लोकसभा – नाकारा, निकम्मा और खुदगर्ज़ विपक्ष क्या खाक मोदी को हटाएगा – जानें ख़ास

Disappointing, unsafe and self-destructive opposition will remove Modi from Modi –

आज हर विपक्षी पार्टी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने की बात कर रही है, लेकिन उनका बिखराव और एक एक सीट के लिए खींचतान तथा बिना साझा घोषणा पत्र के चुनावी मैदान में उतरना यह साबित करता है कि उन्हें न देश की चिंता है और ना ही जनहित की। वे तो सत्ता के गुलाम हैं और खुद की सत्ता को ही देशहित एवं लोकतंत्र की रक्षा मानते हैं। ऐसे विपक्ष से कैसे उम्मीद की जाए कि वो मोदी को सत्ता से हटा देगा ?

जयपुर । लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई है और विपक्षी पार्टियां मोदी हटाओ देश बचाओ का नारा लगा रही हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियों के बिखराव और बहुत से राज्यों में एक दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लङने की घोषणा से इस नारे की हवा निकल चुकी है। विपक्षी नेताओं की एक एक सीट के लिए खींचतान और खुदगर्ज़ी को देखकर लगता है कि इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है। यह इतने खुदगर्ज़, नाकारा और निकम्मे हैं कि खुद की सत्ता ही इन्हें जनहित नजर आती है। यह सच है कि देश की जनता वर्तमान सरकार से दुखी हो चुकी है और वो सत्ता परिवर्तन करना चाहती है, लेकिन वो हताश है, क्यों

सा -आभार

कि उसे मजबूत और जनहित की बात करने वाला विपक्ष दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा है।

 

बात 2014 के आम चुनाव से शुरू करें। इस चुनाव में भाजपा को 31 फीसदी वोट मिला और 282 सीटों का ऐतिहासिक बहुमत भी मिला। भाजपा ने इसे मोदी लहर कहा। लेकिन मैं इसे मोदी लहर की बजाए तत्कालीन यूपीए सरकार की नाकामी और विपक्षी एकता के बिखराव का परिणाम मानता हूँ। भाजपा के खिलाफ करीब 69 फीसदी वोट पोल हुआ था। लेकिन वो टुकड़ों में बंट गया और विपक्षी पार्टियों की सियासी सिर फुटव्वल के कारण भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तथा नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमन्त्री बने। पांच साल बाद अगर देखें तो विपक्ष वैसे ही जूतम पैजार है, जैसे 2014 के चुनाव में था। विपक्ष के पास न कोई ऐसा एक चेहरा है, जिसको सब अपना नेता मान लें और ना ही कोई जनहित को लेकर संयुक्त घोषणा पत्र है, जिसे पढ कर जनता प्रभावित हो जाए।

बात 1977 के आम चुनाव की कर लें, तो अच्छी तरह से समझ में आ जाएगी। तब देश से इमरजेन्सी हटी थी और आम चुनाव हो रहे थे। एक तरफ कांग्रेसी नारा लगा रहे थे कि इन्दिरा इज इंडिया, इंडिया इज इन्दिरा। तो दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इन्दिरा हटाओ देश बचाओ का नारा लगा रही थीं। तत्कालीन विपक्षी नेताओं ने सभी पार्टियों को एकजुट किया और उनका विलय करने के बाद जनता पार्टी बनाई। जनता पार्टी के झण्डे तले सम्पूर्ण देश लामबन्द हो गया और तानाशाह इन्दिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ दिया। यहाँ तक कि रायबरेली लोकसभा सीट से स्वयं प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी भी चुनाव हार गईं और यहाँ से गरीबों के मसीहा समाजवादी नेता राज नारायण चुनाव जीत गए। यह तब हुआ जब सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट हुआ।

अब न वैसे फकीरी मिजाज विपक्षी नेता हैं और ना ही कोई रणनीतिकार। अब तो अवसरवादियों का जमावड़ा है। वर्तमान विपक्षी नेताओं से एक पार्टी बनाने की बात करना तो बेमानी है, यह इतने खुदगर्ज़ हैं कि एक गठबंधन भी नहीं बना सकते। पांच साल तक इन विपक्षी नेताओं ने क्या किया ? बस इस बात का इन्तजार किया कि मोदी सरकार फैल हो जाएगी, तो जनता हमारे सिर सत्ता का सेहरा बांध देगी। इनमें ज्यादातर नेता आला दर्जे के भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज हैं। वे खुद की सत्ता और परिवार के अलावा कुछ सोचते ही नहीं। बहुत बुरा जुमला इस्तेमाल कर रहा हूँ, लेकिन क्या करूँ विपक्षी नेताओं की कारस्तानी देख कर यह जुमला लिखने के लिए मजबूर हूँ। हमारे ज्यादातर विपक्षी नेता नाकारा, निकम्मे, चोर और धोखेबाज हैं। इनको जनहित, देशहित और लोकतंत्र की रक्षा से कोई मतलब नहीं है, इनको सिर्फ और सिर्फ खुद की सत्ता से मतलब है, जिसकी रक्षा करने में इन्होंने एङी चोटी का जोर लगा रखा है !

यूपी सबसे बङा राज्य जहाँ बसपा, सपा और आरएलडी का गठबंधन है तथा कांग्रेस इस गठबंधन के सामने दूसरा गठबंधन बना कर चुनाव मैदान में है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एकला चलो रे की नीति पर चल रही है तथा कांग्रेस व कामरेड यहाँ अलग से मैदान में हैं। बिहार जहाँ गठबंधन तो आखरी वक्त में बन गया, लेकिन सीपीआई को गठबंधन में शामिल नहीं किया। क्योंकि कांग्रेस और आरजेडी के नेता सीपीआई के कन्हैया कुमार को बेगूसराय सीट नहीं देना चाह रहे थे। इन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कन्हैया जैसा बेबाक़ युवा लोकसभा में पहुंच गया, तो फिर हमारा भविष्य क्या होगा ? असम में कांग्रेस मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाह रही है, क्योंकि किसी मुस्लिम नेता को क्यों ताकतवर बनाया जाए। दिल्ली में कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को साथ नहीं लेना चाह रही है। केजरीवाल दिल्ली गठबंधन के साथ हरियाणा और पंजाब में भी सीट मांग रहे हैं।

इसी तरह महाराष्ट्र का हाल है। यहाँ कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी का गठबंधन है तथा यह गठबंधन प्रकाश अम्बेडकर और असदुद्दीन औवेसी को साथ नहीं लेना चाह रहा है। प्रकाश अम्बेडकर संविधान निर्माता बाबा साहेब डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर के पोते हैं तथा इनकी पार्टी और ओवैसी की पार्टी का गठबंधन हो चुका है। मतलब सीधा सा है कि चाहे महाराष्ट्र में हार जाएं, लेकिन एक दलित और एक मुस्लिम नेता से गठबंधन नहीं करना है। राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी और आदिवासी पार्टी बीटीपी से गठबंधन नहीं करना है। ओडिशा में बीजू जनता दल के नवीन पटनायक और कांग्रेस आमने सामने हैं। तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश का भी कोई अच्छा हाल नहीं है। यानी विपक्ष अधिकतर राज्यों में बिखरा हुआ है और एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहा है। दूसरी तरफ भाजपा ने अपना गठबंधन मजबूत बना लिया है। कहीं तो भाजपा सहयोगी दलों के सामने पूरी तरह से झुक गई है। उसने बिहार में अपनी जीती हुई सीटें भी छोड़ दी हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना को बढ़ा कर सीट दी हैं।

ऐसी स्थिति में विपक्षी पार्टियां क्या खाक मोदी को हटाएंगी ? यह सच है कि जनता मोदी राज से नाक नाक आ चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की जन विरोधी नीतियों तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को तहस नहस करने कोशिश से जनता जबरदस्त नाराज़ है। जनता इस राज को उखाड़ना चाहती है, लेकिन जनता क्या करे ? वो विपक्षी पार्टियों की सिर फुटव्वल और आमने सामने चुनाव लङने की वजह से हताश होती जा रही है। जनता की यह हताशा विपक्षी नेताओं पर भारी पङेगी तथा यह हताशा पोलिंग में रूकावट बनेगी और कम पोलिंग व वोटों के बिखराव से सीधा लाभ भाजपा को होगा ! जिससे विपक्षी नेताओं के प्रधानमन्त्री बनने के सपने पर पूरी तरह से पानी फिर जाएगा। विपक्षी नेताओं को यह बात अच्छी तरह से याद कर लेनी चाहिए कि तुम्हारी इस खुदगर्ज़ी को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा !

लेख़क – एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।

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