वर्तमान समय में दलित समाज की होती – दुर्दशा आखिर क्यों –

At the present time, falling level of dalit politics – spark era

वर्तमान समय में दलित राजनीति का गिरता स्तर – चमचायुग शुरू –

भारतीय संविधान के शिल्पकार भारत रत्न  बाबा साहब डॅा. बी.आर. अंबेडकर की यह दूरदर्शिता ही थी कि उनके द्वारा गोलमेज़ सम्मेलन में भारत के दलितों (अनु.जाती / अनु. सूचित जन जाती /तथा पिछडा वर्ग ) के व्यस्क मतदाता के लिए दो मतों की मांग करना कितनी अहमियत रखती ,यदि मिस्टर गांधी द्वारा उसका आमरण अनशन के द्वारा प्रतिरोध नहीं किया जाता तो आज अधिकारों से वंचित मूलनिवासियो के अधिकारों से इस कदर खिलवाड़ नहीं किया जाता .

जो हम आज देखने को मजबूर हैं। कारण यह है कि बाबा साहब यह भली -भांति जानते थे कि दोहरे मतदान

का अधिकार यदि मूल -निवासियो को मिल गया होता तो भारत की लोकसभा और तमाम विधानसभाओं  में वास्तविक रूप से हमारे ही जनप्रतिधियो का प्रतिनिधित्व होता,जो आज देखने को भी नहीं मिलता है – और यहीं इस समाज का दुर्भाग्य भी है कि सुरक्षित सीटों से चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधि अपने समाज से अधिक अपनी स्वयं तथा अपने राजनीतिक दलों और उनके आंकाओ के तलवे  चाटने में अपनी बहादुरी समझने में संकोच नहीं करते हैं |

आज सत्ता के लालच में समाज के गणमान्य लोग बाबा साहब के सिद्धांतो के विपरीत जाकर मनुवादियों के षड्यंत्र में फंस गये है जिसका खामियाजा आज समाज अपने शोषण से दे रहा है अर्थार्त मनुवादी लोग हमेशा हमारे समाज के गरीब ,वंचित लोगों के शोषण हमारे समाज के पथ विहीन लोगों द्वारा ही करवा रहे है आज युवा पीड़ी बाबा साहब के सपनो के भारत के निर्माण के लीये वचनबद्ध है इस सकारात्मक मुहीम में हमारे युवा कामयाब ही हो रहे है |

बीजेपी का आंबेडकर प्रेम –

क्या बाबा साहब की इन 22 प्रतिज्ञाओँ से सहमत होंगे – मनुवादी 

14 अप्रैल को संविधान निर्माता आंबेडकर की जयंती पूरे देश में धूमधाम से मनाई गई। तमाम राजनैतिक दलों में बाबा साहब की जयंती के अवसर पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने की होड़ मची हुई थी। आश्चर्य की बात यह है कि बाबा साहब जिस हिंदुत्व और जातिवाद के खिलाफ ताउम्र लिखतें-लड़ते रहें उसी अमानवीय व्यवहार के पैरवीकार माने जाने वाले और बाबा साहब के विचारों से घोर असहमति रखने वाले तमाम राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन भी इस अवसर को मनाने के बहाने अपना उल्लू सीधा करते नज़र आए। अब मनाने और मान्यताओं में फर्क करना बहुत ज़रूरी हो गया है।
हैं 1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
2.मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा ।
3.मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
4.मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
5.मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
6.मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा।
7.मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा।
8.मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
9.मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ।
10.मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा।
11.मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा।
12.मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा।
13.मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा।
14.मैं चोरी नहीं करूँगा।
15.मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
16.मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा।
17.मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा।
18.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा।
19.मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हा
निकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप
मैं बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
20.मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है।
21.मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ।
22. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा।

 


यह लेखक के निजी विचार है |

लेख़क – मोहन लाल बैरवा – { सोशलिस्ट एक्टिविस्टएवं  एवं टीवी डिबेटर } जयपुर राजस्थान

सवाल जो मोदी सरकार ” सत्ता ” को चुनौती दे रहे –

 राष्ट्रभक्ति का पहला सबक जनता सरकारों से सवाल पूछे   -अनिल गोस्वामी 

देशप्रेमी नागरिक के तौर पर – सवाल ज़रूर पूछे – मोदी सरकार से 

●सवाल पूछो, कि पीएम मोदी, गृहमंत्री राजनाथ, सुरक्षा सलाहकार डाभोल और काश्मीर के राज्यपाल मलिक में से किसी ने सुरक्षा में चूक की जिम्मेदारी क्यों नहीं ली ?

●सवाल पूछो, कि शहीद सैनिकों के सम्मान में राष्ट्रीय शोक क्या सिर्फ इसलिए नहीं रखा गया कि ऐसा करने पर पीएम मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं की तयशुदा रैलियां रद्द करनी पड़तीं ?

 

 

 

 

●सवाल पूछो, कि सर्वदलीय बैठक से नदारत रहकर पीएम मोदी चुनाव सभा क्यों करने गए ?

●सवाल पूछो, कि अब तक आरडीएक्स लेकर काफिले तक आतंकी की पहुँच से जुडी जाँच पूरी क्यों नहीं हुई ? क्यों कोई अफसर नहीं नपा ?

●सवाल पूछो, कि नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक निर्णय लेने की बजाय कार्यवाही का निर्णय सेना पर क्यों टाला ?

●सवाल पूछो, कि मोदी के कार्यकाल में सुरक्षाबलों के लोग ज्यादा क्यों शहीद हुए ? क्यों नोटबन्दी का कोई असर आतंकवाद पर नहीं हुआ जिसका वायदा मोदी जी ने किया था ?

●संयम रखो, युद्धोन्माद से बचो, साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखकर देश की एकता का संदेश दो ।

●आतंकवाद से निबटने के लिए सैन्य उपायों पर निर्भर होने, उनका दुरूपयोग करने और काश्मीर में नागरिक अधिकारों का हनन करके शासक और शासित के बीच अविश्वास को बढाने के तरीके पर सवाल कीजिये ।

●शहीद हुए सैनिकों के परिजनों के आंसू पोंछने के लिए तन मन धन से तत्पर रहिये, उनके लिए हर संभव सहायता का विश्वास दीजिये । युद्ध युद्ध की रट लगाकर और ज्यादा शहादतों की पृष्ठभूमि तैयार न कीजिये । युद्ध बहुत बड़ा निर्णय है , उसपर सरकार को सोचने दीजिये कि देश की माली हालत क्या है और युद्ध कहाँ तक जा सकता है । याद रखिए मोदी सरकार रिजर्ब बैंक के सुरक्षित फण्ड से धन लेने के लिए उर्जित पटेल को हटाकर चुकी है ।

●जागरूक नागरिक बनिए, उन्मादी भक्त नहीं । शहादत का चुनावी इस्तेमाल करने की हर कोशिश को धिक्कारिये, हतोत्साहित कीजिये और खुद की देशभक्ति को किसी के चुनावी फायदे के लिए प्रयोग न होने दीजिए । सरकार का मूल्यांकन उसके 5 साल से न होकर वर्तमान उन्माद से हो , ऐसा कौन चाहेगा, ये ध्यान रखिए ।

शोषितों व वंचितों के विकास ,भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था की – सच्चाई

मोदी, राहुल और गहलोत के बहाने

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हर मंच से ऐसी बात करते हैं कि मानो जनहित के मुद्दे पर यही सबसे बङे राजनीतिक योद्धा हैं तथा इनका हर कदम शोषितों व वंचितों के विकास के लिए है। पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था के मामले में भी यह तीनों भाषणबाजी की अगली कतार में खङे हैं, लेकिन अपनी कही बात को क्रियान्वित करने या करवाने के मामले में कभी खरे साबित नहीं हुए|

यह खुली किताब की तरह है कि देश में शोषितों और वंचितों की संख्या ज्यादा है तथा सुखी व सम्पन्न लोग कम हैं। किसानों, मजदूरों, दस्तकारों, थङी ठेले वालों, छोटे व्यापारियों, संविदाकर्मियों आदि की हालत बहुत बुरी है। यह लोग दिन रात कठोर

मेहनत करने के बाद भी जीवन जीने की बुनियादी सुविधाओं को भी आसानी से नहीं जुटा पाते हैं। सत्ताधीश सबसे

साभार

ज्यादा विकास का ढिंढोरा भी इसी तबके के नाम पर पीटते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। विकास के नाम की लफ्फाजी और अधिकतर योजनाएं भी इसी शोषित तबके के नाम पर होती हैं। इसके बावजूद यह तबका बदहाल जीवन जीने को मजबूर है, क्योंकि इनके नाम पर चल रही विभिन्न योजनाओं का बङा पैसा सत्ताधीश और भ्रष्ट अधिकारी डकार जाते हैं। इस मुद्दे पर वैसे तो सभी राजनेता और सत्ताधीश जबानी जमाखर्च करते हैं और हर मंच से अपने को शोषित वर्ग का सबसे बङा मसीहा साबित करते हैं और विरोधी राजनेता या राजनीतिक दल को चोर बताते हैं। लेकिन यहाँ विषय तीन नेताओं का है और नम्बर वाइज़ उन्हीं की बात करते हैं।

पहले बात करें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की, वे हर मंच से कांग्रेस और विरोधी पार्टियों को कटघरे में खड़ा करते हैं। विरोधी नेताओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्ट व लूटेरा कहते हैं। कांग्रेस के 55 साल के शासन को देश की बदहाली का जिम्मेदार बताते हैं। खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लङने वाला सबसे बङा योद्धा साबित करने की कोशिश करते हैं।

शोषितों व वंचितों के विकास और विभिन्न योजनाओं पर खूब भाषणबाजी करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि वे पूरी तरह से फैल हो चुके हैं और उनकी सरकार भी वैसी है, जैसी अन्य राजनेताओं की। अगर वे सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो उन्होंने खुद की पार्टी और सहयोगी दलों के भ्रष्ट नेताओं पर क्या कार्रवाई की ? क्या उनकी पार्टी भाजपा द्वारा संचालित राज्य सरकारों में घोटाले नहीं हुए ? क्या भाजपाई मुख्यमंत्री, उनके परिजन और उनके चम्मचे इन घोटालों की लूट में शामिल नहीं थे या आज नहीं हैं ? हकीकत यह है कि विभिन्न प्रकार के घोटालों की काली खेती जैसी अन्य राज्यों में हो रही है, वैसी ही भाजपा शासित राज्यों में भी हो रही है। इसके बावजूद पीएम मोदी ने भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की ? क्या पीएम मोदी द्वारा चोरों के खिलाफ चलाई जा रही धर पकङ अपने चोरों को बचाने और दूसरे चोरों को पकङने का दिखावटी प्रयास या साजिश नहीं है ? ऐसा ही उन्होंने विकास के नाम पर किया है, यानी सिवाये भाषणबाजी के पांच साल में कुछ नहीं किया। उनके राज में शोषितों की पीड़ा घटने की बजाए बढ़ी है, यह सच्चाई है चाहे कोई माने या नहीं माने !

अब बात करें राहुल गांधी की, वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राफेल मुद्दे पर जगह जगह चौकीदार चोर है की बात कह रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और विकास की भी खूब बात करते हैं। शिक्षित बेरोजगारों और संविदाकर्मियों के नाम पर भी घङियाली आंसू बहाते हैं। किसानों और मजदूरों के दुख को भी अपने भाषण का हिस्सा बनाते हैं। दलितों और आदिवासियों को इन्साफ दिलवाने एवं उनकी भूमि दिलवाने की बात करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्होंने अपनी राज्य सरकारों से इस जुमलेबाजी पर अमल करने को कहा है या करवाया है ? हकीकत तो यह है कि देश में आज जो भी समस्याएं हैं, वो कांग्रेसी राजनेताओं की देन हैं और इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राहुल गांधी के पुरखे और उनके चाटुकार हैं। साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण व व्यवसायीकरण आदि समस्याएं कांग्रेसी सत्ताधीशों की देन हैं, जिससे आज देश बरबाद हो रहा है। अगर राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, तो अच्छी बात है, यह विपक्षी नेता होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है। लेकिन सबसे पहले वे कांग्रेस के भ्रष्ट और लूटेरे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करें। अपनी राज्य सरकारों को सख्त आदेश दें कि मन्त्रीमण्डल में शामिल भ्रष्ट मन्त्रियों को तुरंत हटवाएं। क्या यह हिम्मत राहुल गांधी दिखा सकते हैं ?

राहुल गांधी के चहेते राजनेता अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। उनके पिछले 10 साल के शासनकाल में राजस्थान के हर विभाग में घोटाले हुए हैं। क्या राहुल गांधी उन्हें पद से हटाएंगे ? बात संविदाकर्मियों, किसानों और अन्य शोषितों की, तो उस पर राहुल गांधी बात तो करते हैं, लेकिन अपनी सरकारों से क्रियान्वयन नहीं करवाते। राजस्थान में चुनाव से पहले जारी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने संविदाकर्मियों को नियमित करने और किसानों का लोन माफ करने जैसे वादे किए थे, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। लोन के मामले में कुछ क्रियान्विती हो रही है, लेकिन वो भी किन्तु परन्तु और नियम शर्तें लगाकर ! संविदाकर्मियों को नियमित करने के मामले में तो ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत के अलावा कुछ नहीं हुआ है। अब बात अशोक गहलोत की, यानी राजस्थान के मुख्यमंत्री की। वे भी भाषणबाजी में खुद को बहुत साफ सुथरा नेता मानते हैं, उनके समर्थक उन्हें राजस्थान का गांधी कहते हैं। लेकिन इनके पिछले दो बार के मुख्यमंत्री काल में वो सब कुछ हुआ, जो अन्य पार्टियों के शासनकाल में हुआ। हर विभाग में जमकर भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का खेल खेला गया। इनके चहेतों ने जमकर लूट खसोट की। क्या यह अपने ही दस साल के पिछले कार्यकाल की जांच करवाने की हिम्मत रखते हैं ?

अशोक गहलोत एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने राजस्थान में संविदाकर्मी नाम की शोषण की चक्की स्थापित कर हजारों शिक्षित युवक युवतियों का जीवन बरबाद कर दिया। क्या यह अपने इस पाप को धोने के लिए समस्त संविदाकर्मियों को नियमित करेंगे ? इसके अलावा गत दिनों गहलोत ने भाजपा द्वारा किए जा रहे एक जेल भरो आन्दोलन के संदर्भ में जो भाषा बोली कि एक बार जेल में डाल दिया तो निकलना मुश्किल हो जाएगा। क्या यह भाषा लोकतांत्रिक है ? क्या यह भाषा उन नेताओं जैसी नहीं है, जिनको गहलोत और उनके साथी नेता तानाशाह और लोकतंत्र विरोधी कहते हैं ?

लेख़क -एम फारूक़ ख़ान सम्पादक  इकरा पत्रिका

कौन होगा अगला प्रधानमंत्री  – जानें ख़ास – सियासी गणित 

कौन होगा अगला प्रधानमंत्री  – सियासी गणित 
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लोकसभा चुनाव के दिन नजदीक आ चुके हैं और राजनीतिक दलों में केन्द्र की सत्ता हासिल करने तथा अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए बङे पैमाने पर जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। गठबन्धन और महागठबन्धन बनाने का प्रयास भी तेज हो चुका है। सवाल यह है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा और वो किस दल से होगा ?


जयपुर। दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव विश्व के सबसे बङे लोकतांत्रिक देश भारत की केन्द्रीय सत्ता के लिए होंगे। यह चुनाव तय करेंगे कि देश गांधी, मौलाना आज़ाद, नेहरू, डाॅक्टर अम्बेडकर औ

साभार

र लोहिया की समानता व भाईचारे की नीतियों पर चलेगा, या नफरत की खाई में धकेला जाएगा ! यह चुनाव यह भी तय कर देंगे कि देश की सत्ता जनहित और सिद्धांत आधारित मूल्यों पर स्थापित नहीं होगी, तो गांधीवाद, समाजवाद, अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद के अध्याय भविष्य में किताबों से फाङ कर फेंक दिए जाएंगे ! अब सवाल यह है कि चुनाव परिणाम किसके हक में होंगे और प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? मौजूदा सियासी माहौल को देखकर लगता है कि चुनाव परिणाम किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत तक नहीं पहुंचाएंगे तथा अगली सरकार गठबंधन की होगी।

 

यह भी खुली किताब की तरह है कि देशभर में दो ही पार्टियों का सबसे ज्यादा वजूद है, एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस। लेकिन यह भी तय सा लग रहा है कि दोनों ही बङी पार्टियों की सांसद संख्या 200 के आंकड़े को नहीं छू पाएगी। जहाँ तक भाजपा का सवाल है, तो उसके पास वर्तमान में हिन्दी पट्टी की अधिकतर सीटें हैं और इन सीटों में से काफी सीटें घटेंगी तथा गैर हिन्दी पट्टी में भाजपा का बङा जनाधार बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं है। साथ ही अधिकतर सियासी पण्डित भी भाजपा को अधिकतम 200 सीटें दे रहे हैं। बात पीएम नरेन्द्र मोदी की, तो प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर वे दोबारा तभी बैठ पाएंगे, जब भाजपा 250 के आस पास पहुंचे। क्योंकि ऐसी स्थिति में जनता दल यूनाइटेड, बीजू जनता दल, अन्ना द्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति, लोजपा जैसी पार्टियां मोदी को फिर से पीएम बनवा सकती हैं। लेकिन इसकी सम्भावना न के बराबर है, क्योंकि कोई भी सियासी पण्डित भाजपा की सांसद संख्या 200 से ऊपर आती हुई नहीं बता रहा है। ऐसी स्थिति में यह तय लग रहा है कि मोदी को सत्ता की दूसरी पारी खेलने का अवसर कतई नहीं मिलेगा।

अगर भाजपा की सीटें 200 के आस पास आ गईं, तो फिर सरकार भाजपा के ही नेतृत्व में बनेगी और प्रधानमन्त्री की कुर्सी नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह या शिवराज सिंह चौहान को मिल सकती है तथा इनमें से कोई दूसरा अटल बिहारी वाजपेयी बन सकता है, जिसे कई क्षेत्रीय क्षत्रप समर्थन दे देंगे। यह स्थिति तब पैदा होगी, जब विपक्षी वोटों में बिखराव ज्यादा होगा। अगर विपक्षी वोटों में बिखराव कम हुआ तथा चुनावों को भाजपा के फेवर में करने वाला कोई तात्कालिक मुद्दा नहीं हुआ, तो यह तय है कि भाजपा 150 सीटों के आंकड़े को भी नहीं छू पाएगी। ऐसी स्थिति में सरकार भाजपा विरोधी खेमे की बनेगी। इस खेमे में पीएम पद की दौड़ में ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार आदि नेताओं का नाम लिया जा रहा है। अगर चुनाव बाद सम्भावित गठबंधन और समर्थन के लिए कामरेडों की आवश्यकता पङी, तो यह तय है कि कामरेड किसी भी परिस्थिति में ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे।

 

जहाँ तक मायावती की बात है, तो उन्होंने यूपी में अखिलेश यादव की सपा और अजीत सिंह की आरएलडी से गठबंधन कर लिया है तथा सीटों का बंटवारा भी कर लिया है। इस गठबंधन में कांग्रेस को कोई भाव नहीं दिया गया है, जिससे कांग्रेस ने सभी सीटों पर अकेले चुनाव लङने की घोषणा कर दी है। सियासी गलियारों में चर्चा यह है कि अगर यूपी की अधिकतर सीटों पर सपा बसपा गठबंधन जीत जाता है, तो अखिलेश यादव पीएम की कुर्सी पर मायावती को बैठाने का प्रयास करेंगे, ताकि यूपी में उनका रास्ता साफ हो जाए। चर्चा यह भी है कि इस मुद्दे पर मायावती व अखिलेश यादव में सहमति बन चुकी है। मायावती को महिला और पहली दलित प्रधानमन्त्री बनवाने के नाम पर सम्भावना है कि कांग्रेस सहित अधिकतर दल सहमत हो जाएंगे।

इस कङी में एक नाम और भी है, वो है पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा का। वो अपना हर पत्ता संभल कर चल रहे हैं तथा उन्होंने राहुल गांधी, मायावती और ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनवाने की बात विभिन्न मंचों से कही है। साथ ही कामरेडों से भी उनके अच्छे सम्बन्ध हैं। उन्हें 1996 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री से दिल्ली के तख्त पर बैठाने में तत्कालीन सीपीएम महासचिव कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत का महत्वपूर्ण योगदान था। अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि पार्टियों के समर्थन से जनता दल के नेता देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया था। वे उम्र के आखरी पङाव में 23 साल बाद तेजी से सक्रिय हो चुके हैं और उनका शायद ही कोई पार्टी विरोध करे, इसलिए सियासी गलियारों में उनको भी प्रधानमन्त्री का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए शरद पवार को भी दावेदार माना जा रहा है। उनके सभी दलों के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं। लेकिन चर्चा है कि कांग्रेस आलाकमान पवार को 7 लोक कल्याण मार्ग (प्रधानमन्त्री निवास) तक पहुंचाने में सहयोग नहीं करेगा, क्योंकि पवार कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे और उन्होंने सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के विरोध में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी।

अब बात करें राहुल गांधी की, तो राहुल गांधी के प्रधानमन्त्री बनने की सम्भावना तभी बनेगी, जब कांग्रेस की सीटें 200 के करीब आएं तथा भाजपा की 150 से कम आएं। सियासी पण्डितों का यह तो मानना है कि भाजपा की सीटें तो 150 से कम हो सकती हैं। परन्तु यह कोई भी सियासी पण्डित नहीं मान रहा है कि कांग्रेस का आंकड़ा 200 के पास पहुंच जाएगा। आज स्थिति यह है कि 543 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस करीब 135 पर नम्बर एक और दो पर है। शेष करीब 410 सीटों पर कांग्रेस तीसरे, चौथे और पांचवें नम्बर पर है। अगर पहले और दूसरे नम्बर की सभी सीटें कांग्रेस जीत जाती है, तो भी कांग्रेस का आंकड़ा 150 से कम ही रहेगा। मौजूदा सियासी माहौल और विपक्षी वोटों के बिखराव की सम्भावना को देखकर सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस तीन अंकों के आंकड़े तक पहुंच जाए, तो गनीमत है। यानी 100 सीट मिल जाएं, तो यह कांग्रेस के लिए सबसे बेहतर प्रदर्शन होगा। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का प्रधानमन्त्री बनना असम्भव हो जाएगा, क्योंकि उनके नेतृत्व में अन्य वरिष्ठ नेता सरकार चलाने के लिए तैयार नहीं होंगे।

इस सन्दर्भ में चर्चा यह भी है कि कांग्रेस अपना नया मनमोहन सिंह तलाश करेगी तथा नए मनमोहन सिंह के तौर पर लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खङगे का नाम लिया जा रहा है। जो कर्नाटक से हैं तथा दलित समुदाय से सम्बंधित हैं। खङगे की गिनती एक सुलझे हुए और शरीफ नेताओं में होती है, जो राहुल गांधी के विश्वसनीय भी हैं। अगर कांग्रेस खङगे का नाम पीएम के तौर पर आगे करेगी, तो शायद ही कोई पार्टी विरोध करे। एक सम्भावना और भी है, जिस पर सियासी गलियारों की उच्च चौपालों पर चर्चा हो रही है, वो है गांधी जी के पोते राज मोहन गांधी के नाम की। चर्चा है कि जब प्रधानमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बनेगी, तो कुछ राजनेता राज मोहन गांधी के नाम को आगे करेंगे तथा अधिकतर विपक्षी दल इस नाम पर सहमत हो जाएंगे। लेकिन चर्चा है कि कांग्रेस राज मोहन गांधी के नाम पर सहमत नहीं होगी, क्योंकि वो गांधी जी के खानदान से सम्बंधित किसी चिङिया को भी सत्ता की उच्च सीढ़ी पर नहीं बैठने देगी।

लेख़क – एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।

गहलोत सरकार के खिलाफ़ – मुस्लिम

मुख्यमंत्री गहलोत के रवैये से मुसलमानों में कङा रोष –

मुस्लिम थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता की चौखट तक पहुंचाने में प्रमुख योगदान मुस्लिम वोटर का रहा है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुस्लिम वोटर की एकतरफा पोलिंग से विधायक बने हैं, इसके बावजूद गहलोत ने मुसलमानों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का रवैया बना रखा है। गहलोत के इस रवैये से मुसलमानों में कङा रोष है, जिसका का खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भुगतान पङ सकता है !
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एक मुस्लिम थिंक टैंक विधानसभा चुनाव परिणाम का अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन और आंकड़ों के आकलन के आधार पर थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में मुस्लिम वोट करीब 90 फीसदी पोल हुआ है और कुछ सीटों को छोड़कर यह वोट एकतरफा कांग्रेसी उम्मीदवारों को मिला है। जिसके नतीजे में कांग्रेस को 100 सीटें मिली हैं और वो 

हारती हारती बची है। अगर मुस्लिम वोट 20 फीसदी भी कम पोल हो जाता, तो कांग्रेस को 60 सीटें भी नहीं मिलती !


जयपुर। दो महीने पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए। जिनमें कांग्रेस को 99 सीटें मिली। हालांकि बाद में रामगढ सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस जीत गई और उसकी कुल 100 सीटें हो गई, बहुमत से एक कम। मतगणना के एक सप्ताह बाद मुख्यमंत्री कौन बने ? के सवाल की जंग खत्म हुई और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री व सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके कई दिनों बाद मन्त्रीमण्डल का गठन हुआ। मन्त्रीमण्डल में एक मुस्लिम को मन्त्री बनाया गया, जबकि पिछले तीन दशक में जब भी राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रही है, तब तीन से कम मुस्लिम मन्त्री कभी नहीं रहे। मन्त्रीमण्डल का

गठन होते ही मुसलमानों में कङा रोष व्याप्त हो गया। जिसकी चर्चा चाय चौपालों से लेकर सोशल मीडिया पर शुरू हो गई। लोगों ने गहलोत के इस रवैये की कङी आलोचना करते हुए नाराज़गी का इजहार किया।

इसके कुछ दिनों बाद विभागों का बंटवारा हुआ और मुसलमानों के नाम पर बनाए गए एकमात्र मन्त्री पोकरण विधायक सालेह मोहम्मद को अल्पसंख्यक मामलात का मामूली मन्त्रालय देकर इतिश्री कर दी। तो मुस्लिम समुदाय में व्याप्त रोष और तीव्र हो गया। फिर एएजी की नियुक्तियां हुईं और उनमें एक भी मुस्लिम एडवोकेट को शामिल नहीं किया गया। जबकि एएजी के नाम पर करीब डेढ़ दर्जन वकीलों की नियुक्ति हुई है। इसके बाद मुस्लिम बुद्धिजीवियों ख़ासकर वकीलों ने कङी नाराज़गी का इजहार किया। कांग्रेस से जुड़े हुए मुस्लिम वकीलों ने एक बैठक आयोजित करने की भी योजना बनाई, हालांकि वो किसी कारणवश आयोजित नहीं हो

सकी। एएजी की नियुक्तियों के बाद अन्दरखाने कांग्रेसी मुस्लिम नेताओं ने भी मुख्यमंत्री गहलोत की आलोचना शुरू कर दी और गहलोत के इस रवैये को पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा दिया। इसके बाद एक मुस्लिम एडवोकेट को सरकारी वकील के साथ एएजी बनाया।

सीएम गहलोत के इस रवैये से मुसलमानों में कङा रोष है और मुस्लिम समुदाय अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सियासी तौर पर जागरूक मुसलमानों का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता की चौखट पर पहुंचाने वाला मुस्लिम समुदाय है। इसके बावजूद गहलोत मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे हैं और वो कांग्रेस को भाजपा की बी टीम बनाने पर तुले हुए हैं, जिसका खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भुगतान पङ सकता है। इस बीच एक मुस्लिम थिंक टैंक ने विधानसभा चुनाव परिणाम का अध्ययन शुरू किया है और इस थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार मुस्लिम वोटर की देन है। इस थिंक टैंक ने इकरा पत्रिका से भी सम्पर्क किया और इकरा पत्रिका की टीम ने थिंक टैंक के आंकड़ों और विश्लेषण का अध्ययन किया। यह एक विस्तृत रिपोर्ट है, जो एक लेख में प्रकाशित करना सम्भव नहीं है। इसलिए आगामी अंकों में विस्तार से इस रिपोर्ट पर आधारित लेख प्रकाशित किए जाएंगे। फिर भी कुछ आंकड़े इस लेख में भी प्रकाशित किए जा रहे हैं।

इस थिंक टैंक का मानना है कि राजस्थान में मुसलमानों का वोट करीब 90 फीसदी पोल हुआ है और कुछ मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर तो इससे भी अधिक वोट पोल हुआ है। नगर, तिजारा, उदयपुरवाटी, सीकर जैसी कुछ विधानसभा सीटों को छोड़कर यह वोट एकतरफा पूरा का पूरा कांग्रेसी उम्मीदवारों को मिला है। जिसके नतीजे में कांग्रेस को 100 सीटें मिली हैं और वो हारती हारती बची है तथा राजस्थान की सत्ता कांग्रेस की झोली में आई है। इस थिंक टैंक का मानना है कि अगर राजस्थान में मुसलमानों का वोट 20 फीसदी भी कम पोल हो जाता, तो कांग्रेस की 60 सीट भी नहीं आती और वो आज विपक्ष में बैठी होती। इस थिंक टैंक का यह भी दावा है कि कांग्रेस को मुसलमानों के अलावा किसी भी जाति या समुदाय का 65 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिला है। कुछ जातियों का तो कांग्रेस को 20 फीसदी से भी कम वोट मिला है, फिर भी कांग्रेस सरकार ने उन जातियों से सम्बंधित नेताओं को मन्त्रीमण्डल और एएजी जैसे पदों पर मुस्लिम से ज्यादा नियुक्तियां दी हैं। इनका आकलन यह भी बता रहा है कि किसी भी जाति का 65 फीसदी से अधिक वोट कांग्रेस को उसी सीट पर मिला है, जिस सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार उसी जाति का था तथा भाजपा या अन्य पार्टी का कोई मजबूत उम्मीदवार दूसरी जाति का था। जबकि मुसलमानों का वोट न सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार वाली सीटों पर बल्कि कमोबेश अन्य सभी सीटों पर भी 90 फीसदी के करीब पोल हुआ है तथा यह एकतरफा कांग्रेस को मिला है। इसके बावजूद सीएम गहलोत मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

अगर कांग्रेस के कुछ विजयी उम्मीदवारों को मिले वोट और जीत के अन्तराल का अध्ययन करें, तो मालूम होता है कि वे मुस्लिम वोट की वजह से जीते हैं, यहाँ तक के खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुस्लिम वोटों की वजह से विधायक बने हैं। यहाँ कुछ ऐसी ही सीटों के आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, जहाँ मुस्लिम वोट 50 हजार से अधिक हैं। इनमें एक सरदारपुरा विधानसभा सीट है, जहाँ से खुद मुख्यमंत्री गहलोत विधायक बने हैं। वे यहाँ से 45 हजार 597 वोटों के अन्तर से जीते हैं और उन्हें करीब 65 हजार मुस्लिम वोटर वाली इस सीट पर एकतरफा मुस्लिम वोट मिले हैं। दूसरी सीट टोंक जहाँ से उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट 54 हजार 179 वोटों के अन्तर से विजयी हुए हैं। तीसरी सीट कोटा उत्तर जहाँ से यूडीएच मन्त्री शान्ति धारीवाल 17 हजार 945 वोटों की लीड से जीतकर विधायक बने हैं। चौथी सीट बीकानेर पश्चिम जहाँ से कैबिनेट मन्त्री बी डी कल्ला 6 हजार 190 वोटों के अन्तर से विजयी हुए हैं। पांचवी सीट झुन्झुनूं जहाँ से बृजेन्द्र ओला 40 हजार 565 वोटों की लीड लेकर विधानसभा पहुंचे हैं। यह सब वो सीट हैं जहाँ मुसलमानों के 50 हजार से अधिक वोट हैं और वे एकतरफा कांग्रेस के खाते में डले हैं।

लेख़क -एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।

संघ के वो सात कलंक.

हिंदूवादियों की 7 शर्मनाक गलतियां, क्या देश कभी माफ कर सकेगा?
भारत के इतिहास में कई ऐसे पन्ने हैं जो हिंदू महासभा और आरएसएस के नाम पर कलंक के तौर पर दर्ज हैं. अपने मजबूत प्रचारतंत्र के बूते क्या संघ ये दाग धो पाएगा.
पढ़िए क्या हैं संघ के वो सात कलंक.
1. भारत के विभाजन के विचार की नींव रखना
भारत विभाजन का समर्थन किया. विनायक दामोदर सावरकर. द्विराष्ट्र सिद्धांत के समर्थक थे जिन्ना और सावरकर दोनों चाहते थे कि एक हिंदू राष्ट्र बने और एक इस्लामिक राष्ट्र, कहा कि हिंदू और मुसलमान अलग देश हैं कभी साथ नहीं रह सकते. पहले सावरकर ये प्रस्ताव लेकर आए और इसके तीन साल बाद ही जिन्ना ने भी द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया. (हिंदू महासभा के 19वें अधिवेशन में सावरकर का भाषण, 1937) बाद में संघ ने भारत विभाजन का विरोध करने वाले गांधी की हत्या करके उन्हें ही विभाजन का दोषी ठहराने के लिए दुष्प्रचार किया गया. इतिहासकार कहते हैं कि संघ ने उग्र हिंदूवातावरण न बनाया होता तो शायद जिन्ना अलग राष्ट्र नहीं मांगते.
2. आर्मी को तोड़ने की साजिश
भारत के खिलाफ साजिश. देश के आजाद होने के तीसरे साल ही संघ ने एक साजिश रची. आर्मी चीफ जनरल करिअप्पा को कत्ल करने की साजिश. संघ ने पहले उत्तर भारत और दक्षिण भारत का ध्रुवीकरण किया फिर कुछ सिख युवकों को भड़काकर करिअप्पा की हत्या की कोशिश की. मामले में 6 लोगों को सजा हुई थी (स्रोत – 2017 में रिलीज हुए सीआईए के डिक्लासिफाइड किए गए दस्तावेज़)
3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस से गद्दारी
जब भारत की आजादी के लिए नेता जी सुभाषचंद्र बोस जापान की मदद लेने गए थे तो संघ ने अंग्रेजों का साथ दिया. हिंदू महासभा ने ‘वीर’ सावरकर के नेतृत्व में ब्रिटिश फौजों में भर्ती के लिए शिविर लगाए. हिंदुत्ववादियों ने अंग्रेज शासकों के समक्ष मुकम्मल समर्पण कर दिया था जो ‘वीर’ सावरकर के निम्न वक्तव्य से और भी साफ हो जाता है-‘जहां तक भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिंदू समाज को भारत सरकार के युद्ध संबंधी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिंदू हितों के फायदे में हो. हिंदुओं को बड़ी संख्या में थल सेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद, और जंग का सामान बनाने वाले कारखानों वगैरह में प्रवेश करना चाहिए…’गौरतलब है कि युद्ध में जापान के कूदने के कारण हम ब्रिटेन के शत्रुओं के हमलों के सीधे निशाने पर आ गए हैं. इसलिए हम चाहें या न चाहें, हमें युद्ध के कहर से अपने परिवार और घर को बचाना है और यह भारत की सुरक्षा के सरकारी युद्ध प्रयासों को ताकत पहुंचा कर ही किया जा सकता है. इसलिए हिंदू महासभाइयों को खासकर बंगाल और असम के प्रांतों में, जितना असरदार तरीके से संभव हो, हिंदुओं को अविलंब सेनाओं में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए’ (स्रोत- वीर सावरकर समग्र वांड्मय)
4. महात्मा गांधी की हत्या.
आरएसएस ने की या नहीं इसको लेकर विवाद है. गांधी के मारे जाने को वो सही तो मानते रहे हैं लेकिन हत्या की साजिश से इनकार करते हैं. लेकिन यहां कुछ जानकारियां हैं जो कहती हैं कि गांधी को मारने के पीछे संघ था. गांधी जी की हत्या के मामले में आठ आरोपी थे– नाथूराम गोडसे और उनके भाई गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किष्टैया, विनायक दामोदर सावरकर और दत्तात्रेय परचुरे. इस गुट का नौवां सदस्य दिगंबर रामचंद्र बडगे था जो सरकारी गवाह बन गया था. ये सब आरएसएस या हिंदू महासभा या हिंदू राष्ट्र दल से जुडे हुए थे. अदालत में दी गई बडगे की गवाही के आधार पर ही सावरकर का नाम इस मामले से जुड़ा था और गांधी की हत्या के बाद हिंदू महासभा और आरएसएस पर प्रतिबंध लग गया था. यानी गांधी की हत्या में संघ को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती.अगर गांधी दस साल और रहते तो देश में सिद्धांत की राजनीति मजबूत होती. सालों तक स्वतंत्रता सेनानियों पर जुल्म ढाने वाली अफसरशाही ने आजाद होते ही राजनीति को प्रलोभन देने शुरू कर दिए कि कहीं नेता उनसे बदला न लें. ये प्रलोभन बाद में करप्शन में बदल गए. गांधी होते तो देश करप्ट नहीं होता. वो देश को सैद्धांतिक राजनीति में पाग कर जाते. कपूर कमीशन की रिपोर्ट ने भी गांधी की हत्या में हिंदूवादियों का ही हाथ बताया था.
5. नमक सत्याग्रह का विरोध.
आरएसएस द्वारा प्रकाशित की गई हेडगेवार की जीवनी के मुताबिक, जब गांधी ने 1930 में अपना नमक सत्याग्रह शुरू किया, तब उन्होंने (हेडगेवार ने) ‘हर जगह यह सूचना भेजी कि संघ इस सत्याग्रह में शामिल नहीं होगा. हालांकि, जो लोग व्यक्तिगत तौर पर इसमें शामिल होना चाहते हैं, उनके लिए ऐसा करने से कोई रोक नहीं है. इसका मतलब यह था कि संघ का कोई भी जिम्मेदार कार्यकर्ता इस सत्याग्रह में शामिल नहीं हो सकता था’.वैसे तो, संघ के कार्यकर्ताओं में इस ऐतिहासिक घटना में शामिल होने के लिए उत्साह की कमी नहीं थी, लेकिन हेडगेवार ने सक्रिय रूप से इस उत्साह पर पानी डालने का काम किया.
6. भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के डेढ़ साल बाद, ब्रिटिश राज की बॉम्बे सरकार ने एक मेमो में बेहद संतुष्टि के साथ नोट किया कि ‘संघ ने पूरी ईमानदारी के साथ खुद को कानून के दायरे में रखा है. खासतौर पर अगस्त, 1942 में भड़की अशांति में यह शामिल नहीं हुआ है.’
7. आजादी के बाद का ‘देशद्रोह’.
भारत की आजादी के उपलक्ष्य में आरएसएस के मुखपत्र ‘द ऑर्गेनाइजर’ में प्रकाशित संपादकीय में संघ ने भारत के तिरंगे झंडे का विरोध किया था, और यह घोषणा की थी कि ‘‘हिंदू इस झंडे को न कभी अपनाएंगे, न कभी इसका सम्मान करेंगे.’’ बात को स्पष्ट करते हुए संपादकीय में कहा गया कि ‘‘ये ‘तीन’ शब्द ही अपने आप में अनिष्टकारी है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित तौर पर खराब मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा और यह देश के लिए हानिकारक साबित होगा.’’

तो क्या संघ विरोधी छवि बनाई जा रही है राजस्थान मुख्यमंत्री राजे की –

तो क्या संघ विरोधी छवि बनाई जा रही है राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे की – उम्मीदवारों पर राष्ट्रीय नेतृत्व से टकराव जाने एक नज़र –

जयपुर के दो बड़े समाचार -पत्र में  2 नवम्बर की खबरों पर भरोसा किया जाए तो प्रतीत होता है कि 7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों को लेकर सीएम वसुंधरा राजे और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में टकराव हो गया है।
वसुंधरा राजे 35 विधायकों के टिकिट नहीं काटना चाहती है तो पांच वर्ष तक उनके वफादार रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह खराब छवि वाले विधायकों को दोबारा से उम्मीदवार बनाना नहीं चाहते। अमितशाह हर हाल में राजस्थान में दोबारा से भाजपा की सरकार चाहते हैं। भाजपा के उम्मीदवारों को लेकर अब दिल्ली में मशक्कत हो रही है। 2 नवम्बर को दैनिक भास्कर में 95 विधायकों की सूची छपी है, जिन्हें वसुंधरा राजे ने दोबारा से उम्मीदवार बनवाना चाहती हैं। यह सूची देश के सबसे बड़े अखबार में छपी है इसलिए थोड़ा तो विश्वास करना ही पडेगा। भास्कर जैसा अखबार वसुंधरा राजे जैसी ताकतवर मुख्यमंत्री की सूची यंू ही नहीं छाप सकता। आखिर भास्कर की भी विश्वसनीयता की बात है। यदि इस सूची को देखा जाए तो इसमें अधिकांश विधायक वो ही हैं जो पांच वर्ष वसुंधरा राजे के वफादार रहे। भाजपा संगठन हो या 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, लेकिन अधिकांश विधायकों ने वसुंधरा राजे के निर्देशों की ही पालना की। राजस्थान में 200 सीटें हैं और 163 भाजपा के पास हैं। अब यदि वसुंधरा राजे 95 विधायकों को दोबारा से उममीदवार बनवाना चाहती है तो शेष 68 विधायकों का क्या होगा? राजनीति के जानकारों का मानना है कि इन 68 में से अधिकांश विधायक संघ पृष्ठ भूमि वाले हैं। ये ऐसे विधायक हैं तो वसुंधरा राजे से पहले संघ के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे। इस तथ्य की सच्चाई अजमेर जिले के 7 विधायकों से लगाई जा सकती है। वसुंधरा राजे की सूची में केकड़ी के विधायक शत्रुघ्न गौतम, पुष्कर से सुरेश सिंह रावत किशनगढ़ के भागीरथ च ौधरी तथा ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत का नाम है, लेकिन संघ की पृष्ठ भूमि वाले अजमेर उत्तर के वासुदेव देवनानी, दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल तथा मसूदा की श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा का नाम शामिल नहीं हैं। यानि सीएम वसुंधरा राजे अजमेर में सात में से तीन क्षेत्रों में उम्मीदवार बदलना चाहती हैं, जबकि 5 में नहीं। सब जानते है कि पहली बार विधायक बने शत्रुघ्न गौतम और सुरेश रावत को सीएम राजे ने संसदीय सचिव भी बनाया, वहीं शंकर सिंह रावत और भागीरथ च ौधरी का अपने-अपने क्षेत्रों में रुतवा बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन विधायकों के विरुद्ध आने वाली शिकायतों को भी अनसुना किया। जानकारों के अनुसार ऐसी सूची को देखने के बाद ही अमितशाह ने कहा था कि अभी और मंथन करो। यदि उममीदवारों का मामला संघ और वसुंधरा राजे की पसंद में फंसता है तो आने वाले दिनों में भाजपा के सामने संकट खड़ा होगा। सब जानते है। कि प्रदेशाध्यक्ष को लेकर भी वसुंधरा राजे और राष्ट्रीय नेतृत्व में 6 माह तक खींचतान चली थी। बाद में समझौते के अनुरूप अशोक परनामी के स्थान पर मदनलाल सैनी को तो बनाया गया, लेकिन साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व को यह घोषणा करनी पड़ी की विधानसभा का चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में लड़ा जाएगा तथा बहुमत मिलने पर वसुंधरा ही सीएम बनेगी। लेकिन वसुंधरा राजे को भी पता है कि राजनीति कसमे वायदे कोई मायने नहीं रखते हैं। चुनाव के बाद वे तभी सीएम बन सकती हैं, जब विधायकों का समर्थन मिले। यही वजह है कि वसुंधरा राजे अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकिट दिलवाना चाहती हैं।

राजस्थान पत्रिका की बढ़ती मुश्किले – हो रहा है विरोध

गुलाब कोठारी- मालिक और प्रधान संपादक, राजस्थान पत्रिका

आरक्षण को लेकर आपने एक सर्वे किया है, आपके अखबार को लेकर एक रिसर्च मैंने भी की है

हाल ही में आपके अखबार के प्रथम पृष्ठ पर एक सर्वे छपा, जिसमें बताया गया था कि आरक्षण से किस प्रकार समाज में वैमनस्य बढ़ रहा हैं। हालांकि आरक्षण के खिलाफ ये कोई आपकी पहली खबर नहीं थी। आप लंबे समय से आरक्षण के खिलाफ मुहिम चला रहें हैं यह खबर उसकी बानगी मात्र है। कुछ दिनों पहले आरक्षण पर आपका एक संपादकीय भी आया था जिसमें आरक्षण के खिलाफ खूब जहर उगला गया था और जमकर ज्ञान पेला गया था। मेरा करीब 17 साल से राजस्थान पत्रिका का पाठक रहा है यानि मैं लगभग 8 साल का रहा होगा जबसे ही आपके इस अखबार को पढ रहा था हालांकि आपके आरक्षण के खिलाफ लिखे गए संपादकी

भंवर मेघवंशी

य के बाद से ही मैनें पत्रिका बंद कर दिया और लोगों को भी ऐसा करने के लिए कहा।

मैं खुद एक पत्रकार भी हूं और शोधार्थी भी, इसलिए आपकी खबरों और सर्वे की मंशा साफ तौर पर समझ सकता हूं। मेरी अपनी राय है कि शायद आप अभी एक अपने आपके ब्राम्हण होने और

पत्रकार होने में फर्क नहीं कर पाएं हैं। आपके के एक अच्छे पत्रकार होने पर मुझे संदेह है। आपके पास अखबार की ताकत है जिसके जरिये आप अपने ब्राम्हणवादी या इसके ही दूसरे रूप मनुवाद के विचारों को फैला रहें हैं। संभवत: इससे भी समाज में वैमनस्यता बढ़ रही है। एक भारतीय नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी है और पत्रकार भी सविंधान के अनुच्छेद-19 के अंतर्गत ही अपना काम करता है उसके लिए देश में को अलग कानूनी व्यवस्था नहीं हैं। लेकिन एक आम नागरिक और एक पत्रकार में फर्क होना चाहिए है, उसकी जिम्मेदारी होती है कि वो दोनों पहलूओं को जनता के समक्ष रखे लेकिन आजकल अपना एजेंडा चलाने या चाटूकारिता के लिए पत्रकार अनाम-शनाप लिखकर समाज में बैर बढ़ा रहें हैं और आप भी इसी श्रेणी में शामिल हैं।

आरक्षण क्यों हैं? उम्मीद है आपके पास इतना सा मामूली ज्ञान तो होगा ही कि जातिवाद की वजह से आरक्षण है लेकिन आपके किसी लेख, संपादकीय या टेबल पर बैठकर किए गये सर्वे में इस बात का कहीं जिक्र नहीं कि जातिवाद की वजह से वैमनस्य बढ़ रहा है, लेकिन यह आपके अखबार और एजेंड़े दोनों की ही हिस्सा नहीं हैं। आपकी ओर से चलाए जा रहे एजेंडे से साफ है कि दरअसल आपको समस्या जातिवाद से नहीं बल्कि आरक्षण से हैं। एक पत्रकार के नाते समाज के प्रति भी आपकी एक नैतिक जिम्मेदारी है कि उसमें जातिवाद के नाम जो जहर है उसे समाज के सामने रखा जाए। समाज के जातिवाद को परखने से पहले जरा अपको ही देख लिजिए की आपका एक ब्राम्हण होना आपकी पत्रकारिता के भी आड़े आ रहा है, क्या यह जातिवाद नहीं हैं?लेकिन आपको जातिवाद से कोई समस्या नहीं है क्योंकि आप तो इसे बनाए रखने के समर्थक है आप समाज में वैमनस्य नहीं बल्कि आरएसएस, हां वही भागवत जी वाला, की समरसता वाले विचार से सहमत है।

आपने जैसे एक सर्वे कराकर उसे जिस प्रमुखता से प्रथम लीड बनाया है उससे आप क्या साबित करना चाहतें हैं कि चुनावी महौल है और आरक्षण को हटा दिया जाना चाहिए, हो सकता है कि आपने टेबल पर बैठकर ही अपना सर्वे पूरा कर लिया हो, या आपने उसे अपने मन मुताबिक कर लिया हो या यह भी संभावना है कि आपने उन्हीं लोगों से पूछा हो जो आपकी खबर के पक्ष में जवाब दे रहें हो, आज की पत्रकारिता में कुछ भी संभव है। आपके ही राजस्थान पत्रिका अखबार को लेकर “जयपुर से प्रकाशित समाचार पत्रों में दलित संबंधी समाचारों का विश्लेषण” विषय पर एक शोध मैनें भी किया है जिसमें आपके तीन महिनों के अखबारों का अध्ययन करने के बाद यह परिणाम सामने आए की “दलितों पर होने वाले अत्याचारों की खबरें आपके अखबार का हिस्सा ही नहीं हैं। उस अवधि में राजस्थान में दलितों पर अत्याचारों के करीब 1750 मामले दर्ज हुए लेकिन आपके अखबार में सिर

गुलाब चंद कोठारी

्फ 3 खबरें प्रकाशित हुई वो भी अंदर के किसी पेज पर बेमाने ढंग से, खबर को पढक़र ऐसा लगता है मानों कुछ हुआ ही नहीं।”

पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में आरक्षण मौजूद है और भारत में ब्राम्हणवादी या मनुवादी सोच के चलते जिन लोगों को दबाया गया उनको साहस देने के लिए जो आरक्षण की व्यवस्था की गई है वो दुनिया के सामने मिसाल है। आरक्षण के वजह से आज वो लोग आज आप जैसों के बराबर बैठने लगें, कभी जिनकी परछाई से भी आप अपवित्र हो जाया करते थे और इसी बात का आपको दू:ख है कि आरक्षण की वजह से आपकी वो कत्थित सत्ता या रौब अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। आप आरक्षण के खिलाफ जहर उगलकर उसे हटाना चाहतें है लेकिन जातिवाद? उसका क्या? उसे तो आपको कायम रखना है आप समाज में आरएसएस वाली समरसता चाहतें है जिसमें समाज चार कत्थित वर्णों में बंटा हो लेकिन आप अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगें। आप लोग समाज में समरसता ही क्यों चाहतें हैं, समानता क्यों नहीं? शब्दों का यह जाल लोग अब समझ रहें हैं।

आप आर्थिक आरक्षण की वकालत करतें हैं। आप तर्क देतें हैं कि हर जाति के लोग गरीब हैं, हां यह बात सही है कि हर जाति में गरीब लोग है लेकिन क्या कभी किसी कत्थित उच्च जाति के गरीब दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया गया हो, या हैलमैट पहनकर अपनी बारात निकालनी पड़ी हो, या मंदिर में नहीं जाने दिया हो, या किसी हैंडपंप को छूने पर मार दिया गया हो, या फिर उनके हाथ लगााने के बाद मूर्तियों को गंगाजल या जानवरों के मूत से धोया गया हो? जिस आधार पर भेदभाव है उसी आधार पर तो आरक्षण दिया जाना चाहिए की नहीं? जिस दिन आर्थिक आधार पर भेदभाव होने लगेगा उस दिन यह व्यवस्था भी कर दी जानी चाहिए हमें कोई आपत्ति नहीं है। वैसे भी आरक्षण कोई गरीबी हटाओ योजना नहीं हैं, गरीबी मिटाने के लिए सरकारों ने कई प्रकार अन्य योजनाएं चला रखी है।

आरक्षण को लेकर कुछ वाजिब सवाल है, उसे और बेहतरीन ढंग से लागू किया जा सकता है। मेरा भी मानना है कि आरक्षण का कई जगह गलत प्रयोग भी होता है। लेकिन गलत प्रयोग तो आपके अखबार का भी होता है। आप अपनी बातों को मनवाने या अपने निजी स्वार्थ के लिए लगातार लोगों को टारगेट करने का आपका इतिहास रहा है तो क्यों नहीं फिर आपके अखबार को भी बंद कर दिया जाना चाहिए?

अमेरिका में जब यह सामने आया कि वहां के मूलनिवासी अश्वेत लोगों को मीडिया में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है तो सभी मीडिया संस्थानों ने मिलकर उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए एक स्वर में साथ आ गए लेकिन यह भारतीय मीडिया के संदर्भ में बिल्कुल भी संभव नहीं हैं, यहां तो पत्रकार अपनी जाति छुपाकर रखते हैं ताकि किसी की ‘अनहोनी’ से बचा जा सके। मुझे नहीं पता कि आपके अखबार के निर्णायक दस पदों पर कितने दलित हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि एक भी नहीं होगा। सारे कत्थित उच्च जाति के होगें उनमें भी सिर्फ एक ही जाति के। लेकिन अगर प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण होता तो तस्वीर दूसरी होती। और यदि सरकारी क्षेत्र में आरक्षण नहीं होता तो तस्वीर आपके अखबार की तरह ही होती। कोई भी दलित चाहे कितना भी काबिल हो किसी भी काम के लिए आप जैसी मानसिकता वाले लोगों की पंसद नहीं हो सकता है। और इसी सोच को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की व्यवस्था कि गई है।

कोठारी जी जरा सोचिए, आप जिस आरक्षण का विरोध कर रहें हैं उसके अंतर्गत देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या आती है जो अब धीरे-धीरे अपने अधिकारों और अधिकारों के हनन करने वालों को पहचान रही है। अगर इन लोगों ने आपका अखबार खरीदना बंद कर दिया तो आपकी दूकान बंद हो जाएगी। और इस बात पर भी जरा गौर किजिए कि जो नफरत आप अपने अखबार में खबरों के नाम पर फैला रहें है उसें आप सिर्फ छापकर भेज देते हैं, सुबह 4 बजे उठकर लोगों तक पहुंचाने वाले हॉकर भी ज्यादातर आरक्षण वाले ही है, सोशल मीडिया का जमाना है कहीं ऐसा ना हो जाए कि वो आपका अखबार बांटना ही बंद कर दें। जरा सोचिए। और हां मोहन भागवत के अलावा और लोगों से भी मिला करिए उससे ज्ञान में वृद्धि होगी।

लेख़क – सूरज कुमार बैरवा { जयपुर राज.}

RSS प्रमुख भागवत ,राष्ट्रिय अध्यक्ष भाजपा अमित शाह , मुख्यमंत्री राजे ,क्या भाजपा को सत्ता पर काबिज कर पायेगें –

भाजपा ,आरएसएस का मंथन –

जयपुर | वर्तमान समय राजस्थान की राजनीती का बड़ा संवेदनशील है जहाँ एक और मुख्यमत्री राजे गौरव यात्रा निकाल रही है तो अमित शाह राजस्थान के जमीनी समीकरण साधने की कोशिश कर रहे है अब इसे समय की बिडम्बना कहे की भाजपा के संरक्षक की भूमिका निभाने वाली संस्था के प्रमुख मोहन भागवत दस दिवसीय राजस्थान दौरे पर है कहा तो जा रहा है की वह संघ की नियमित

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दौरे पर है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप इसका फायदा भाजपा को मिलने वाला है |

सूत्रों के अनुसार राजस्थान में भाजपा सत्ता में दौबारा काबिज़ होने व् राजस्थान के ट्रेंड 5 साल में सत्ता परिवर्तन को बदलने की पुर -जोर अंदुरनी रूप से कोशिश कर रही है |

कांग्रेस व् भाजपा के इक्के / पत्ते – जो आगामी समय में खेले जाने की पूरी संभावना है –

कांग्रेस – प्रियंका गांधी वाड्रा / राहुल गाँधी 

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सूत्रों व् राजनेतिक विशेषज्ञ  प्रशांत दुबे / पवन देव के अनुसार आगामी महीने में राजस्थान में सेलिब्रिटीज द्वारा प्रचार किया जा सकता है जिसमे कांग्रेस की और से विशेष रूप से प्रियंका गांधी वाड्रा , राहुल गाँधी ,राज बबर ,आदी स्टार प्रचारक राजस्थान आ सकते है |

भाजपा – प्रधानमंत्री मोदी /अमित शाह 

गौतलब है की राजस्थान की लोकसभा संख्या 25 है जो 2019 लोकसभा में मुख्यभूमिका निभाती है अब राजस्थान विधानसभा के चुनावों के अन्तिम समय में प्रधानमंत्री मोदी के रेलियाँ होने की संभावना है जो की राजस्थान में मतदाताओं के रुझान को प्रभावित करेगे ,इसके साथ ही भाजपा के आला नेता स्मति ईरानी , हेमा मालनी , सलमान खान आदी के आने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता |

नोट – राजनेतिक पंडितो का मानना है की भाजपा हर हाल में सत्ता पर दौबारा काबिज़ होना चाहती है इसके लिए राजस्थान से लेकर दिल्ली तक दर्जनों मीटिंग्स का दौर चल रहा है भाजपा के पास कार्यकताओं की अच्छी -खासी संख्या है और जिस संभाग में गौरव यात्रा निकल रही है वही पर भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष अमित शाह यात्रा के बाद मंथन कर रहे है { एक कहावत है की हाथी के निकने के बाद पीछे मात्र पांवों के निशान रहे जाते है और उन पांवों के निशानों को देख लोग पीछे नकारात्मक बाते  करते है बस उन्ही नकारात्क बातों को सकारात्मक करने का कार्य अमित शाह कर रहे है जो की मुख्य भाजपा की रणनीति है |

रावण की रिहाही से बहुजन समाज में ख़ुशी –

यूपी | भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्र शेखर उर्फ़ रावण के जेल से रिहा होने के अवसर पर बहुजन समाज में ख़ुशी की लहर छा गई है , बहुजन समाज रावण की रिहाही को दलित ,शोषित तबके के संघर्ष व् मान – सम्मान के साथ जोड़ा जा रहा है |

युवा साथी विपिन द्वारा रावण की रिहाही के अवसर पर विचार गोष्टी का आयोजन किया गया जिसमे  बाबा साहब अम्बेडकर जी की पूर्ति पर पुष अर्पित कर दीपक प्रव्जलित किया गया साथ ही बहुजन समाज ने मिठाई के साथ ख़ुशी बनाई गई |

इस अवसर पर बाबा साहब के जीवन पर निम्न साथी वक्ताओं ने विचार रखे – 

भोग नाथ पुष्कर ,सोबरन लाल ,जश पाल बोद्ध ,अलोक रावण ,विपिन कुमार ,जोगेंद्र प्रसाद गौतम ,श्याम किशोर बेचेन्न ,श्रीकांत बोद्ध ,सर्वजीत ,सुधांशु गौतम , गौरव बोद्ध , सुरेन्द्र गौतम ,शिव राम गौतम ,शत्रोहन लाल गौतम ,गौरव मिला ,आशु गौतम

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