Private schools that talk a lot about education and human values -now even in this
pandemic period, education is being commercialized –
जयपुर | शिक्षा व मानवता का पाठ पढ़ाने वाले स्कूल आज कल इस वैश्विक महामारी कोरोना में भी पेरेंट्स को छुट्टियों की फीस जमा कराने के लियें दबाव् बना रहे हैं |
इस मुश्किल घड़ी में जहां लॉक डाउन के चलते पिछले 40 दिन से अधिक समय से व्यवसाय बंद हैं घर चलाने का भी खर्च अब मध्यमवर्गीय परिवार के पास नहीं बचा हैं अब स्कूलों के मेल ,कॉल आदि द्वारा पेरेंट्स पर दबाव बनाया जा रहा हैं कि आप अपने बच्चों की फ़ीस जमा किरायें|

अब मध्यम वर्गीय परिवार मानसिक रूप से तनाव में है एक और तो काम धंधे ठप हैं उसके ऊपर प्रधानमंत्री मोदी व राज्य सरकारों ने आदेश जारी कर के कह दिया हैं कि लॉक डाउन के चलते आप अपने यहां काम करने वाले मजदूरों को नोकरी से नहीं निकाल सकते और उन्हें लॉक डाउन के चलते सैलेरी भी देना अनिवार्य हैं |
अब मध्यम वर्गीय परिवार अपना घर चलायें या जरूरतमंद लोगों की मदद करें या बंद पड़े व्यापार का किराया दे जबकी धंधा चोपट हो चुका हैं और उस पर अलग से स्कूल प्रशासन तीन महीने के फीस मांग रहा हैं जिसको लेकर मध्यम वर्गीय परिवार अतिरिक्त तनाव में जीवन गुजार रहे हैं |
स्कूल प्रशासन ने कहा – निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि वह छुटियों में भी ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं जबकि एक सर्व में कहा गया है कि भारत मे अभी छोटे बच्चे ऑनलाइन स्टडी को प्राथमिकता नहीं देते हैं |
अभिभावकों ने कहा – पेरेंट्स आर सी शर्मा ने कहा कि आज निजी स्कूलों ने शिक्षा का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण कर दिया है यह तो इंसानियत भी मार चुके है इस आपदा के समय जब देश दुनिया मानवता को बचाने में लगी हैं जब सब मिलकर इस कोरोना महामारी से लड़ रहे है सरकार ने सभी से अपील की है कि वह किरायदारों से 3 माह का किराया ना ले और किसी गरीब को परेशान ना होने दे|
वही दूसरी और आज यह शिक्षा का मंदिर इस आपदा के समय मे पेरेंट्स पर 3 माह की फीस जमा कराने का दवाब बना रहे हैं जबकि 30 बच्चों पर एक टीचर होता हैं इस के अनुसार भी मोटी फीस लेने वाले स्कूल अपने को ख़राब आर्थिक स्थिति में बता रहे हैं और फीस की अपील का विज्ञापन फुल पेज का देकर पेरेंट्स से फीस की मांग कर रहे हैं जो कि मानवीय मूल्यों के विपरीत हैं