महाराष्ट्र : 14 अप्रैल को रात 8 बजे से सूबे में धारा 144 लागू करने का ऐलान किया है- मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे

‘ब्रेक द चेन अभियान’

मुंबई | महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते केसों की संख्या ने मुख्यमंत्री ठाकरे को बड़े सख्त कदम उठाने पर मजबूर पर दिया हैं मुख्यमंत्री ठाकरे आज राज 8 बजें मीडिया को संबोधित किया जिसमे 14 अप्रैल से  आंशिक  लॉक डाउन की घोषणा की घोषणा की हैं |

महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने कोरोना संकट से निपटने के लिए कड़े प्रतिबंधों का ऐलान किया है। प्रदेश में बीते साल की तरह पूर्ण लॉकडाउन नहीं रहेगा, लेकिन सभी गैर-जरूरी सेवाएं बंद रहेंगी और बेवजह निकलने पर रोक होगी। सीएम उद्धव ठाकरे ने 14 अप्रैल को रात 8 बजे से सूबे में धारा 144 लागू करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि यह आपके मन-मुताबिक न हो, लेकिन तब भी ऐसा करना पड़ रहा है। पूरे राज्य में अगले 15 दिन तक संचार बंदी लागू की जाएगी। उन्होंने लॉकडाउन शब्द का इस्तेमाल न करते हुए इसे ‘ब्रेक द चेन अभियान’ करार दिया।

सीएम उद्धव ठाकरे ने साफ किया कि जरूरी सेवाओं को छोड़कर सारे दफ्तर बंद रहेंगे। ईकॉमर्स, बैंक, मीडिया, पेट्रोल पंप, सुरक्षा गार्ड जैसे लोगों को इसमें छूट दी गई है। रेस्तरां आदि खुले रहेंगे, लेकिन वहां बैठकर खाने पर रोक होगी। सिर्फ होम डिलिवरी और टेक-अवे की सुविधा रहेगी।

 

गरीबों को राशन से लेकर कैश तक की मदद का ऐलान –

कंस्ट्रक्शन के काम में लगे मजदूरों को प्रति माह 1,500 रुपये की आर्थिक मदद देने वाले हैं। अधिकृत फेरी वालों को भी मदद दी जाएगी। रिक्शे वालों को भी 1,500 रुपये और आदिवासियों को 2,00 रुपये महीने की मदद मिलेगी। 7 करोड़ लोगों को 3 किलो गेहूं और 2 किलो चावल अगले तीन महीने तक देंगे। यह सुविधा राशन कार्ड होल्डर्स को सरकारी दुकानों से दिया जाएगा। सीएम ने कहा कि इस आंशिक लॉकडाउन के दौरान किसी की रोजी-रोटी पर संकट न आए, ऐसा हमारा प्रयास रहेगा। हमने 3,300 करोड़ रुपये की रकम कोविड के लिए निकाले हैं, जिससे लोगों को मदद दी जाएगी। हमने कुल 5,500 करोड़ रुपये का बजट कोरोना के लिए तय किया है। उन्होंने कहा कि अब हमारे कोई चारा नहीं है, इसलिए हम ऐसा कर रहे हैं। आरोग्य सुविधाओं और वैक्सीनेशन को बढ़ाने के लिए हमने यह फैसला लिया है। मेरी सभी से हाथ जोड़कर विनती है कि इसका पालन करें।

 

किसान आंदोलनः किसान और सरकार के बीच आज होगी 11वें दौर की बातचीत

नए कृषि कानूनों के मुद्दों को हल करने के लिए केंद्र सरकार के केंद्रीय मंत्री व किसान संघ के प्रतिनिधि 11 वें दौर की बातचीत शुक्रवार यानी आज होगी। यह बातचीत विज्ञान भवन में होगी जिसमें तीनों कृषि कानून को लेकर पिछले दस दौरे की चर्चाओं में कोई नतीजा नहीं निकल सका है। किसान इन कानूनों को खत्म करने की मांग पर अड़े जबकि केन्द्र सरकार कानूनों को खत्म करने बजाय उन में कुछ बदलाव करने पर तैयार है।

किसान संगठनों ने 26 जनवरी को टै्रक्टर मार्च निकालने का ऐलान कर चुके है जबकि केन्द्र सरकार इस मार्च को नहीं निकालने की बात कह रही है। देश की सर्वोच्च अदालत ने किसान आंदोलन पर सुनवाई करते हुए कहा था कि आंदोलन करने वाले किसानों की मांगों को सही प्रकार से समझने के लिए एक समिति नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन इस समिति को लेकर किसान सगठनों ने आपत्ती जताई है। किसान सगठनों ने गुरुवार को सरकार की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनकी मांग कानूनों को खत्म करने को लेकर है।

इसके साथ किसान संगठन ट्रैक्टर रैली आयोजित करने की अनुमति के संबंध में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे।
तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान संगठन पिछले लगभग दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं। सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य ;एमएसपी पर एक कानून बनाने की बात कही है। अब यह देखना होगा की आज की वार्ता में किसान संगठन क्या निर्णय करते है अगर बात नहीं बनी तो यह आंदोलन जारी रहेगा

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सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नये कानूनों पर रोक लगा दी है। कोर्ट के अगले आदेश तक ये कानून लागू नहीं होंगे और इसके साथ अदालत ने इन कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन भी किया है। इसके लिए कोर्ट ने हरसिमरत मान, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, डॉ प्रमोद कुमार जोशी (पूर्व निदेशक राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन), अनिल धनवत के नाम कमिटी के सदस्य के तौर पर पेश किये है।

संसद – खट्टी मीठी यादों के साथ रहा मानसून सत्र – देखें कोनसे 18 प्रमुख बिल पास हुयें 

कोविद महामारी के कारण निर्धारित समय से आठ दिन पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित सदन 
 कृषि और श्रम सुधारों से जुड़े अहम विधेयक इस सत्र में हुए पारित जिन पर विवाद भी हुयें हैं 
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  नई दिल्ली |  कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते संसद का मानसून सत्र निर्धारित समय से आठ दिन पहले बुधवार को समाप्त हो गया। लेकिन संसद के इस छोटे सत्र ने बड़े बिल रखें गयें सदन में जिनमे इसमें कृषि और श्रम सुधारों से जुड़े अहम विधेयक पारित हो गए। संसद का यह सत्र भले ही मात्र 10 दिनों का रहा हो, लेकिन कामकाज के लिहाज से दोनों सदनों का प्रदर्शन शानदार रहा। कोरोना काल का यहअनोखा सत्र अभूतपूर्व हंगामे के लिए भी याद किया जाएगा।
कृषि सुधारों से संबंधित विधेयकों को लेकर राज्यसभा में अभूतपूर्व हंगामा हुआ जिसकी कड़वाहट संसद के बाहर भी महसूस की जा रही है। संसद के 10 दिनों के छोटे से सत्र में भी दो दर्जन से अधिक विधेयक पारित करा लिए गए। इसमें कृषि और श्रम सुधारों के साथ कर सुधार, इंसॉल एंड बैंक्रप्सी और विदेशी अंशदान विनियमन संशोधन विधेयक प्रमुख हैं। कृषि सुधारों को लेकर राज्यसभा में अभूतपूर्व हंगामा हुआ, जिसकी धमक देश के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक आंदोलन के रूप में सुनाई पड़ रही है। राज्यसभा में सत्र के अंतिम दिन जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक पारित कर दिया गया, जिससे वहां की सरकारी भाषा कश्मीरी, डोगरी और हिंदी हो गई।
कृषि बिल हंगामे के बाद – धरने पर सांसदगण
कृषि बिल पर हुआ विरोध 25 को भारत बंद की कॉल भी – 
 मानसून सत्र के दौरान सबसे चर्चित कृषि सुधार से संबंधित तीन विधेयक थे जिस पर विपक्ष ने जबरदस्त विरोध जताया। मंडी कानून से अलग एक केंद्रीय कानून के साथ कॉन्ट्रैक्ट खेती के विधेयक को सदन में पास कर दिया गया। इसके विरोध में लोकसभा में विपक्षी दलों ने सदन का बायकाट किया जबकि राज्यसभा में विपक्षी पार्टियों ने जबरदस्त हंगामा किया। इसके बावजूद अभूतपूर्व हंगामे और शोर शराबे हंगामें के बीच विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिए गए। सदन की मर्यादा को ठेस पहुंचाने के आरोप में विपक्ष के आठ सांसदों को निलंबित भी कर दिया गया।
मानसून सत्र में पारित प्रमुख विधेयक –
1.कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) विधेयक 
2. कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर 
3.करार विधेयक आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन विधेयक       4.जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक
5.ट्रिपल आईटी संशोधन विधेयक       6.कराधान एवं अन्य कानून विधेयक      7.बैंकिंग रेगुलेशन संशोधन विधेयक 
8.कंपनी संशोधन विधेयक  9.राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक      10.विदेशी योगदान (नियमन) विधेयक
 11. औद्योगिक संबंध संहिता      12.एयरक्राफ्ट संशोधन विधेयक   13. आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान विधेयक 
14. होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल विधेयक इंडियन मेडिसिन सेंट्रल काउंसिल संशोधन विधेयक
15.मंत्रियों के वेतन और से जुड़ा संशोधन विधेयक  16.सांसदों के वेतन, भता और पेंशन से जुड़ा संशोधन विधेयक
17.इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड दूसरा संशोधन विधेयक  18. संक्रामक (एपिडमिक) रोग संशोधन विधेयक

दलित युवाओं के आइकॉन – चंद्र शेखर ” रावण ” आज़ाद – आख़िर टारगेट पर क्यों है जानें

दलित युवाओं के आइकॉन – चंद्र शेखर ” रावण ” आज़ाद – आख़िर टारगेट पर क्यों है जानें

जयपुर | अन्याय व स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे रावण  उर्फ़ चंद्रशेखर आज़ाद  का भविष्य आगें काटों भरा प्रतीत हो रहा है या यह कहे कि रावण को मानसिक प्रताड़ना देकर धीमे – धीमे ख़त्म करने की साज़िश विरोधियों द्वारा की जा रही है उसके पीछे कई अहम कारण हैं

अगर चन्द्र शेखर रावण एक आंदोलनकारी से आगे की सोच रखते है तो उन्हें बिना देर करें अपनी – राजनीतिक पार्टी का निर्माण कर के उनके संगठन ” भीम आर्मी ‘ को संवैधानिक अमलीजामा पहनाने में देर नहीं करनी चाहिये जिससे सही मंच पर संवैधानिक रूप से अपनी बात वंचित वर्ग – पीड़ित के लियें उठा सकें  |

चंद्र शेखर रावण के जीवन के पन्ने देखे तो उनका इतिहास व संघर्ष देखते है ही बनता है –

सहारनपुर के एक छोटे से गाँव  कासगंज से चंद्रशेखर का संर्घष शुरू होता है गाँव के ही एक छाजू  सिंह ठाकुर इंटर कालेज में दलितों छात्र -छात्रों से छुआछूत – मारपीट की  घटना सामान्य होती थी , गाँव के ही कुछ लडको ने एक ग्रुप बनाया जिसका काम सामाजिक कार्य करना था लेकिन डॉ बाबा साहब अम्बेडकर जी की जयंती  व्  शिवाजी

 

साल 2017 में शब्बिरपुर गाँव में

 

 

 

क्या राजनेतिक रूप से रावन का इस्तेमाल हो रहा –

वर्तमान समय  में  चन्द्र शेखर

कौन हैं चंद्रशेखर उर्फ ‘रावण’

साल 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और सवर्णों के बीच हिंसा की एक घटना हुई। इस हिंसा के दौरान एक संगठन उभरकर सामने आया, जिसका नाम था भीम आर्मी। भीम आर्मी का पूरा नाम ‘भारत एकता मिशन भीम आर्मी’ है और इसका गठन करीब 6 साल पहले किया गया था। इस संगठन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं चंद्रशेखर, जिन्होंने अपना उपनाम ‘रावण’ रखा हुआ है। पेशे से वकील चंद्रशेखर के परिवार में दो बहनें हैं, जिनमें से एक की शादी हो चुकी है और दो भाई हैं। चंद्रशेखर खुद भी अविवाहित हैं। उनका दूसरा भाई पढ़ाई के साथ-साथ एक मेडिकल स्टोर पर नौकरी करता है। एक चचेरा भाई है, जो इंजीनियर है।

 

 

 

 

भीम आर्मी के संस्थापक और अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ रावण के ऊपर से रासुका हटाने के योगी सरकार के फैसले के बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया है। गुरुवार रात करीब 2 बजे जेल से बाहर निकलते ही चंद्रशेखर पुराने रंग में दिखे और ऐलान किया कि 2019 में भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकेंगे। चंद्रशेखर मई 2017 से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत जेल में बंद थे। उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि अगले 10 दिनों में भाजपा सरकार मुझे किसी ना किसी आरोप में फिर से फंसाने की कोशिश भी करेगी। आखिर कौन हैं ये चंद्रशेखर उर्फ रावण और क्या है उनकी भीम आर्मी, जिसने बेहद कम समय में ही पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना अच्छा खासा प्रभाव बना लिया। आइए जानते हैं..

 

गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर बनाई भीम आर्मी

शब्बीरपुर में हुई हिंसा के बाद ‘रावण’ ने 9 मई 2017 को सहारनपुर के रामनगर में महापंचायत बुलाई। इस महापंचायत के लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए महापंचायत की सूचना भेजी गई। सैंकड़ों की संख्या में लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे, जिन्हें रोकने के दौरान पुलिस और भीम आर्मी के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ और इसके बाद चंद्रशेखर के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। करीब छह साल पहले 2011 में गांव के कुछ युवाओं के साथ मिलकर चंद्रशेखर ने ‘भारत एकता मिशन भीम आर्मी’ का गठन किया था। भीम आर्मी आज दलित युवाओं का एक पसंदीदा संगठन बन गया है। सोशल मीडिया पर भी इस संगठन से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि इस संगठन में दलित युवकों के साथ साथ पंजाब और हरियाणा के सिख युवा भी जुड़े हैं। सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर समेत पश्चिमी यूपी में यह संगठन अपनी खास पहचान बनाए हुए है।

चार साल का मासुम हुआ मांझे का शिकार, गला कटने से मौत

जयपुर। बाइक पर सवार होकर पिता के आगे बैठकर चार साल का बच्चा अपनी मौसी के घर जा रहा था जो अचानक मांझे का शिकार हो गया। मांझें से बच्चे का गला कट गया। घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उपचार के समय धम तोड़ दिया।

बता दें कि मासूम फैजुद्दीन अम्मी-अब्बू व भाई के साथ बाइक पर ईदगाह से रिश्तेदार के यहां जा रहा था। इसी दाैरान चाइनीज मांझा गले काे काट गया।

बता दें कि मकर संक्रांति आने में अभी करीब 23 दिन बाकी हैं, लेकिन पतंग-मांझे से हाेने वाले दर्दनाक हादसाें की खबरें अभी से आने लगी हैं। रविवार शाम त्रिपाेलिया बाजार में चाइनीज मांझे ने 4 साल के मासूम फैजुद्दीन की जान ले ली।

त्रिपाेलिया बाजार में अचानक बाइक के सामने मांझा आ गया। अजीजुद्दीन बाइक रोकता इससे पहले मांझा फैज के गले पर चल चुका था। अजीजुद्दीन की जैकेट भी कट गई थी। अजीजुद्दीन ने बाइक रोकी, इतनी देर में मांजा फैज के गले को आधा चीर चुका था। वह लहूलुहान हो गया। फैज इतना ही बोला- अब्बू मांझा…फिर वह अचेत हो गया।

उधर, साेढ़ाला में भी युवक माेहन कुमार का गला भी मांझे से कट गया। उसे इलाज के बाद छुट्‌टी दे दी गई। ईदगाह स्थित रहीमन काॅलाेनी निवासी फैजुद्दीन नर्सरी में पढ़ता था

4 साल का फैज (फैजुद्दीन) अपने अब्बू अजीजुद्दीन, अम्मी फरहा और भाई अजमत के साथ बाइक पर ईदगाह से किशनपोल में रहने वाली मौसी के घर जा रहा था। फैज बाइक पर अब्बू के आगे बैठा था।

विवादों से घिरती – RPSC की PRO वेकेंसी

विवादों से घिरती – rpsc – pro वेकैंसी

जयपुर | राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने  पहली वेकेंसी RPSC  द्वारा PRO { जनसम्पर्क अधिकारी } की निकाली है लेकिन इस वेकेंसी के निकलते ही विवाद शुरू हो गया है |

वेकेंसी  में जनसम्पर्क अधिकारी के लिए जो  शैक्षणिक  योग्यता मांगी गई है उसका दूर -दूर तक जनसंपर्क विधा से कोई लेना देना ही नहीं है

RPSC की विज्ञप्ति में जो

 

जयपुर राजस्थान में बेरोजगारी का आलम किसी से छिपा नहीं है लंबे समय से rpsc राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन ने सिर्फ बेरोजगारी पीड़ित लोगों को ठगने का काम कर रही है सरकार सरकारी नोकरियों की विघ्यपति निकलाल टी है फिर सहयोग वश या गलती से कुछ त्रुर्ति रख देती है जिसका नुकसान साफ़ तौर पर स्टूडेंट्स को ही होता है अब हाली में rpsc की वेकैंसी में ही देखने को मिल रही हस्र जब राजस्थान सरकार में ही दो विश्वविद्यालय हरिदेव जोशी यूनिविर्सिटीऑफ जोइरनलोसज़ व राजस्थान ऊनि

एस्तान्सा ने एस्टेट लीवरेज सिस्टम लॉन्च किया;अनुकूलित रियल एस्टेट परियोजनाओं के साथबाजार को हिट किया ह

Asta launches estate leverage system; hits market with customized real estate projects

मुंबई. मई 01, 2019 | एस्तान्सा रियल्टी कंसल्टिंग प्रा. लिमिटेड ने भारत के सभी बड़े शहरों और दुनिया भर में भारतीयनिवासियों और अनिवासी भारतीयों के लिए ‘एस्टेट लीवरेज सिस्टम’ शुरू किया है।ये एस्टेट लीवरेज सिस्टम एक रणनीतिक उपकरण है जो बड़ी निजी इक्विटी कंपनियों और अमीर व्यक्तियों के उच्च नेटवर्थ वाले संपत्ति खरीदने के पैटर्न को दोहराता है। यह प्रणाली भारत और दुनिया भर में भारतीयनिवासियों और अनिवासी भारतीयों के ऊपरी मध्यवर्गीय खंड की आवश्यकताओं के अनुरूप करती है।

 

 

 

 

एस्टेट लीवरेज सिस्टम – सक्षम रियल एस्टेट संपत्तियों की पहचानका समर्थीकरण

श्री विजय नारायणन, सी.ई.ओ.,एस्तान्सा रियल्टी कंसल्टिंग प्रा. लिमिटेड, के अनुसार, “एस्टेट लीवरेजसिस्टम भारत भर में अप्रचलित अचल संपत्ति परियोजनाओं की पहचान करने के लिए उपकरणों का एक चयन है जो खरीदारों और निवेशकों को अन्य परियोजनाओं की तुलना में कहीं अधिक आय अर्जित करने में सक्षम बनाता है।

“भारत में एक पारंपरिक संपत्ति अपने मूल्य के 2.5% प्रति वर्ष की शुद्ध किराये की उपज से अधिक नहीं होती है, जो संपत्ति पर ऋण के मासिक ईएमआई का 20% तक मुश्किल से कवर करती है। एस्टेट लीवरेज सिस्टम के साथ, पहली बार, व्यक्ति चुनिंदा प्रॉपर्टीज की पहचान करने और खरीदने में सक्षम होंगे।ये संपत्तियाँ उच्च किराये की आय प्रदान करती हैं जो कि मासिक EMI दायित्वों को पार करती हैं,जिससे ये गुण ऋण-मुक्त होते हैं।वित्तीय स्वतंत्रता – 60 वर्षों में सेवानिवृत्ति के विचार का विरोधयह व्यक्तियों और परिवारों को एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देगा जो केवल बड़े निजी इक्विटी खिलाड़ियों और भारत के अल्ट्रा-अमीर सेगमेंट में हावी हो गया है। यह उन्हें 60 वर्षों में सेवानिवृत्त होने के पारंपरिक विचार के विपरीत, कई संपत्तियों को खरीदने और कुछ ही वर्षों में वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने केलिए तरलता और पूंजी तक पहुंच प्रदान करेगा।”मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारे प्रमुख युवाओं में वित्तीय स्वतंत्रता एक जन्म-अधिकार है, जिसे हमने एक भ्रमऔर विकृत ‘गेट-रिच-एट -60’ (Get-Rich-At-60) दृष्टि के बदले में लिया है।अल्ट्रा-रिच इन्वेस्टर्स के तरीके सकारात्मक नकदी-प्रवाह अर्जित करने और धन प्राप्त करने के लिए एक रियल एस्टेट के रूप में रियल एस्टेटका उपयोग करने के तरीके हैं, व्यक्तिगत वेतनभोगी वर्ग रियल एस्टेट को कैसे रोजगार देता है, इसके विपरीत है। हम जिस घर में हम रहते हैं, उस घर को खरीदने के लिए 15-20 साल के जीवन भर के कर्ज में डूब जाते हैं,जिससे हम वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने का एक मात्र अवसर भी खो देते हैं, ”श्री नारायणन ने कहा । एस्तान्सा ऋण मुक्त होने के साथ-साथ जीवन के प्रधान वर्षों में वित्तीय लक्ष्यों की पूर्ति में सक्षम बनाता है ‘एस्टेट लीवरेज सिस्टम’ उन सभी व्यक्तियों के लिए एक स्रोत होगा जो दैनिक 9 से 7 बजे तक परिश्रम करते हैं और अपनी युवावस्था में अपने सभी वित्तीय लक्ष्यों पूरा करते हैं। यह एक नयी विचारधारा पर आधारित है जो वित्तीय स्वतंत्रता को अस्तित्व में मौलिक होने पर जोर देता है। सभी को  ऋण-मुक्त ’संपत्तियों को प्राप्त करके वित्तीय स्वतंत्रता यात्रा शुरू करने के लिए आवश्यकता है – 50लाख रुपये का बैंक ऋण बढ़ाने की विश्वसनीयता और 10 लाख+ रुपयों का डाउन पेमेंट। इस तरह सिर्फ एकछोटे से कोष के साथ, एक व्यक्ति अगले कुछ वर्षों में कई उच्च-आय वाले संपत्तियों का मालिक बन जाएगा,जिससे बड़े पैमाने पर सकारात्मक नकदी प्रवाह और वित्तीय स्वतंत्रता बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा। व्यक्तिगत और ऑनलाइन परामर्श सत्र हर किसी ग्राहक के लिए किया जायेगामुंबई और पुणे में रहने वाले निवासियों के लिए व्यक्तिगत परामर्श सत्र प्रदान किया जाएगा और दुनिया केबाकी हिस्सों के लिए एस्तान्सा ऑनलाइन परामर्श सत्र प्रदान करता है।

परामर्श सत्र एक वीडियो कॉल(स्काइप, ज़ूम, व्हाट्सएप, आदि) के माध्यम से प्रदान किया जाएगा।’एस्टेट लीवरेज सिस्टम’ के माध्यम से , आप बिना ऋण लिए वित्तीय स्वतंत्रता के मार्ग पर मजबूती से कैसेचल सकते हैं , इस बारे में अधिक जानकारी के लिए https://estansa.com/contact-us  पर जाएं।

News Source: Digpu

संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, अत्याचारों से मुक्ति पाओ।।

संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, अत्याचारों से मुक्ति पाओ।।

जय भीम साथियों। आज देश मे निर्णायक चुनाव होने जा रहे हैं जिसमें आपके वोटों की अहम भूमिका रहेगी। हमें वोट करते समय ये घटनाएं जो पिछले पांच सालों में घटित हुई उन्हें याद रखते हुए वोट डालना है।
1. बाबा साहेब द्वारा दिया गया आरक्षण जिसे इन्होंने खत्म सा कर दिया है।.
2. गुजरात का ऊना काण्ड
3. डांगावास काण्ड।
4. रोहित वेमुला काण्ड।
5. जेनयू काण्ड।
6. बीकानेर का डेल्टा काण्ड।.
7. 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हमारे बेकसूर युवाओं को गंभीर आरोप लगाकर उन्हे जेल मे डालकर अमानवीय यातनाएं देना ओर आज तक उन पर लगे आरोप वापिस नहीं लेना।.
8. लखनऊ मे एक हमारे विधि छात्र का सवर्णों के पैर अडने पर पत्थरों से पीट पीटकर मार डालना।
9. हमारी बहुबेटियों के साथ बल्लातकार कर उन्हें जला डालना।
10. इन मनुवादियों के कई मंत्रियों द्वारा संविधान बदलने के लिए अपना सार्वजनिक रूप से व्यक्तव्य देना।
11. भाजपा के सांसदों द्वारा यह कहना कि हम ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देंगे कि आरक्षण अपने आप निष्क्रिय हो जायेगा।.
12. हमारे समाज की विधायका को मंदिर मे जाने से रोकना.।.
13. देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा यह कहना कि बीएमडब्ल्यू कार के नीचे यदि दलित मर जाता है तो बीएमडब्ल्यू कार के मालिक की क्या गल्ती है ओर हंसते हुए सार्वजनिक रूप से कहना।
14. इन मनुवादियों के एक मुख्यमंत्री महोदय द्वारा दलितों की बस्ती में जाने से पहले साबुन इत्यादि भेजकर निर्देश देना कि उनसे मिलने से पहले नहा धोकर आवे

 

 

 

 

 

 

 

  1. बाबा साहेब द्वारा रचित भारतीय संविधान को संसद भवन के सामने इन मनुवादियों द्वारा जलाया जाना।
  2. सवर्णों को 10% आर्थिक आधार पर आरक्षण देना ओर इस आरक्षण का दायरा 8 लाख आय वाले, शहरी क्षेत्रों में 1000 फुट मकान, ग्रामीण इलाकों में 5 एकड जमीन वालों को आर्थिक रूप से कमजोर समझना, साथ न्यायालयों द्वारा आरक्षण सीमा 50% से अधिक होने के बावजूद सवर्णों को 10% आरक्षण देना ओर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा बिना देरी लगायें उचित मानना।
    इत्यादि इत्यादि पिछले पांच सालों में हमारे समाज पर इतने अत्याचार इन मनुवादियों द्वारा किए गये जितने कभी नहीं हुए। साथियों जरा सोचो यदि इन मनुवादियों की सरकार वापि

स आ गई तो हमारे समाज का क्या हाल होगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए आपसे अपील करता हूँ कि कृपया हमें चाहे काले चोर को वोट करना पडे तो हमें ऐसा करना चाहिए। मैं आपसे यह भी अनुरोध करना चाहुंगा कि हमारा वोट गलत जगह जाने इन मनुवादियों को फायदा नहीं हो जाय इसलिए हमें इन मनुवादियों को हटाने के लिये हमें वोट करना है अन्यथा हमारा समाज कहीं का नहीं रहेगा।

 

” इसी आशा के साथ आपका दयाल चन्द भाटी , भीम संसद । जय भीम जय संविधान

मोदी, राहुल और गहलोत के बहाने

मोदी, राहुल और गहलोत के बहाने

#इकरा_पत्रिका

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर मंच से ऐसी बात करते हैं कि मानो जनहित के मुद्दे पर यही सबसे बङे राजनीतिक योद्धा हैं तथा इनका हर कदम शोषितों व वंचितों के विकास के लिए है। पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था के मामले में भी यह तीनों भाषणबाजी की अगली कतार में खङे हैं, लेकिन अपनी कही बात को क्रियान्वित करने या करवाने के मामले में कभी खरे साबित नहीं हुए !


यह खुली किताब की तरह है कि देश में शोषितों और वंचितों की संख्या ज्यादा है तथा सुखी व सम्पन्न लोग कम हैं। किसानों, मजदूरों, दस्तकारों, थङी ठेले वालों, छोटे व्यापारियों, संविदाकर्मियों आदि की हालत बहुत बुरी है। यह लोग दिन रात कठोर मेहनत करने के बाद भी जीवन जीने की बुनियादी सुविधाओं को भी आसानी से नहीं जुटा पाते हैं। सत्ताधीश सबसे ज्यादा विकास का ढिंढोरा भी इसी तबके के नाम पर पीटते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। विकास के नाम की लफ्फाजी और अधिकतर योजनाएं भी इसी शोषित तबके के नाम पर होती हैं। इसके बावजूद यह तबका बदहाल जीवन जीने को मजबूर है, क्योंकि इनके नाम पर चल रही विभिन्न योजनाओं का बङा पैसा सत्ताधीश और भ्रष्ट अधिकारी डकार जाते हैं। इस मुद्दे पर वैसे तो सभी राजनेता और सत्ताधीश जबानी जमाखर्च करते हैं और हर मंच से अपने को शोषित वर्ग का सबसे बङा मसीहा साबित करते हैं और विरोधी राजनेता या राजनीतिक दल को चोर बताते हैं। लेकिन यहाँ विषय तीन नेताओं का है और नम्बर वाइज़ उन्हीं की बात करते हैं।

पहले बात करें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की, वे हर मंच से कांग्रेस और विरोधी पार्टियों को कटघरे में खड़ा करते हैं। विरोधी नेताओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्ट व लूटेरा कहते हैं। कांग्रेस के 55 साल के शासन को देश की बदहाली का जिम्मेदार बताते हैं। खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लङने वाला सबसे बङा योद्धा साबित करने की कोशिश करते हैं। शोषितों व वंचितों के विकास और विभिन्न योजनाओं पर खूब भाषणबाजी करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि वे पूरी तरह से फैल हो चुके हैं और उनकी सरकार भी वैसी है, जैसी अन्य राजनेताओं की। अगर वे सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो उन्होंने खुद की पार्टी और सहयोगी दलों के भ्रष्ट नेताओं पर क्या कार्रवाई की ? क्या उनकी पार्टी भाजपा द्वारा संचालित राज्य सरकारों में घोटाले नहीं हुए ? क्या भाजपाई मुख्यमंत्री, उनके परिजन और उनके चम्मचे इन घोटालों की लूट में शामिल नहीं थे या आज नहीं हैं ? हकीकत यह है कि विभिन्न प्रकार के घोटालों की काली खेती जैसी अन्य राज्यों में हो रही है, वैसी ही भाजपा शासित राज्यों में भी हो रही है। इसके बावजूद पीएम मोदी ने भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की ? क्या पीएम मोदी द्वारा चोरों के खिलाफ चलाई जा रही धर पकङ अपने चोरों को बचाने और दूसरे चोरों को पकङने का दिखावटी प्रयास या साजिश नहीं है ? ऐसा ही उन्होंने विकास के नाम पर किया है, यानी सिवाये भाषणबाजी के पांच साल में कुछ नहीं किया। उनके राज में शोषितों की पीड़ा घटने की बजाए बढ़ी है, यह सच्चाई है चाहे कोई माने या नहीं माने !

अब बात करें राहुल गांधी की, वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राफेल मुद्दे पर जगह जगह चौकीदार चोर है की बात कह रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और विकास की भी खूब बात करते हैं। शिक्षित बेरोजगारों और संविदाकर्मियों के नाम पर भी घङियाली आंसू बहाते हैं। किसानों और मजदूरों के दुख को भी अपने भाषण का हिस्सा बनाते हैं। दलितों और आदिवासियों को इन्साफ दिलवाने एवं उनकी भूमि दिलवाने की बात करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्होंने अपनी राज्य सरकारों से इस जुमलेबाजी पर अमल करने को कहा है या करवाया है ? हकीकत तो यह है कि देश में आज जो भी समस्याएं हैं, वो कांग्रेसी राजनेताओं की देन हैं और इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राहुल गांधी के पुरखे और उनके चाटुकार हैं। साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण व व्यवसायीकरण आदि समस्याएं कांग्रेसी सत्ताधीशों की देन हैं, जिससे आज देश बरबाद हो रहा है। अगर राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, तो अच्छी बात है, यह विपक्षी नेता होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है। लेकिन सबसे पहले वे कांग्रेस के भ्रष्ट और लूटेरे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करें। अपनी राज्य सरकारों को सख्त आदेश दें कि मन्त्रीमण्डल में शामिल भ्रष्ट मन्त्रियों को तुरंत हटवाएं। क्या यह हिम्मत राहुल गांधी दिखा सकते हैं ?

राहुल गांधी के चहेते राजनेता अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। उनके पिछले 10 साल के शासनकाल में राजस्थान के हर विभाग में घोटाले हुए हैं। क्या राहुल गांधी उन्हें पद से हटाएंगे ? बात संविदाकर्मियों, किसानों और अन्य शोषितों की, तो उस पर राहुल गांधी बात तो करते हैं, लेकिन अपनी सरकारों से क्रियान्वयन नहीं करवाते। राजस्थान में चुनाव से पहले जारी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने संविदाकर्मियों को नियमित करने और किसानों का लोन माफ करने जैसे वादे किए थे, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। लोन के मामले में कुछ क्रियान्विती हो रही है, लेकिन वो भी किन्तु परन्तु और नियम शर्तें लगाकर ! संविदाकर्मियों को नियमित करने के मामले में तो ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत के अलावा कुछ नहीं हुआ है। अब बात अशोक गहलोत की, यानी राजस्थान के मुख्यमंत्री की। वे भी भाषणबाजी में खुद को बहुत साफ सुथरा नेता मानते हैं, उनके समर्थक उन्हें राजस्थान का गांधी कहते हैं। लेकिन इनके पिछले दो बार के मुख्यमंत्री काल में वो सब कुछ हुआ, जो अन्य पार्टियों के शासनकाल में हुआ। हर विभाग में जमकर भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का खेल खेला गया। इनके चहेतों ने जमकर लूट खसोट की। क्या यह अपने ही दस साल के पिछले कार्यकाल की जांच करवाने की हिम्मत रखते हैं ?

अशोक गहलोत एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने राजस्थान में संविदाकर्मी नाम की शोषण की चक्की स्थापित कर हजारों शिक्षित युवक युवतियों का जीवन बरबाद कर दिया। क्या यह अपने इस पाप को धोने के लिए समस्त संविदाकर्मियों को नियमित करेंगे ? इसके अलावा गत दिनों गहलोत ने भाजपा द्वारा किए जा रहे एक जेल भरो आन्दोलन के संदर्भ में जो भाषा बोली कि एक बार जेल में डाल दिया तो निकलना मुश्किल हो जाएगा। क्या यह भाषा लोकतांत्रिक है ? क्या यह भाषा उन नेताओं जैसी नहीं है, जिनको गहलोत और उनके साथी नेता तानाशाह और लोकतंत्र विरोधी कहते हैं ?

-@-एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।
09602992087, 09414361522

सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह कर ” भाजपा – मोदी सरकार ” भगवा राष्ट्र का निर्माण कर रही है – पवन देव

बहुजन समाज का पतन आखिर क्यों –

 

13 रोस्टर पद्धति/प्रणाली लागू  –

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय/कोर्ट द्वारा सभी को भारतीय संविधान के अनुच्छेद द्वारा सामाजिक न्याय दिया गया है। जिसमें 200
रोस्टर पद्धति को हटाते हुए, 13 रोस्टर पद्धति को सही माना गया है। जिसके अनुसार विष्वविद्यालय को एक इकाई नहीं मानते हुये प्रत्येक विभाग को इकाई माना गया है तथा प्रत्येक वि-ुनवजयाय के विभाग को ही इकाई माना गया है। जिसके अनुसार प्रत्येक विभाग में रिक्त 1-ंउचय3 पदों पर सामान्य वर्ग (ळमदमतंस ब्ंजमहवतल) का अधिकार होगा, 4-ंउचय6 रिक्त पदों पर अन्य पिछडे वर्ग
(व्ठब्) का अधिकार होगा। 7 से 9 रिक्त पदों पर दलित वर्ग (ैब्) तथा 10 से अधिक पद रिक्त होंगे तो जनजातीय वर्ग (ैज्) का अधिकार होगा जो कि निम्नानुसार न्यायसंगत नहीं है।-ंउचय
 प्रत्येक वि-ुनवजयाय विभाग/ईकाई में सामान्यतः 7 पद स्वीकृत होते
है।
 सभी पद सामान्यतः कभी भी एक साथ-ंउचयसाथ रिक्त नहीं होते है।
 जब भी पद रिक्त हो 1 से 3 पद पर सामान्य वर्ग ही आयेगा।
 कुल 10 पद रिक्त होंगे तो ही सभी वर्गो को लाभ मिलेगा जो
कि ऐसा संभव नहीं है। सामान्यतः 5-ंउचय7 पद ही स्वीकृत होते है।
 इसमें सबसे अधिक हानि जनजातीय वर्ग को ही है। जब 10 पद स्वीकृत
ही नहीं है तो 10 पद रिक्त कैसे होंगे। जिस कारण इन्हें कभी
भी भर्ती नहीं किया जा सकता।
 भारतीय संविधान के अनुसार सामाजिक न्याय एवं समानता के अधिकार का
पूर्ण उल्लंघन हुआ है क्योंकि इस प्रावधान में कहीं पर भी
समान अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है।
 संविधान ने यह कही भी नहीं कहा की सर्वप्रथम लाभ सामान्य
वर्ग को देना है। फिर भी उच्चत्त्म न्यायालय ने सर्वप्रथम
सामान्य वर्ग को सबसे पहले 1 से 3 पद देते हुए सर्वप्रथम लाभ दिया
है। जबकि पिछड़ो को जिनको सबसे अधिक जरूरत है सबसे अन्त में
देने के लिए कहा है जो कभी प्राप्त नहीं हो सकता।
समानता के अधिकार का उल्लंघनः-ंउचय

प्रथम 4 रिक्त पदों पर सभी वर्गो का एक एक रिक्त पद पर नियुक्ति
देने के बजाये 1 से 3 रिक्त पदों पर सिर्फ सामान्य वर्ग को लाभ
देना न्यायसंगत नहीं है। क्योंकि सामान्य वर्ग को पिछ़डा
माना ही नहीं है। साथ ही संविधान में सामान्य वर्ग को
सर्वप्रथम लाभ देने के लिए प्रावधान नहीं है।
सामाजिक न्याय अनुच्छेद का उल्लंघनः-ंउचय
सबसे कमजोर वर्गो को सर्वप्रथम लाभ देने के स्थान पर सबसे अन्त
में लाभ देना यदि रिक्त पद उपलब्ध है तो, यह निर्णय अन्यायपूर्ण
है।
पिछडे़ वर्गो के अभ्यर्थी जो कि इन पदों पर पूर्ण रूप से पात्र है
उन्हें निजी षिक्षण संस्थाये आरक्षण की वजह से दरकिनार करती है,
उच्चतम न्यायालय को निर्णय देने से पूर्व विचार करना चाहिए था।
विष्वविद्यालय को अगर ईकाई नहीं माना जाता है तो राज्यपाल
(कुलपति), उपकुलपति, रजिस्ट्रार, उपरजिस्ट्रार, अतिरिक्त रजिस्ट्रार,
डीन जैसे विभिन्न प्रषासनिक/गैर प्रषासनिक पदों को हटाया
जाना चाहिए और प्रत्येक वि-ुनवजयाय विभाग में इन पदों पर नियुक्ति
कि जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय एवं इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह नहीं बताया
कि पुरानी 200 रोस्टर प्रणाली कैसे गलत। जिसमें सभी के साथ
न्याय हो रहा था।
विभिन्न विष्वविद्यालय में सालों से रिक्त पड़े आरक्षित वर्ग के
बैकलॉग पदों के बारे में कुछ भी स्प-िुनवजयटकरण नहीं दिया
गया है। जो कि न्यायसंगत नहीं।
देष की 94 करोड़ जनसंख्या (व्ठब्ए ैब्ए ैज्) पर 49 प्रतिषत आरक्षण है और
39 करोड़ जनसंख्या (सामान्य) की जनसंख्या पर 51 प्रतिषत आरक्षण आरक्षणहै जो
कि न्यायसंगत नहीं है।

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