मोदी, राहुल और गहलोत के बहाने
#इकरा_पत्रिका
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर मंच से ऐसी बात करते हैं कि मानो जनहित के मुद्दे पर यही सबसे बङे राजनीतिक योद्धा हैं तथा इनका हर कदम शोषितों व वंचितों के विकास के लिए है। पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था के मामले में भी यह तीनों भाषणबाजी की अगली कतार में खङे हैं, लेकिन अपनी कही बात को क्रियान्वित करने या करवाने के मामले में कभी खरे साबित नहीं हुए !
यह खुली किताब की तरह है कि देश में शोषितों और वंचितों की संख्या ज्यादा है तथा सुखी व सम्पन्न लोग कम हैं। किसानों, मजदूरों, दस्तकारों, थङी ठेले वालों, छोटे व्यापारियों, संविदाकर्मियों आदि की हालत बहुत बुरी है। यह लोग दिन रात कठोर मेहनत करने के बाद भी जीवन जीने की बुनियादी सुविधाओं को भी आसानी से नहीं जुटा पाते हैं। सत्ताधीश सबसे ज्यादा विकास का ढिंढोरा भी इसी तबके के नाम पर पीटते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। विकास के नाम की लफ्फाजी और अधिकतर योजनाएं भी इसी शोषित तबके के नाम पर होती हैं। इसके बावजूद यह तबका बदहाल जीवन जीने को मजबूर है, क्योंकि इनके नाम पर चल रही विभिन्न योजनाओं का बङा पैसा सत्ताधीश और भ्रष्ट अधिकारी डकार जाते हैं। इस मुद्दे पर वैसे तो सभी राजनेता और सत्ताधीश जबानी जमाखर्च करते हैं और हर मंच से अपने को शोषित वर्ग का सबसे बङा मसीहा साबित करते हैं और विरोधी राजनेता या राजनीतिक दल को चोर बताते हैं। लेकिन यहाँ विषय तीन नेताओं का है और नम्बर वाइज़ उन्हीं की बात करते हैं।
पहले बात करें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की, वे हर मंच से कांग्रेस और विरोधी पार्टियों को कटघरे में खड़ा करते हैं। विरोधी नेताओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्ट व लूटेरा कहते हैं। कांग्रेस के 55 साल के शासन को देश की बदहाली का जिम्मेदार बताते हैं। खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लङने वाला सबसे बङा योद्धा साबित करने की कोशिश करते हैं। शोषितों व वंचितों के विकास और विभिन्न योजनाओं पर खूब भाषणबाजी करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि वे पूरी तरह से फैल हो चुके हैं और उनकी सरकार भी वैसी है, जैसी अन्य राजनेताओं की। अगर वे सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो उन्होंने खुद की पार्टी और सहयोगी दलों के भ्रष्ट नेताओं पर क्या कार्रवाई की ? क्या उनकी पार्टी भाजपा द्वारा संचालित राज्य सरकारों में घोटाले नहीं हुए ? क्या भाजपाई मुख्यमंत्री, उनके परिजन और उनके चम्मचे इन घोटालों की लूट में शामिल नहीं थे या आज नहीं हैं ? हकीकत यह है कि विभिन्न प्रकार के घोटालों की काली खेती जैसी अन्य राज्यों में हो रही है, वैसी ही भाजपा शासित राज्यों में भी हो रही है। इसके बावजूद पीएम मोदी ने भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की ? क्या पीएम मोदी द्वारा चोरों के खिलाफ चलाई जा रही धर पकङ अपने चोरों को बचाने और दूसरे चोरों को पकङने का दिखावटी प्रयास या साजिश नहीं है ? ऐसा ही उन्होंने विकास के नाम पर किया है, यानी सिवाये भाषणबाजी के पांच साल में कुछ नहीं किया। उनके राज में शोषितों की पीड़ा घटने की बजाए बढ़ी है, यह सच्चाई है चाहे कोई माने या नहीं माने !
अब बात करें राहुल गांधी की, वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राफेल मुद्दे पर जगह जगह चौकीदार चोर है की बात कह रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और विकास की भी खूब बात करते हैं। शिक्षित बेरोजगारों और संविदाकर्मियों के नाम पर भी घङियाली आंसू बहाते हैं। किसानों और मजदूरों के दुख को भी अपने भाषण का हिस्सा बनाते हैं। दलितों और आदिवासियों को इन्साफ दिलवाने एवं उनकी भूमि दिलवाने की बात करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्होंने अपनी राज्य सरकारों से इस जुमलेबाजी पर अमल करने को कहा है या करवाया है ? हकीकत तो यह है कि देश में आज जो भी समस्याएं हैं, वो कांग्रेसी राजनेताओं की देन हैं और इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राहुल गांधी के पुरखे और उनके चाटुकार हैं। साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण व व्यवसायीकरण आदि समस्याएं कांग्रेसी सत्ताधीशों की देन हैं, जिससे आज देश बरबाद हो रहा है। अगर राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, तो अच्छी बात है, यह विपक्षी नेता होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है। लेकिन सबसे पहले वे कांग्रेस के भ्रष्ट और लूटेरे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करें। अपनी राज्य सरकारों को सख्त आदेश दें कि मन्त्रीमण्डल में शामिल भ्रष्ट मन्त्रियों को तुरंत हटवाएं। क्या यह हिम्मत राहुल गांधी दिखा सकते हैं ?
राहुल गांधी के चहेते राजनेता अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। उनके पिछले 10 साल के शासनकाल में राजस्थान के हर विभाग में घोटाले हुए हैं। क्या राहुल गांधी उन्हें पद से हटाएंगे ? बात संविदाकर्मियों, किसानों और अन्य शोषितों की, तो उस पर राहुल गांधी बात तो करते हैं, लेकिन अपनी सरकारों से क्रियान्वयन नहीं करवाते। राजस्थान में चुनाव से पहले जारी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने संविदाकर्मियों को नियमित करने और किसानों का लोन माफ करने जैसे वादे किए थे, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। लोन के मामले में कुछ क्रियान्विती हो रही है, लेकिन वो भी किन्तु परन्तु और नियम शर्तें लगाकर ! संविदाकर्मियों को नियमित करने के मामले में तो ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत के अलावा कुछ नहीं हुआ है। अब बात अशोक गहलोत की, यानी राजस्थान के मुख्यमंत्री की। वे भी भाषणबाजी में खुद को बहुत साफ सुथरा नेता मानते हैं, उनके समर्थक उन्हें राजस्थान का गांधी कहते हैं। लेकिन इनके पिछले दो बार के मुख्यमंत्री काल में वो सब कुछ हुआ, जो अन्य पार्टियों के शासनकाल में हुआ। हर विभाग में जमकर भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का खेल खेला गया। इनके चहेतों ने जमकर लूट खसोट की। क्या यह अपने ही दस साल के पिछले कार्यकाल की जांच करवाने की हिम्मत रखते हैं ?
अशोक गहलोत एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने राजस्थान में संविदाकर्मी नाम की शोषण की चक्की स्थापित कर हजारों शिक्षित युवक युवतियों का जीवन बरबाद कर दिया। क्या यह अपने इस पाप को धोने के लिए समस्त संविदाकर्मियों को नियमित करेंगे ? इसके अलावा गत दिनों गहलोत ने भाजपा द्वारा किए जा रहे एक जेल भरो आन्दोलन के संदर्भ में जो भाषा बोली कि एक बार जेल में डाल दिया तो निकलना मुश्किल हो जाएगा। क्या यह भाषा लोकतांत्रिक है ? क्या यह भाषा उन नेताओं जैसी नहीं है, जिनको गहलोत और उनके साथी नेता तानाशाह और लोकतंत्र विरोधी कहते हैं ?
-@-एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।
09602992087, 09414361522
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