बाबरी मस्जिद का फैसला – न्याय प्रणाली की कसौटी पर उठते सवाल – भगवा राज में किस ओर जा रहा हैं देश

 तो फिर बाबरी मस्जिद ढांचा किसने तोडा – बड़ा सवाल ……………….राम रथ यात्रा का उदेश्य क्या था ……….देश को पूछता हैं  आडवानी जी  
यह सार्वभौमिक सत्य है की अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़कर गिराया गया था, इसे गिराने का आरोप कार सेवकों जो कि भाजपा , विश्व हिंदू परिषद , बजरंग दल ,RSS के ख्यातनाम चेहरों पर लगे हैं , आंदोलन करने वाले कारसेवकों के हुजूम का नेतृत्व कर रहे थे , उनमें मुख्य चेहरा थे लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, अशोक सिंघल, आदि
इस फैसले में सभी कारसेवकों और नेतृत्व करता सभी नेताओं को बरी कर दिया, यह भी सत्य है नेतृत्व करता जिन नेताओं पर मस्जिद को गिराने का आरोप लगा है उनके स्वयं के द्वारा एक टुकड़ा भी नहीं तोड़ा गया, लेकिन जिन कारसेवकों के हुजूम का नेतृत्व अयोध्या में इन नेताओं द्वारा किया गया था, क्या उसे प्रदर्शन का कोई एजेंडा नहीं था, आखिरकार सेवक अयोध्या इसीलिए तो गए थे कि वहां पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया जायें , तो क्या यह सत्य नहीं है की मस्जिद गिराने के लिए प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले हिंदू समर्थक नेताओं की जिम्मेदारी से कैसे इंकार किया जा सकता है, यह अलग बात है उसी स्थान को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर के पक्ष में फैसला दे दिया गया, फैसला भी एक प्रकार से हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के लिए एडजस्टमेंट करने जैसा ही था, अर्थात दोनों ही वर्ग को संतुष्ट करने का उद्देश्य, लेकिन यह मसला बाबरी मस्जिद का है, अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी, कारसेवक वहां पहुंचे हैं, कारसेवकों का एजेंडा मस्जिद को गिराना था, कार सेवकों का नेतृत्व जिन नेताओं द्वारा किया जा रहा था, मस्जिद गिराने की जिम्मेदारी से उन्हें हरगिज दोषमुक्त नहीं किया जा सकता है, हो सकता है, क्योंकि तत्कालीन समय लालकृष्ण आडवाणी द्वारा उनके राम रथ पर सवार होकर हिंदू समाज को किसी खास मुद्दे को लेकर उकसाना, उद्वेलित करना, केवल हिंदुओं को जगाने का तो नहीं था, इसके पीछे वास्तविक उद्देश्य मस्जिद को गिरा ना ही था,
इस फैसले से मुस्लिम समाज का आक्रोशित होना वाजिब कहा जा सकता है कि आखिर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रशासन सरकार, और केंद्र के तमाम जांच एजेंसियों के सक्रिय रहने के बाद भी, जो लोग मस्जिद ढहाने के दोषी थे, आखिर पकड़े क्यों नहीं गए, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या इस प्रकरण में फिर से कोई नई जांच खोलकर दोषियों को खोजने का काम प्रारंभ किया जाएगा ? यदि ऐसा संभव नहीं हो पाता है तो, तत्कालीन सरकार, उसके दिन तमाम जांच एजेंसियां, केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां, जिन पर बाबरी मस्जिद को बचाने की जिम्मेदारी रहते हुए गिरा दी गई क्यों और कैसे क्या इन प्रश्नों के उत्तर इस फैसले में है?
             
लेखक –  मोहन लाल बैरवा
               
सोशल एक्टिविस्ट एवं TV- डिबेटर, जयपुर

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