गोपालपुरा बाई पास,
जयपुर
मो. 9351317611
Like this:
Like Loading...