किसानों के भारत बंद को मिला विपक्षी दलों का साथ

कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग देश के सभी राज्यों किसान आंदोलन कर रहे किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का फैसला किया है। किसानों के भारत बंद को समर्थन करने के लिए विपक्षी दल भी एक होकर किसानों के साथ खड़े हो रहे है। अब तक 11 से ज्यादा विपक्षी दल और दस ट्रेड यूनियन भारत बंद का सफल बनाने के लिए इसका समर्थन कर चुकी हैं।

विपक्षी दलों ने कहा, संसद में बिना वोटिंग व चर्चा के जल्दबाजी में पास कराए गए कृषि कानून भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इसके कारण देश के किसानों व कृषि पूरी तरह से नष्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।


किसानों के साथ पांचवें दौर की वार्ता भी असफल रहने के बाद कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने रविवार को राज्यमंत्री कैलाश चौधरी व पुरुषोत्तम रुपाला के साथ बैठक करके 9 दिसंबर को होने वाली बैठक की रणनीति बनाई है। इस आंदोलन के बारे में बीजेपी ने कहा कि देश के असली किसान कानूनों से चिंतित नहीं है और अपने खेतों में काम कर रहे हैं। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने राजनीतिक फायदे के लिए
किसानों को गलत जानकारी देकर आंदोलन करने के लिए उकसाया है।

किसानों को लेकर हमेश राजनीति होती रही है लेकिन आज तक किसी भी पार्टी ने इनका भला नहीं किया अगर आजादी के 70 साल बाद भी किसान को कोई पहचान नहीं मिली तो इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो ही जिम्मेदार है। पीएम मोदी ने भी किसानों से अपील की है कि वह किसी के बहकावे में नहीं आवे कुछ लोग अपने फायदे के लिए किसानों का सहारा लेकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए है।

राजस्थान की विधानसभा में भूतों का साया ! जानें क्या हैं पूरा मामला

राजस्थान विधानसभा में फिर दबी जुबा भूतों की चर्चा – विधायको गणों की मौत के साथ एक बार फिर चर्चा –

राजस्थान विधानसभा का नया भवन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस तैयार ​किया गया था लेकिन ​इस भवन पर भूतों के साये की बात एक बार फिर सच साबित होती नजर आ रही है।

साल 2001 से लेकर 2020 तक की किसी भी बैठक में सदन के सदस्यों की संख्या पूरी नहीं हुई. इस दौरान कभी विधायकों के लोकसभा का चुनाव जीत जाने या कभी किसी की मृत्यु हो जाने से यह आंकड़ा कभी पूरा नहीं हो पाया। लेकिन कई विधायक और पूर्व मंत्री इस संयोग को भूत—प्रेत से जोड़ चुके है।

लेकिन जब भी एक या दो विधायक की मौत होती है तो और संख्या घटती है तो ये अफवाह फिर से अपना मजबूत होती है कि इस विधानसभा पर काला जादू है जो 5 साल तक किसी भी सरकार के कार्यकाल में 200 की संख्या नहीं हो पा रही है।

 

 

 

कोरोना काल में दो कांग्रेस और एक बीजेपी विधायक की मौत के बाद विधानसभा पर भूतों के साये की अफवाह गर्म हो गयी है और इसके समाधान को लेकर कुछ करने की बात भी की जा रही है। कई मौको पर विधायक यह कह चुके हैं कि इस भवन का एक हिस्सा श्मशान की जमीन पर बना हुआ है जिसके कारण ऐसा हो रहा है।

कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी का निधन इसके बाद मौजूदा सरकार के मंत्री भंवर लाल मेघवाल और बीजेपी की दिग्गज नेता किरण माहेश्वरी का निधन होना भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

नहीं रहा कांग्रेस का संकटमोचक! जाने इसका इतिहास

अहमद पटेल कांग्रेस पार्टी के लिए वह नाम था जो अपने आप में कांग्रेस की 3 पीढ़ियों में लगातार अपना विश्वास बनाये हुए था। पटेल कांग्रेस के ऐसे नेता ​थे जो इंदिरा गांधी के दौर से लेकर सोनिया गांधी के वक्त तक उनका राजनीतिक सफर हमेशा से अहम रहा है। कई बार पटेल को कांग्रेस पार्टी ने अलग थलग कर दिया था लेकिन उनकी पार्टी के प्रति वफादारी है जो इतनी अनदेखी होने के बाद भी पार्टी के प्रति अपना मन नहीं बदले दिया।

राजीव गांधी की हत्या के बाद जब नरसिम्हा राव की अगुवाई में कांग्रेस ने केन्द्र में अपनी सरकार बनाई तो गांधी परिवार का सबसे वफदार कहे जाने वाले पटेल को किनारे कर दिया इसके साथ कई मौको पर पटेल को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की सदस्यता के साथ अन्य पदों से भी हटा दिया गया था। इसके बाद भी वह पार्टी के प्रति वफादार बने रहे और इसी वजह से कांग्रेस पार्टी में उनको बहुत अहम माना जाता था।

5 बार राज्यसभा और 3 बार लोकसभा सांसद बने

गुजरात में जन्में अहमद पटेल तीन बार लोकसभा के लिए चुने गए तो 5 बार राज्यसभा के सांसद चुने गये और वह पहली बार 1977 में महज 26 साल की उम्र में लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। पटेल का परिवार भी राजनीति ने जुडा हुआ था ले​किन पटेल के बच्चे इससे दूर है। इसके साथ पटेल ने कई मौको पर के​न्द्रीय मंत्री पद न लेकर पार्टी को मजबूत बनाने का कार्य किया इसी वजह से वह पार्टी के सबसे शक्तिशाली नेता माने जाते ​थे।

पटेल का दूसरा नाम कांग्रेस का संकटमोचक

पटेल ने कई मौको पर अपने आप को साबित किया जिसके कारण उनको कांग्रेस का संकटमोचक भी कहा जाता है। इंदिरा से लेकर सोनिया तक उनकी हर बात आंख मूदकर विश्वास करती है और इसी कारण वह सोनिया गांधी के सबसे करीबी सलाहकारों में उनको गिना जाता है। अगर बात करे कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं की तो उसमें पटेल का नाम सबसे अग्रिण है। लेकिन उनके निधन से कांग्रेस पार्टी के साथ गांधी परिवार को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है।

 

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