सीवरेज टैंक में मौतों का सिलसिला थम ही नहीं रहा ………..आख़िर वर्ग विशेष की “जीवन ” की कीमत मात्र कुछ रुपयें
MANUAL SCAVENGERS AND THEIR REHABILITATION ACT- 2013 निष्क्रिय साबित हो रहा हैं
जयपुर । एक वर्ग विशेष की जान की कीमत आज मात्र 500 रुपये हैं क्योंकि वह मात्र कुछ पैसों के लियें आप के मल मूत्र में मुँह तक दे देता हैं क्योंकि उसकी भी कोई मजबूरी होगी चाहें उसकी जान ही क्यों न चली जायें लेकिन इस कि जिम्मेदारी किसकी हैं तो हम बता देते हैं सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार प्रशासन की हैं क्योंकि सरकारी प्रशासन अपनी जिम्मेदारी कर्त्तव्य का निर्वहन सही रूप से नहीं कर रहा जो कि शर्मनाक है |

घटनाक्रम – सीतापुरा इंड्रस्ट्रीयल एरिया के ज्वैलरी जोन स्थित कंपनी SONI ,INTERNATIONAL ,JEW.MFG.CO F-22, SEZ – 1 ,PHASE -1 SITAPURA ,JAIPUR ,GSTIN,08 AEVPS.3888PIZZ ) में सीवरेज व केमिकल वेस्ट टैंक में फुल होने पर कंपनी मालिक संजीव सोनी द्वारा चार वाल्मीकि समाज के युवा मजदूरों को बुलाया गया और उन्हें जहरीले पदार्थ व मल मूत्र टैंक में बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के उतार दिया गया जिसमें अजय खोड़ा की ज़हरीली गैस से घटना स्थल पर ही मौत हो गई जबकि ,सनी उर्फ भूरिया, आकाश बोयत को अचेत अवस्था में महात्मा गांधी अस्पताल में पहुँचाया गया जिसमें डॉक्टरों ने अजय को मृत बता दिया बाकी दो की हालत नाज़ुक बता कर आईसीयू में भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया |
मृतक अजय के एक बच्चा छोटा हैं जबकि उसकी पत्नी अभी गर्भवती अवस्था में हैं और उसकी परिवारिक स्थिति सही नहीं हैं आज उसकी गैर इरादतन हत्या कर दी गई पूंजीपतियों द्वारा सब ख़ामोश और तमाशबीन – कंपनी मालिक मुवावजा देकर लगभग राजीनामा कर लेगें पुलिस बिना शिकायत के कैसे कार्य करें और पत्रकार स्टोरी लगा कर मुद्दे का उजागर करें लेकिन कब तक सीवरेज सफाई का कार्य दलित उसमें भी वाल्मीकि समाज ही करेगा 10 दिन पहलें ही सीवरेज में उतरनें से बीकानेर में 3 लोगों की मौत हो गई थी उससे पहले सांगानेर मुहाना मंडी में 2 की मौत हो चुकी हैं उससे पहलें सिविल लाइन जोन में मौते हो चुकी हैं इनका स्थाई समाधान क्या हैं यह एक बड़ा सवाल हैं |
हेमलता कंसोटिया ( नेशनल कैम्पन डिग्निटी एंड राइट एंड सीवरेज अलाइड वर्कर ) नई दिल्ली –
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को आदेश दे रखा हैं की सफाई का कार्य ( सीवरेज ,अपशिष्ट प्रदार्थ ) का प्रबंध मेनुअल नहीं होगा लेकिन आज भी इस तरीके की घटना सामने आती हैं जो यह तय करती हैं की प्राइवेट कंपनीज दलितों की हत्या कर रही हैं इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहियें की कानून का पालन क्यों नहीं हो रहा |

MANUAL SCAVENGERS AND THEIR REHABILITATION ACT- 2013 कानून निष्क्रिय साबित हो रहा हैं
गौरतलब हैं की भारत में सफाई कर्मी के रूप में वाल्मीकि समुदाय के लोग ही अधिकतर या कहें शत प्रतिशत जुड़े हैं चुकी यह समाज सामाजिक द्रष्टि से अछूत माना जाता हैं जिसका मुख्य कारण इनका कार्य भी बताया जाता हैं क्योंकि यह सीवरेज लाइन सफाई और अपशिष्ट प्रदार्थ के प्रबन्धन के कार्य से जुड़े हैं भारत सरकार ने मेला ढोने की प्रथा को खत्म करने के लियें कड़े प्रावधानों के साथ MANUAL SCAVENGERS AND THEIR REHABILITATION ACT- 2013 बनाया था जिसमे साफ़ लिखा गया हैं की कोई भी व्यक्ति मेला ढोने का कार्य हाथ से नहीं करेगा इस के लियें मशीनों की सहायत ली जायें लेकिन आज इस कानून का इस सिस्टम ने मजाक बना दिया हैं चाहे राज्य सरकारे हो या पूंजीपति लोग वह सब कुछ पैसों के लालच में वाल्मीकि समाज के लोगों से ही कार्य करवाते हैं जब जेहरीली गैस से किसी सफाई कर्मी की मौत हो जाती हैं जब यह मुद्दे सामने आते हैं उसके बाद पीड़ित परिवार व् अपराधी राजीनामा कर लेते हैं पुलिस केस बंद कर देती हैं और सब फ्री हो जाते हैं तो यह बड़ा सवाल हैं की इस कानून के तहत कितने लोगो को सजा मिली –