जयपुर। देश के सबसे बङे राज्य राजस्थान में गत दिनों माॅब लींचिग में तथाकथित गौ रक्षकों ने एक व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया। इससे पहले पहलू खान, उमर और अफराजुल का भी इसी नफरती आतंकी सोच ने कत्ल कर दिया था। देश के अन्य राज्यों में भी माॅब लींचिग की ऐसी कई वारदातें हो चुकी हैं। कहीं गौ हत्या के नाम पर, तो कहीं बच्चा चोरी या अन्य किसी नफरती अफवाह
के चलते गरीब व लाचार व्यक्ति को सरेआम पीट पीट कर मार डाला गया है। विचित्र बात यह है कि ऐसी घटनाओं में मरने वाले अधिकतर मुसलमान, दलित और आदिवासी समुदाय से सम्बंधित लोग होते हैं। जो बङी मुश्किल से अपना जीवन यापन करते हैं। सत्ताधारी भाजपा जहाँ ऐसी घटनाओं पर अगर मगर के शब्दों के साथ निन्दा कर खामोश हो जाती है, वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक नपे तुले अन्दाज़ में निन्दा की रस्म अदायगी कर अपने आपको जिम्मेदारी से मुक्त कर लेती है। अफराजुल के मामले में तो कांग्रेस ने निन्दा करना भी उचित नहीं समझा था, क्योंकि उसके कत्ल के अगले दिन गुजरात में विधानसभा चुनाव का मतदान जो होना था।
स्पष्ट है कांग्रेस को प्रमुख विपक्षी पार्टी होने के नाते इन हत्याओं और मानवाधिकार हनन के खिलाफ बाबलन्द आवाज में अपराधियों एवं उनके हिमायती सियासी आकाओं को ललकारना चाहिए। लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं करती है, जिससे लोग कई तरह के सवाल उठाते हैं। पहला तो यह है कि माॅब लींचिग की इन घटनाओं से जो व्यक्ति या समुदाय भाजपा से नाराज होता है, वो जाहिर है विकल्प न होने के कारण कांग्रेस को वोट देगा। यानी इस हिंसक ताण्डव में कांग्रेस के लिए सियासी फायदा ही है। दूसरा यह है कि वो दबी जुबान में निन्दा इसलिए करती है, ताकि इन तथाकथित विभिन्न स्वयंभू रक्षकों से सम्बंधित लोग उससे नाराज नहीं हो जाएं। तीसरा यह है कि वो खुलकर इस हिंसा का बङे पैमाने पर विरोध इसलिए नहीं करती है, ताकि लोग उसे सिर्फ मुसलमानों और दलितों की पार्टी ही न मान लें। क्योंकि माॅब

लींचिग में ज्यादातर मुस्लिम और दलित ही मारे जाते हैं। कांग्रेस के इस रवैये से मुसलमानों और दलितों में कङी नाराजगी है। उनका मानना है कि माॅब लींचिग मामले में भाजपा तो इसलिए खुलकर विरोध नहीं करती है, क्योंकि उससे समर्थित विचारधारा से सम्बंधित ही ज्यादातर लोग माॅब लींचिग करते हैं तथा माॅब लींचिग के बाद अगर मगर की भाषा में बयानबाज़ी कर भाजपाई नेता ही अपराधियों को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं। इसलिए भाजपा से इस मामले में अच्छी उम्मीद करना बेवकूफी है। लेकिन कांग्रेस का तो दूर दूर तक इन स्वयंभू रक्षकों या यह कहें कि इन हिंसक आतंकियों से कोई रिश्ता नहीं है, इसलिए कांग्रेसी नेताओं को माॅब लींचिग के खिलाफ आवाज उठाने में क्या परेशानी है ? क्या सिर्फ यह कि वे जोर से बोल कर माॅब लींचिग वाली इस हिंसक भीङ को नाराज नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें इनका भी वोट चाहिए ?
ताजा घटना राजस्थान की है, इसलिए इस लेख में विशेष उल्लेख राजस्थान के कांग्रेसी नेताओं का ही किया जा रहा है। राजस्थान के अधिकतर कांग्रेसी नेताओं ने इस मामले में निन्दा का शब्द भी नहीं बोला है। हाँ, पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कुछ कांग्रेसी नेताओं ने जरूर निन्दा की है, लेकिन उन्होंने भी मात्र एक रस्म अदायगी की है। बाकी तो सारे यह लेख लिखे जाने तक खामोश थे। हाँ, यह लेख सोशल मीडिया पर डालने के बाद कुछ ने निन्दा करने की जल्दबाजी जरूर दिखाई, जो एक अच्छी बात है। यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि माॅब लींचिग का सबसे ज्यादा विरोध मार्क्सवादी, लोहियावादी, गांधीवादी एवं अम्बेडकरवादी राजनीतिक कार्यकर्ता तथा सामाजिक व मानवाधिकार संगठन करते हैं। बहुत सी जगह यह लोग संगठित होकर एक साथ भी विरोध करते हैं, लेकिन कांग्रेसी कभी भी इन विरोध प्रदर्शनों में आकर अपना चेहरा नहीं दिखाते हैं। इसलिए कांग्रेसियों पर सवाल उठते हैं कि वो माॅब लींचिग में सियासी नफा नुकसान देखकर ही अपना मुंह खोलते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि माॅब लींचिग में जितने भी लोग दादरी में अखलाक से लेकर अलवर में अकबर (रकबर) तक जो मारे गए हैं, उनमें सबसे ज्यादा संख्या मुसलमानों की है। इसलिए मुस्लिम समुदाय में कांग्रेस के इस ढुल मुल रवैये को लेकर बङी नाराजगी है और वो सवाल करता है कि हमारे वोट लेकर सत्ता के मजे लेने का ख्वाब देखने वाले कांग्रेसी नेता माॅब लींचिग पर खामोश क्यों हैं ? राजस्थान में करीब एक चौथाई विधानसभा सीट ऐसी हैं, जहाँ मुस्लिम वोटर अच्छी खासी तादाद में है। इनमें करीब दो दर्जन सीटों पर कांग्रेस के मुस्लिम नेता टिकट के दावेदार हैं तथा तीन दर्जन सीटों पर अन्य नेता यानी गैर मुस्लिम नेता दावेदार हैं। इनमें कुछ की फोटो यहाँ प्रकाशित की जा रही है। कुछ पहले विधायक व मन्त्री रहे हैं और कुछ नए दावेदार हैं। यह नेताश्री रोज शुभकामना, श्रद्धांजलि, बधाई, नमन, मुबारकबाद आदि सन्देशों को फोटो सहित विज्ञापन की शक्ल में तैयार कर सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं या किसी से करवाते हैं। जो कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन इनमें से ज्यादातर ने अलवर की इस माॅब लींचिग के मामले में निन्दा के दो शब्द भी नहीं कहे हैं। क्या यह मानें कि इनको अभी तक इसकी जानकारी नहीं मिली है ? या यह अपने सियासी नफे के लिए खामोश रहने में भलाई समझ रहे हैं ?
लेख़क –
एम फारूक़ ख़ान
{ यह लेख़क के निजी विचार है }
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